Description
ब्रह्माण्ड की रचना किसने की? मेरी रचना किसने की? और क्यों?
अन्य अनुवाद 43
क्या मैं सही रास्ते पर हूँ?
आकाशों, धरती और उनके अंदर मौजूद अनगिनत बड़ी-बड़ी सृष्टियों की रचना किसने की?
आकाश एवं धरती की यह सटीक एवं सुदृढ़ व्यवस्था किसने स्थापित की?
किसने इन्सान को पैदा किया, उसे सुनने एवं देखने की शक्ति दी, बुद्धि-विवेक दिया और ज्ञान एवं तथ्यों को समझने में सक्षम बनाया?
किसने आपके शरीर के अंगों में यह सटीक शिल्प कौशल बनाया और आपको यह सुंदर आकार दिया?
भिन्न-भिन्न प्रकार की जीवित प्राणियों की रचना पर ग़ौर करें। उन्हें इतने रूप और रंग के साथ किसने पैदा किया?
यह महान ब्रह्माण्ड अपने सूक्ष्म नियतों के साथ इतने लंबे समय से कैसे व्यवस्थि एवं स्थिर रूप में चल रहा है?
इस संसार को नियंत्रित करने वाली प्रणालियों (जीवन और मृत्यु, जीवित प्राणियों का प्रजनन, दिन और रात, ऋतुओं का परिवर्तन, आदि) की स्थापना किसने की?
क्या इस संसार ने खुद अपनी रचना कर ली है? या अनस्तित्व से अस्तित्व में आ गया है? या सब कुछ संयोग मात्र से बन गया है? उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿أَمْ خُلِقُوا مِنْ غَيْرِ شَيْءٍ أَمْ هُمُ الْخَالِقُونَ (٣٥) (क्या वे बिना किसी के पैदा किए पैदा हो गए हैं या वे स्वयं ही अपने स्रष्टा हैं?أَمْ خَلَقُوا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بَلْ لَا يُوقِنُونَ﴾ "या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया है? वास्तव में, वे विश्वास ही नहीं रखते।)[सूरा तूर : 35-36]
अगर हमने ख़ुद अपनी रचना नहीं की है और अगर यह असंभव है कि हम अपने आप वजूद (अस्तित्व) में आ जाएँ या एक संयोग मात्र से पैदा हो जाएँ, तो फिर सत्य यही है कि इस संसार का कोई महान एवं शक्तिमान स्रष्टा है।
इन्सान ऐसी चीज़ों के अस्तित्व पर विश्वास क्यों रखता है, जिन्हें वह देख नहीं सकता? जैसे : (अहसास, विवेक, आत्मा, भावनाएँ और प्रेम)। क्या इसलिए नहीं कि वह इनके प्रभावों को देखता है? ऐसे में भला वह इस विशाल संसार के स्रष्टा के अस्तित्व का इनकार कैसे कर सकता है? क्या वह उसकी सृष्टियों, शिल्पकारी और दया के प्रभावों को नहीं देखता?
कोई भी विवेकी व्यक्ति से यदि यह कहा जाए कि यह भवन किसी के बनाए बिना अपने आप बन गया है, तो वह मानने को तैयार नहीं होगा। ऐसे में, वह कुछ लोगों के इस दावे को कैसे मान सकता है कि यह विशाल संसार किसी रचयिता के बिना ही सामने आ गया है। कोई समझदार व्यक्ति कैसे मान सकता है कि यह सूक्ष्म व्यस्था एक संयोग मात्र से स्थापित हो गई है।
यह सारी चीज़ें हमें इसी नतीजे तक पहुँचाती हैं कि इस संसार का एक महान और सर्वशक्तिमान पालनहार है, जो उसे चला रहा है। केवल वही इबादत का हक़दार है। उसके अतिरिक्त जितनी भी चीज़ों की इबादत की जाती है, सब की इबादत ग़लत है। क्योंकि उसके सिवा कोई इबादत का हक़दार नहीं है।
इस संसार का एक पालनहार एवं रचयिता है। वही इसका मालिक, संचालनकर्ता एवं जीविकादाता है। वही जीवन एवं मौत देता है। उसी ने धरती की रचना की और उसे सृष्टियों के रहने योग्य बनाया। उसी ने आकाशों एवं उनके अंदर मौजूद बड़ी-बड़ी सृष्टियों को पैदा किया। उसी ने सूरज, चाँद, दिन एवं रात की यह सूक्ष्म व्यवस्था स्थापित की, जो उसकी महानता को दर्शाती है।
उसी ने हमारे लिए हवा पैदा की, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। वही हमारे लिए बारिश बरसाता है। उसी ने हमारे लिए समुद्र एवं नदियाँ बनाईं। वही हमें उस समय भोजन एवं सुरक्षा प्रदान करता था, जब हम अपनी माँ के पेट में थे और हमारे पास कोई शक्ति नहीं थी। वही जन्म से मृत्यु तक हमारी रगों में खून जारी रखता है।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿إِنَّ رَبَّكُمُ اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ يُغْشِي اللَّيْلَ النَّهَارَ يَطْلُبُهُ حَثِيثًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ وَالنُّجُومَ مُسَخَّرَاتٍ بِأَمْرِهِ أَلَا لَهُ الْخَلْقُ وَالْأَمْرُ تَبَارَكَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ﴾ (तुम्हारा पालनहार वही अल्लाह है, जिसने आकाशों तथा धरती को छह दिनों में बनाया, फिर अर्श (सिंहासन) पर स्तिथ हो गया l वह रात्रि से दिन को ढक देता है, दिन उसके पीछे दौड़ता हुआ आ जाता है, सूर्य तथा चाँद एवं तारे उसकी आज्ञा के अधीन हैं l सुन लो! वही उत्पत्तिकार है और वही शासक हैl वही अल्लाह अति शुभ, संसार का पालनहार हैl)[सूरा अल-आराफ़ : 54]
अल्लाह ही इस संसार की सारी दिखने एवं न दिखने वाली चीज़ों का रचयिता एवं पालनहार है। उसके सिवा सारी चीज़ें उसकी विशाल रचना का हिस्सा हैं। वही एकमात्र इबादत का हक़दार है। उसके अतिरिक्त किसी और की इबादत नहीं होनी चाहिए। उसकी बादशाहत, रचना, संचालन या इबादत में कोई साझी नहीं है।
अगर उस सर्वशक्तिमान एवं महान पालनहार के अतिरिक्त अन्य पूज्य होते, तो इस संसार की व्यवस्था नष्ट हो जाती, क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि इस संसार को एक ही साथ दो पूज्य चलाएँ। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :{لَوْ كَانَ فِيهِمَا آلِهَةٌ إِلَّا اللَّهُ لَفَسَدَتَا} (अगर उन दोनों में अल्लाह के सिवा कोई और पूज्य होते, तो वे दोनों अवश्य बिगड़ जाते।)[सूरा अल-अमबिया : 22]
पवित्र पालनहार के बेशुमार अच्छे-अच्छे नाम हैं। उसके बहुत-से विशाल गुण हैं, जो उसकी संपूर्णता को दर्शाते हैं। उसका एक नाम "अल-ख़ालिक" (सृष्टिकर्ता) और एक नाम "अल्लाह" है। अल्लाह का अर्थ है, ऐसी हस्ती जो अकेले इबादत की हक़दार हो और उसका कोई साझी न हो। "अल-हय्य" (जीवित), "अल-क़य्यूम" (संसार को संभालने वाला), "अल-रहीम" (दयावान्), "अल-राज़िक़" (रोज़ी देने वाला) और "अल-करीम" (उदार) आदि भी उसके नाम हैं।
उच्च एवं महान अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में कहा है :﴿اللَّهُ لا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَوَاتِ وَالأَرْضَ وَلا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ﴾ (अल्लाह (वह है कि) उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं। (वह) जीवित है, हर चीज़ को सँभालने (क़ायम रखने) वाला है। न उसे कुछ ऊँघ पकड़ती है और न नींद। उसी का है जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) करे? वह जानता है जो कुछ उनके सामने और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ को (अपने ज्ञान से) नहीं घेर सकते, परंतु जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाशों और धरती को व्याप्त है और उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। और वही सबसे ऊँचा, सबसे महान है।)[सूरा अल-बक़रा : 255]
अल्लाह तआला ने एक अन्य स्थान में कहा है :﴿قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ (١) ((ऐ रसूल!) आप कह दीजिए : वह अल्लाह एक है।اللَّهُ الصَّمَدُ (٢) अल्लाह बेनियाज़ है।لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ (٣) न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ﴾ और न उसके बराबर कोई है।[सूरा इखलास : 1-4]
उसका एक गुण यह है कि वह पूज्य एवं वंदनीय है, जबकि उसके अतिरिक्त हर एक रचना, दायित्व का बोझ उठाने वाला, आदेशित और अधीन है।
उसका एक गुण यह है कि वह जीवित एवं इस संसार को संभालने वाला है। इस संसार की हर जीवित वस्तु को उसी ने जीवन दिया है और उसी ने अनस्तित्व से अस्तित्व प्रदान किया है। वही रोज़ी देता है और उसकी सारी ज़रूरतें पूरी करता है। इस संसार का पालनहार जीवित है। उसे मौत नहीं आएगी। उसे मौत आ भी नहीं सकती। उसने इस संसार को संभाल रखा है। वह सोता नहीं है। उसे न ऊँघ आती है और न नींद।
उसका एक गुण यह है कि वह सब कुछ जानने वाला है। आकाश एवं धरती की कोई भी वस्तु उससे छुप नहीं सकती।
उसका एक गुण यह है कि वह सुनने और देखने वाला है। वह सब कुछ सुनता और हर सृष्टि को देखता है। वह दिलों में पैदा होने वाले ख़्यालों और सीनों में छुपी हुई बातों को भी जानता है। आकाश एवं धरती की कोई वस्तु उससे छुप नहीं सकती।
उसका एक गुण यह है कि वह क्षमतावान है। उसे न कोई विवश कर सकता है और न कोई उसके इरादे को टाल सकता है। वह जो चाहे करता है और जिसे चाहे रोकता है। वह जिसे चाहे आगे और जिसे चाहे पीछे करता है। वह बड़ी हिकमतों वाला है।
उसका एक गुण यह है कि वह सृष्टिकर्ता एवं संचालनकर्ता है। उसी ने इस संसार की सृष्टि की है और वही इसे संचालित करता है। सारी सृष्टियाँ उसके अधीन हैं।
उसका एक गुण यह है कि वह परेशानहाल लोगों की फ़रियाद सुनता है, संकट में पड़े हुए लोगों को राहत देता है और उनका दुःख दूर करता है। कोई भी सृष्टि जब किसी संकट से घिरती और मुसीबत में पड़ती है, तो थक-हार कर उसी का शरण लेती है।
इबादत केवल अल्लाह ही की हो सकती है। क्योंकि वही संपूर्ण है और एक मात्र वही इबादत का हक़दार है। उसके अतिरिक्त किसी और की इबादत उचित नहीं है। क्योंकि उसके अतिरिक्त कोई संपूर्ण एवं परिपूर्ण नहीं है। सबको मौत आनी है और फ़ना हो जाना है।
पवित्र एवं महान अल्लाह ने हमें ऐसी अक़्लें दीं, जो उसकी महानता को महसूस कर सकें और ऐसा स्वभाव दिया, जो भलाई को पसंद करे, बुराई को नापसंद करे और संसार के पालनहार के आगे झुकने में संतुष्टि महसूस करे। यह स्वभाव पालनहार की संपूर्णता और कमियों से पाक होने को इंगित करता है।
किसी समझदार व्यक्ति के लिए उचित नहीं है कि वह संपूर्ण हस्ती के अतिरिक्त किसी और की इबादत करे। ऐसे में अपनी ही जैसी या अपने से कमतर किसी अपूर्ण सृष्टि की इबादत भला कैसे उचित हो सकती है?
वह पूज्य पालनहार इन्सान, बुत, पेड़ या जानवर नहीं हो सकता।
पालनहार अपने आकाशों के ऊपर, अपने अर्श पर अवस्थित और अपनी सृष्टि से जुदा है। उसके अंदर उसकी कोई सृष्टि समाहित नहीं है और न वह किसी सृष्टि के अंदर समाहित है। वह किसी सृष्टि का आकार लेकर प्रकट नहीं होता।
पालनहार के जैसी कोई चीज़ नहीं है। वह सुनने और देखने वाला है। उसका कोई समकक्ष नहीं है। न वह सोता है और न खाता-पीता है। वह महान है। उसकी न तो कोई पत्नी हो सकती है और न ही कोई संतान हो सकती है। क्योंकि सृष्टिकर्ता अपने हर गुण में महान है। ऐसा नहीं हो सकता कि उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो या उसके अंदर कोई कमी हो।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٌ فَاسْتَمِعُوا لَهُ إِنَّ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَنْ يَخْلُقُوا ذُبَابًا وَلَوِ اجْتَمَعُوا لَهُ وَإِنْ يَسْلُبْهُمُ الذُّبَابُ شَيْئًا لَا يَسْتَنْقِذُوهُ مِنْهُ ضَعُفَ الطَّالِبُ وَالْمَطْلُوبُ (٧٣) (ऐ लोगो! एक उदाहरण दिया गया है। इसे ध्यान से सुनो। निःसंदेह वे लोग जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पुकारते हो, कभी एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते, यद्यपि वे इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ। और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले, वे उसे उससे छुड़ा नहीं पाएँगे। कमज़ोर है माँगने वाला और वह भी जिससे माँगा गया।مَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ﴾ उन्होंने अल्लाह का वैसे आदर नहीं किया, जैसे उसका आदर करना चाहिए! निःसंदेह अल्लाह अत्यंत शक्तिशाली, सब पर प्रभुत्वशाली है।)[सूरा अल-हज्ज : 73-74]
क्या यह बात समझ में आती है कि अल्लाह तआला ने इन सारी सृष्टियों को बिना किसी उद्देश्य के बनाया है? इन्हें व्यर्थ पैदा किया है? जबकि वह हिकमत वाला और सब कुछ जानने वाला है!
क्या यह बात समझ में आती है कि जिसने हमें इतनी सटीकता एवं निपुणता के साथ पैदा किया और आकाशों एवं धरती की सारी चीज़ों को हमारे अधीन कर दिया, वह हमें बिना किसी उद्देश्य के पैदा करे या उन महत्वपूर्ण सवालों का जवाब न दे, जो हमें व्यस्त रखते हैं? जैसे - हम यहाँ क्यों आए हैं? मौत के बाद क्या होगा? हमारी रचना का उद्देश्य क्या है?
क्या यह बात समझ में आती है कि अत्याचार करने वाले को कोई सज़ा और उपकार करने वाले को कोई बदला न दिया जाए?
उच्च एवं महान अललाह ने कहा है :﴿أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاكُمْ عَبَثًا وَأَنَّكُمْ إِلَيْنَا لَا تُرْجَعُونَ﴾ (तो क्या तुमने समझ रखा था कि हमने तुम्हें उद्देश्यहीन पैदा किया है और यह कि तुम हमारी ओर नहीं लौटाए जाओगे?)[सूरा अल-मोमिनून : 115]
सच्चाई यह है कि उसने रसूल भेजे और उनके माध्यम से हमें बताया कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है, हम अपने पालनहार की इबादत कैसे करें, उसकी निकटता कैसे प्राप्त करें, अल्लाह हमसे क्या चाहता है, हम उसकी प्रसन्नता कैसे प्राप्त कर सकते हैं और मौत के बाद हमारा अंजाम क्या होगा?
अल्लाह ने रसूल भेजे, ताकि वे हमें बताएँ कि केवल अल्लाह ही इबादत का हक़दार है, वो हमें अल्लाह की इबादत का तरीक़ा सिखाएँ, उसके आदेश एवं निषेध पहुँचाएँ और ऐसे नैतिक मूल्य सिखाएँ कि यदि हम उनका पालन करते हैं, तो हमारा जीवन भलाइयों एवं बरकतों से भरा हुआ होगा।
अल्लाह ने बहुत सारे रसूल भेजे। जैसे नूह, इबराहीम, मूसा और ईसा। अल्लाह ने इन सब को ऐसी निशानियाँ एवं चमत्कार प्रदान किए, जो उनके सच्चे नबी और अल्लाह के भेजे हुए रसूल होने को प्रमाणित करते हों। इस सिलसिले की अंतिम कड़ी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।
रसूलों ने हमें स्पष्ट तौर पर बताया कि हमारा यह जीवन एक परीक्षा है और असल जीवन मौत के बाद का जीवन है।
वहाँ एकमात्र अल्लाह की इबादत करने वालों और सभी रसूलों पर विश्वास रखने वाले मोमिनों के लिए जन्नत तथा अल्लाह के साथ अन्य पूज्यों की इबादत करने या अल्लाह के किसी भी रसूल का इनकार करने वालों के लिए जहन्नम है।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿يَا بَنِي آدَمَ إِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَقُصُّونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِي فَمَنِ اتَّقَى وَأَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ (٣٥) (ऐ आदम की संतान! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल आ जायें जो तुम्हें मेरी आयतें सुना रहे हों, तो जो डरेगा और अपना सुधार कर लेगा, उसके लिए कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।وَالَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَاسْتَكْبَرُوا عَنْهَا أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ﴾ और जो हमारी आयतें झुठलायेंगे और उनसे घमण्ड करेंगे वही लोग आग (जहन्नम) वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।)[सूरा अल-आराफ़ : 35-36]
एक अन्य स्थान में कहा है :﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ (٢١) (ऐ लोगो! अपने उस पालनहार की इबादत करो, जिसने तुम्हें तथा तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच जाओ।الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ (٢٢) जिसने तुम्हारे लिए धरती को एक बिछौना तथा आकाश को एक छत बनाया और आकाश से कुछ पानी उतारा, फिर उससे कई प्रकार के फल तुम्हारी जीविका के लिए पैदा किए। अतः अल्लाह के लिए किसी प्रकार के साझी न बनाओ, जबकि तुम जानते हो।وَإِنْ كُنْتُمْ فِي رَيْبٍ مِمَّا نَزَّلْنَا عَلَى عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِنْ مِثْلِهِ وَادْعُوا شُهَدَاءَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (٢٣) और यदि तुम उस (पुस्तक) के बारे में किसी संदेह में हो, जो हमने अपने बंदे पर उतारा है, तो उसके समान एक सूरत ले आओ और अल्लाह के सिवा अपने समर्थकों को भी बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا وَلَنْ تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ (٢٤) फिर यदि तुमने ऐसा न किया और तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगे, तो उस आग से बचो, जिसका ईंधन मानव तथा पत्थर हैं, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِنْ ثَمَرَةٍ رِزْقًا قَالُوا هَذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِنْ قَبْلُ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ﴾ और (ऐ नबी!) उन लोगों को शुभ सूचना दे दो, जो ईमान लाए तथा उन्होंने अच्छे काम किए कि निःसंदेह उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। जब कभी उनमें से कोई फल उन्हें खाने के लिए दिया जाएगा, तो कहेंगे : यह तो वही है, जो इससे पहले हमें दिया गया था, तथा उन्हें एक-दूसरे से मिलता-जुलता फल दिया जाएगा तथा उनके लिए उनमें पवित्र पत्नियाँ होंगी और वे उनमें हमेशा रहने वाले हैं।)[सूरा अल-बक़रा : 21-25]
अल्लाह ने सभी समुदायों की ओर अपने रसूल भेजे। एक भी समुदाय ऐसा नहीं है, जिसकी ओर अपनी इबादत की तरफ़ बुलाने और अपने आदेश एवं निषेध पहुँचाने के लिए कोई रसूल न भेजा हो। तमाम रसूलों के आह्वान का सार था, एक सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की इबादत। जब भी किसी समुदाय ने अपने रसूल की शिक्षा को छोड़ना या उसे बिगाड़ना शुरू किया, अल्लाह ने सुधार के लिए दूसरा रसूल भेज दिया।
इस सिलसिले का अंत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर किया, जो एक संपूर्ण दीन और क़यामत के दिन तक के तमाम लोगों के लिए एक शास्वत और पहले की तमाम शरीयतों के लिए पूरक एवं उनको निरस्त करने वाली शरीयत लेकर आए, जिसे क़यामत के दिन तक निरंतर रूप से बाक़ी रखने की गारंटी अल्लाह तआला ने दी है।
अल्लाह वह है, जिसने रसूल भेजे और तमाम सृष्टियों को उनका अनुसरण करने का आदेश दिया। जिसने किसी एक रसूल का इनकार किया, उसने दरअसल सभी रसूलों का इनकार किया। क्योंकि इससे बड़ा गुनाह कुछ और नहीं हो सकता कि इन्सान अल्लाह की वह्य को ठुकराए। इस तरह जन्नत में प्रवेश पाने के लिए तमाम रसूलों पर ईमान रखना ज़रूरी है।
अतः आज हर व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अल्लाह, उसके तमाम रसूलों और आख़िरत के दिन पर ईमान रखना चाहिए, जिसके लिए अल्लाह के अंतिम रसूल पर ईमान रखना और उनकी शिक्षाओं पर अमल करना ज़रूरी है, जिनको एक शास्वत चमत्कार क़ुरआन दिया गया था, जिसे सुरक्षित रखने की ज़िम्मेवारी ख़ुद अल्लाह ने ले रखी है।
अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में बताया है कि जिसने किसी भी रसूल पर ईमान लाने से इनकार किया, वह अल्लाह के प्रति अविश्वास व्यक्त करने वाला और उसकी वह्य को झुठलाने वाला है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيُرِيدُونَ أَنْ يُفَرِّقُوا بَيْنَ اللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَنْ يَتَّخِذُوا بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلًا (١٥٠) (निःसंदेह जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अंतर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ का इनकार करते हैं और चाहते हैं कि इसके बीच कोई राह अपनाएँ।أُولَئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ حَقًّا وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُهِينًا﴾ यही लोग वास्तविक काफ़िर हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।)[सूरा अल-निसा : 150-151]
इसलिए हम मुसलमान अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए उसपर ईमान रखते हैं, आख़िरत के दिन पर विश्वास रखते हैं, तमाम रसूलों पर विश्वास रखते हैं और पिछले ग्रंथों पर विश्वास रखते हैं। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْهِ مِنْ رَبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْ رُسُلِهِ وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ﴾ (रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए, जो उनकी तरफ़ उनके पालनहार की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले भी। हर एक अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी पुस्तकों और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (वे कहते हैं :) हम उसके रसूलों में से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते। और उन्होंने कहा : हमने सुना और हमने आज्ञापालन किया। हम तेरी क्षमा चाहते हैं ऐ हमारे पालनहार! और तेरी ही ओर लौटकर जाना है।)[सूरा अल-बक़रा : 285]
क़ुरआन सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की वाणी और उसकी वह्य है, जिसे उसने अपने अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारा था। क़ुरआन दरअसल अंतिम रसूल मुसहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सच्चे नबी होने को प्रमाणित करने वाला सबसे बड़ा चमत्कार है और उसके सारे विधि-विधान उचित तथा उसकी प्रदान की हुई सारी सूचनाएँ सच्ची हैं।अल्लाह ने झुठलाने वालों को इसके समान एक सूरा ही प्रस्तुत करने की चुनौती दी, लेकिन उसका विषय-वस्तु इतना महान एवं इतना व्यापक है कि वे ऐसा करने में असमर्थ रहे। इसके अंदर ईमान से जुड़ी हुई वह सारी बातें बयान कर दी गई हैं, जिनपर विश्वास रखना ज़रूरी है।इसी तरह इसके अंदर वह सारे आदेश एवं निषेध भी दे दिए गए हैं, जिनका पालन एक व्यक्ति को अपने तथा अपने पालनहार के बीच, अपने तथा अपने नफ़्स के बीच या फिर अपने तथा सारी सृष्टियों के बीच करना चाहिए। वो भी बड़े ही स्पष्ट एवं प्रभावी अंदाज़ में।इसमें बहुत सारे तर्कसंगत सबूत तथा वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं, जो यह बताती है कि यह पुस्तक मनुष्य द्वारा नहीं बनाई जा सकती। यह तो मानव जाति के पवित्र एवं उच्च पालनहार की वाणी है।
इस्लाम नाम है, एकेश्वरवाद के माध्यम से सर्वशक्तिमान अल्लाह के प्रति समर्पण, आज्ञाकारिता के माध्यम से उसके आगे सिर झुकाने, सहमति एवं स्वीकृति के साथ उसकी शरीयत का पालन करने और उसके सिवा पूजी जाने वाली तमाम चीज़ों का इनकार करने का।
अल्लाह ने तमाम रसूलों को एक ही संदेश के साथ भेजा। वह संदेश है, किसी को साझी बनाए बिना बस एक अल्लाह की इबादत और उसके अतिरिक्त पूजी जाने वाली तमाम चीज़ों के इनकार का आह्वान।
इस्लाम तमाम नबियों का दीन है। उनका आह्वान एक है और शरीयतें अलग-अलग। आज केवल मुसलमान ही तमाम नबियों के लाए हुए सही धर्म का पालन करते हैं। इस्लाम का संदेश ही सच्चा संदेश है। यही सृष्टिकर्ता की ओर से मानव जाति को मिलने वाला अंतिम संदेश है।जिस पालनहार ने इबराहीम, मूसा और ईसा अलैहिमुस्सलाम को भेजा था, उसी ने अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा। इस्लामी शरीयत पिछली सभी शरीयतों को निरस्त करने वाली शरीयत के तौर पर आई।
आज लोग इस्लाम के अतिरिक्त जितने भी धर्मों का पालन करते हैं, सब या तो मानव निर्मित धर्म हैं या फिर आकाशीय धर्म थे, लेकिन इन्सानी हाथों का खिलौना बन गए, जिसके कारण पाखंडों का ढेर और किंदवंतियों एवं मानवीय प्रयासों का मिश्रण हो गए।
जबकि मुसलमानों का धर्म परिवर्तनों से सुरक्षित एक स्पष्ट धर्म है। इसी तरह अल्लाह की इबादत के तौर पर उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य भी एक हैं। सारे मुसलमान पाँच समयों की नमाज़ पढ़ते हैं, अपने धन की ज़कात देते हैं और रमज़ान महीने के रोज़े रखते हैं। ज़रा उनके संविधान पवित्र क़ुरआन पर ग़ौर करें, दुनिया के तमाम देशों में वह एक ही किताब है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿ٱلۡيَوۡمَ أَكۡمَلۡتُ لَكُمۡ دِينَكُمۡ وَأَتۡمَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ نِعۡمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ ٱلۡإِسۡلَٰمَ دِينٗاۚ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ فِي مَخۡمَصَةٍ غَيۡرَ مُتَجَانِفٖ لِّإِثۡمٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ﴾ (आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म परिपूर्ण कर दिया, तथा तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म के तौर पर पसंद कर लिया। फिर जो व्यक्ति भूख पर किसी सूरत में मजूबर कर दिया जाए, इस हाल में कि किसी पाप की ओर झुकाव रखने वाला न हो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।)[सूरा अल-माइदा : 3]
उच्च एवं महान अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है :﴿قُلْ آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنْزِلَ عَلَيْنَا وَمَا أُنْزِلَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَالنَّبِيُّونَ مِنْ رَبِّهِمْ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ (٨٤) ((ऐ रसूल!) आप कह दें : हम अल्लाह पर ईमान लाए और उसपर जो हमपर उतारा गया, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान पर उतारा गया, और जो मूसा तथा ईसा और दूसरे नबियों को उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम इनमें से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।وَمَنْ يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَنْ يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ﴾ और जो इस्लाम के अलावा कोई और धर्म तलाश करे, तो वह उससे हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।)[सूरा आल-ए-इमरान : 84-85]
इस्लाम धर्म दरअसल एक संपूर्ण जीवन विधान है, जो मानव स्वभाव एवं तर्क के अनुरूप है और जिसे स्वच्छ आत्माएँ सहर्ष स्वीकार करती हैं। इस विशाल विधान को महान सृष्टिकर्ता ने अपनी सृष्टि के लिए तैयार किया है। यह तमाम लोगों को दुनिया एवं आख़िरत में ख़ुशी प्रदान करने वाला धर्म है। इसमें नस्ल एवं रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। इसकी नज़र में सारे लोग बराबर हैं। इसमें किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर उतनी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है, जितनी उसके पास सत्कर्म की पूंजी हो।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :(مَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَنُحۡيِيَنَّهُۥ حَيَوٰةٗ طَيِّبَةٗۖ وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ) (जो भी अच्छा कार्य करे, नर हो अथवा नारी, जबकि वह ईमान वाला हो, तो हम उसे अच्छा जीवन व्यतीत कराएँगे। और निश्चय हम उन्हें उनका बदला उन उत्तम कार्यों के अनुसार प्रदान करेंगे, जो वे किया करते थे।)[सूरा अल-नह्ल : 97]
इस्लाम तमाम नबियों का धर्म है और तमाम लोगों के लिए अल्लाह का धर्म है। यह केवल अरबों का धर्म नहीं है।
इस्लाम इस दुनिया की सच्ची ख़ुशी और आख़िरत के शास्वत आनंद का मार्ग है।
इस्लाम एकमात्र ऐसा धर्म है, जो आत्मा और शरीर की जरूरतों को पूरा करता है और सभी मानवीय समस्याओं का समाधान करता है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿قَالَ اهْبِطَا مِنْهَا جَمِيعًا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ مِنِّي هُدًى فَمَنِ اتَّبَعَ هُدَايَ فَلا يَضِلُّ وَلا يَشْقَى (123) (फरमाया : तुम दोनों यहाँ से एक साथ उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के शत्रु हो। फिर अगर कभी मेरी ओर से तुम्हारे पास कोई हिदायत आए, तो जो कोई मेरी हिदायत पर चला, तो न वह भटकेगा और न मुसीबत में पड़ेगा।وَمَنْ أَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِي فَإِنَّ لَهُ مَعِيشَةً ضَنْكًا وَنَحْشُرُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَعْمَى﴾ तथा जिसने मेरी नसीहत से मुँह फेरा, तो निःसंदेह उसके लिए तंग जीवन है और हम उसे क़यामत के दिन अंधा करके उठाएँगे।)[सूरा ताहा : 123-124]
इस्लाम ग्रहण करने के बड़े लाभ हैं। जैसे :
- दुनिया में यह कामयाबी और सम्मान कि इन्सान अल्लाह का बंदा होकर जीवन व्यतीत करे। अगर ऐसा न हो, तो वह हवा-ए-नफ़्स (अपने मन), शैतान और आकांक्षाओं का बंदा बनकर रह जाए।
- आख़िरत में यह सफलता कि अल्लाह की क्षमा एवं उसकी प्रसन्नता प्राप्त होती है, अल्लाह उसे जन्नत एवं उसकी कभी ख़त्म न होने वाली नेमतें प्रदान करता है और वह जहन्नम की यातना से छुटकारा प्राप्त कर लेता है।
- ईमान वालों को क़यामत के दिन नबियों, सिद्दीक़ों, शहीदों और अल्लाह के नेक बंदों के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होगा। क्या ही बेहतरीन संगति है यह! जबकि अल्लाह पर विश्वास न रखने वाले अत्याचारियों, बुरे लोगों, अपराधियों एवं बिगाड़ पैदा करने वालों के साथ होंगे।
- जो लोग जन्नत जाने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे, वे हमेशा बाक़ी रहने वाली नेमतों में होंगे। न मौत, न बीमारी, न बुढ़ापा, न दुःख और न चिंता होगी। उनकी हर इच्छा पूरी होगी। जबकि जहन्नम जाने वाले हमेशा रहने वाले अज़ाब में पड़े रहेंगे, जो कभी ख़त्म न होगी।
- जन्नत में ऐसी-ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें न किसी आँख ने देखा है, न उनके बारे में किसी कान ने सुना है और न उनकी कल्पना किसी इन्सान के दिल ने की है। इसका एक प्रमाण उच्च एवं महान अल्लाह का यह कथन है :﴿مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنْثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْيِيَنَّهُ حَيَاةً طَيِّبَةً وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾ (जो भी अच्छा कार्य करे, नर हो अथवा नारी, जबकि वह ईमान वाला हो, तो हम उसे अच्छा जीवन व्यतीत कराएँगे। और निश्चय हम उन्हें उनका बदला उन उत्तम कार्यों के अनुसार प्रदान करेंगे जो वे किया करते थे।)[सूरा अल-नह्ल : 97]एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने कहा है :﴿فَلَا تَعۡلَمُ نَفۡسٞ مَّآ أُخۡفِيَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعۡيُنٖ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ﴾ (तो कोई प्राणी नहीं जानता कि उनके लिए आँखों की ठंडक में से क्या कुछ छिपाकर रखा गया है, उसके बदले के तौर पर, जो वे (दुनिया में) किया करते थे।)[सूरा अल-सजदा : 17]
इन्सान सबसे बड़े ज्ञान से हाथ धो बैठेगा। उसके पास अल्लाह के बारे में कोई जानकारी नहीं रहेगी। वह अल्लाह पर ईमान की दौलत से महरूम हो जाएगा। उस ईमान की दौलत से, जो इन्सान को दुनिया में सुरक्षा एवं शांति तथा आख़िरत में कभी न ख़त्म होने वाली नेमतें प्रदान करता है।
इन्सान लोगों के लिए अल्लाह की उतारी हुई महानतम किताब की शिक्षाओं से अवगत होने और उसपर ईमान लाने के सौभाग्य से वंचित हो जाएगा।
इन्सान अल्लाह के नबियों पर ईमान और जन्नत में उनकी संगति से वंचित रह जाएगा। उसे जहन्नम की आग में शैतानों, अपराधियों तथा अत्याचारियों के साथ जलना पड़ेगा। स्थान भी बुरा और साथी भी बुरे।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلا ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ (15) आप कह दें : निःसंदेह वास्तविक घाटे में पड़ने वाले तो वे हैं, जिन्होंने क़यामत के दिन खुद को तथा अपने घर वालों को घाटे में डाला। सुन लो! यही खुला घाटा है।لَهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ذَلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ﴾ उनके लिए उनके ऊपर से आग के छत्र होंगे तथा उनके नीचे से भी छत्र होंगे। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बंदों को डराता है। ऐ मेरे बंदो! अतः तुम मुझसे डरो।)[सूरा अल-ज़ुमर : 15-16]
तमाम नबी तथा रसूल इस तथ्य पर एकमत हैं कि आख़िरत में केवल मुसलमानों को ही मुक्ति मिलेगी, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं, किसी को उसका साझी नहीं बनाते और तमाम नबियों एवं रसूलों पर विश्वास रखते हैं। रसूलों के सारे अनुयायी और उनपर विश्वास रखने वाले तथा उनको सच्चा मानने वाले सारे लोग जन्नत में प्रवेश पाएँगे तथा जहन्नम से मुक्ति प्राप्त करेंगे।
अतः जो लोग अल्लाह के नबी मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में रहे, उनपर ईमान लाए और उनकी शिक्षाओं पर अमल किया, वो सच्चे मोमिन व मुसलमान थे। लेकिन जब अल्लाह ने ईसा अलैहिस्सलाम को भेज दिया, तो मूसा अलैहिस्सलाम का अनुसरण करने वालों पर ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाना और उनका अनुसरण करना अनिवार्य होगया।ऐसे में, जो लोग ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आए, वे सच्चे मुसलमान हैं। इसके विपरीत जिन्होंने ईसा अलैहिस्लाम को ठुकरा दिया और मूसा अलैहिस्सलाम के दीन पर क़ायम रहने की ज़िद पर अड़े रहे, वे मोमिन नहीं हैं। क्योंकि उन्होंने अल्लाह के भेजे हुए एक रसूल पर ईमान लाने से मना कर दिया।फिर जब अल्लाह ने अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेज दिया, तो तमाम लोगों के लिए आप पर ईमान लाना अनिवार्य हो गया। क्योंकि जिस पालनहार ने मूसा एवं ईसा अलैहिस्सलाम को भेजा था, उसी ने अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा है। इसलिए जिसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आह्वान को ठुकराया और मूसा अलैहिस्सलाम या ईसा अलैहिस्सलाम के अनुसरण पर क़ायम रहने की ज़िद की, वह मोमिन नहीं हो सकता।
किसी व्यक्ति का यह कहना काफ़ी नहीं है कि वह मुसलमानों का सम्मान करता है। आख़िरत में नजात प्राप्त करने के लिए सदक़ा करना और ग़रीबों की मदद करना भी काफ़ी नहीं है। इसके लिए अल्लाह, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन पर ईमान ज़रूरी है। क्योंकि शिर्क, अल्लाह के इनकार, उसकी उतारी हुई वह्य को ठुकराने और अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नबूवत की अवहेलना से बड़ा कोई गुनाह नहीं है।
अतः जिन यहूदियों, ईसाइयों तथा अन्य धर्म के मानने वालों ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नबी होने की बात सुनी और आप पर ईमान लाने तथा इस्लाम धर्म को ग्रहण करने से इनकार कर दिया, उनको जहन्नम जाना पड़ेगा और वहाँ वो हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह का निर्णय है। किसी इन्सान का निर्णय नहीं। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَـٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّة﴾ (निःसंदेह किताब वालों और मुश्रिकों में से जो लोग काफ़िर हो गए, वे सदा जहन्नम की आग में रहने वाले हैं, वही लोग सबसे बुरे प्राणी हैं।)[सूरा अल-बय्यिना : 6]
चूँकि मानव समाज की ओर अल्लाह का अंतिम संदेश उतर चुका है, इसलिए इस्लाम तथा अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नबूवत की ख़बर पाने वाले हर व्यक्ति के लिए आप पर ईमान लाना, आपकी शरीयत का पालन करना और आपके आदेशों एवं निषेधों का पालन करना वाजिब है। इस लिए जिसने इस अंतिम संदेश के बारे में सुना और इसे ठुकरा दिया, अल्लाह उसकी ओर से कुछ भी ग्रहण नहीं करेगा और उसे आख़िरत में यातनाग्रस्त करेगा।
इसका एक प्रमाण अल्लाह तआला का यह कथन है :﴿وَمَنْ يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَنْ يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ﴾ (और जो इस्लाम के अलावा कोई और धर्म तलाश करे, तो वह उससे हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।)[सूरा आल-ए-इमरान: 85]
एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने कहा है :﴿قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَى كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا اللَّهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِنْ دُونِ اللَّهِ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَقُولُوا اشْهَدُوا بِأَنَّا مُسْلِمُونَ﴾ ((ऐ नबी!) कह दीजिए : ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे बीच और तुम्हारे बीच समान (बराबर) है; यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न बनाएँ तथा हममें से कोई किसी को अल्लाह के सिवा रब न बनाए। फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी हैं।)[सूरा आल-ए-इमरान : 64]
मुसलमान होने के लिए इन छह स्तंभों पर ईमान लाना होगा :
अल्लाह तआला पर तथा इस बात पर विश्वास रखना कि वह सृष्टिकर्ता, आजीविकादाता, संचालनकर्ता और मालिक है। उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है। उसकी न पत्नी है, न संतान। वही इबादत का हक़दार है। उसके साथ किसी और की इबादत नहीं की जा सकती। साथ ही इस बात का विश्वास रखना कि अल्लाह के अतिरिक्त जिन चीज़ों की इबादत की जाती है, उनकी इबादत अनुचित है।
इस बात पर ईमान कि फ़रिश्ते अल्लाह के बंदे हैं, अल्लाह ने उनको नूर से पैदा किया है और उनको एक काम यह दिया है कि वे नबियों के पास वह्य लेकर आया करते थे।
नबियों पर अल्लाह की ओर से उतरने वाली तमाम किताबों (जैसे तौरात एवं इंजील -उनके साथ छेड़-छाड़ होने से पहले तक) और अंतिम किताब पवित्र क़ुरआन पर विश्वास।
तमाम रसूलों, जैसे नूह, इबराहीम, मूसा, ईसा तथा अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिम व सल्लम पर ईमान रखना और इस बात का विश्वास रखना कि वे इन्सान थे, उनपर अल्लाह ने वह्य उतारी थी और ऐसी निशानियाँ तथा चमत्कार दिए थे, जो उनके सच्चे नबी होने को प्रमाणित करते थे।
आख़िरत के दिन पर ईमान, जब अल्लाह अगले तथा पिछले तमाम लोगों को जीवित करके दोबारा उठाएगा, अपनी सृष्टियों के दरमियान निर्णय करेगा और विश्वास रखने वालों को जन्नत तथा विश्वास न रखने वालों को जहन्नम में दाख़िल करेगा।
तक़दीर पर ईमान तथा इस बात पर विश्वास कि अल्लाह सब कुछ जानता है, उन बातों को भी जो अब तक हो चुकी हैं और उन बातों को भी जो आगे होंगी। अल्लाह ने इन्हें लिख भी रखा है। इस संसार में जो कुछ भी होता है, उसकी मर्ज़ी से होता है और वही हर चीज़ का रचयिता है।
दुनिया हमेशा रहने की जगह नहीं है ...
इसकी सारी चमक-दमक और माया-मोह के दिए बुझ जाने हैं ...
एक दिन ऐसा आएगा, जब इन्सान को अपने कर्मों का हिसाब देना पड़ेगा। वह दिन क़यामत का दिन होगा। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿وَوُضِعَ الْكِتَابُ فَتَرَى الْمُجْرِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَا وَيْلَتَنَا مَالِ هَذَا الْكِتَابِ لاَ يُغَادِرُ صَغِيرَةً وَلاَ كَبِيرَةً إِلاَّ أَحْصَاهَا وَوَجَدُوا مَا عَمِلُوا حَاضِرًا وَلاَ يَظْلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا﴾ (और किताब सामने रख दी जाएगी, तो आप अपराधियों को देखेंगे कि जो कुछ उसमें होगा, उससे डरने वाले होंगे और कहेंगे : हाय हमारा विनाश! यह कैसी किताब है, जो न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, परंतु उसने उसे संरक्षित कर रखा है। तथा उन्होंने जो कर्म किए थे, सब अंकित पाएँगे। और आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।)[सूरा अल-कह्फ़ : 49]
सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने बता दिया है कि इस्लााम ग्रहण करने से भागने वाले को अनंत काल तक जहन्नम की आग में जलना पड़ेगा।
इसलिए नुक़सान छोटा-मोटा नहीं, बल्कि बहुत बड़ा है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ﴾ (और जो इस्लाम के अलावा कोई और धर्म तलाश करे, तो वह उससे हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।)[सूरा आल-ए-इमरान : 85]
इस्लाम ही वह धर्म है, जिसके अतिरिक्त किसी धर्म को अल्लाह स्वीकार नहीं करता।
वह अल्लाह, जिसने हमें पैदा किया, हमें उसी की ओर लौटकर जाना है और यह दुनिया हमारी परीक्षा की जगह है।
हर इन्सान को इस बात का यक़ीन रखना चाहिए कि यह दुनिया बहुत छोटी है। जैसे एक स्वप्न हो। कोई नहीं जानता कि कब उसकी मौत आ जाए।
ऐसे में उसका जवाब क्या होगा, जब क़यामत के दिन उसका रचयिता उससे पूछेगा : उसने सच्चे धर्म का पालन क्यों नहीं किया? अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण क्यों नहीं किया?
वह क़यामत के दिन अपने रब को क्या जवाब देगा? हालाँकि उसके पालनहार ने उसे इस्लाम को ठुकराने के परिणाम से अवगत कर दिया था और बता दिया था कि इस्लाम को ग्रहण न करने वालों का ठिकाना जहन्नम होगा, जहाँ उनको अनंत काल तक रहना है।
अल्लाह तआला ने कहा है :﴿وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ﴾ (तथा जिन्होंने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही लोग आग (जहन्नम) वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहने वाले हैं।)[सूरा अल-बक़रा : 39]
सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने बताया है कि बहुत-से लोग उस समाज के भय से इस्लाम ग्रहण करने से गुरेज़ करते हैं, जिसमें वे जी रहे होते हैं।
बहुत-से लोग इस्लाम को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि वे अपनी उन मान्यताओं को बदलना नहीं चाहते हैं, जो उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली हैं या अपने परिवेश और समाज से प्राप्त हुई हैं और जिनके वे आदी हो गए हैं। जबकि बहुत-से लोगों का रास्ता उनको विरासत में मिला हुआ तअस्सुब (पक्षपात) एवं असत्य की तरफ़दारी रोक लेती है।
लेकिन इन तमाम लोगों के ये बहाने एवं तर्क उस दिन कुछ काम नहीं आएँगे। उस दिन वे अल्लाह के सामने इस हाल में खड़े होंगे कि उनका दामन तर्क से खाली होगा।
किसी नास्तिक का यह बहाना नहीं चलेगा कि चूँकि मैं एक नास्तिक परिवार में पैदा हुआ हूँ, इसलिए मैं नास्तिक ही रहूँगा। उसे अल्लाह की दी हुई अक़्ल को काम में लाना पड़ेगा, आकाशों एवं धरती की महानता पर ग़ौर करना पड़ेगा और अपने सृष्टिकर्ता की दी हुई अक़्ल का प्रयोग करके इस संसार के सृष्टिकर्ता का पता लगाना होगा।इसी तरह पत्थरों एवं मूर्तियों की पूजा करने वालों का यह बहाना नहीं चलेगा कि उन्होंने अपने पूर्वजों को ऐसा करते हुए पाया है। उन्हें सत्य की खोज करनी होगी और अपने नफ़्स से पूछना होगा कि मैं एक बेजान चीज़ की पूजा क्यों करूँ, जो न मेरी बात सुन सकती है, न मुझे देख सकती है और न मेरा कुछ भला कर सकती है?!
इसी तरह, एक ईसाई, जो प्रकृति एवं तर्क के विपरीत चीज़ों पर विश्वास रखता है, उसे ख़ुद से पूछना चाहिए कि रब (प्रभु) अपने बेटे को, जिसने कोई गुनाह नहीं किया था, दूसरे लोगों के गुनाहों के कारण कैसे मार सकता है?! यह तो सरासर अत्याचार है। फिर, लोगों के लिए कैसे संभव हो सकता है कि वह प्रभु के बेटे को सूली पर चढ़ा दें और मार डालें? क्या प्रभु अपने बेटे को मारने की अनुमति दिए बिना मानवता के पापों को क्षमा करने में सक्षम नहीं है? क्या प्रभु अपने बेटे की रक्षा करने की क्षमता नहीं रखता?
अतः एक समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह सत्य की खोज करे और अपने पूर्वजों का ग़लत अनुसरण न करे।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :﴿وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَى مَا أَنْزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ قَالُوا حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ﴾ (और जब उनसे कहा जाता है : आओ उसकी ओर जो अल्लाह ने उतारा है और रसूल की ओर, तो कहते हैं : हमें वही काफ़ी है, जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। क्या अगरचे उनके बाप-दादा कुछ भी न जानते हों और न मार्गदर्शन पाते हों।)[सूरा अल-माइदा : 104]
जो व्यक्ति इस्लाम ग्रहण करना चाहता हो और अपने आस-पास के माहौल से डरता हो, वह ऐसा कर सकता है कि इस्लाम ग्रहण करने के बाद अपने इस्लाम को उस समय तक छुपाए रखे, जब तक अल्लाह उसके लिए खुल कर अपने धर्म पर अमल करने का रास्ता न निकाल दे।
क्योंकि इन्सान पर फ़ौरन इस्लाम ग्रहण करना तो वाजिब है, लेकिन अगर किसी तरह की क्षति का डर हो तो अपने आस-पास के लोगों को उसकी सूचना देना ज़रूरी नहीं है।
जान लें कि जब कोई व्यक्ति इस्लाम ग्रहण कर लेगा, तो वह लाखों मुसलमानों का भाई हो जाएगा और वह अपने शहर में स्थित मस्जिद या इस्लामी आह्वान केंद्र से संपर्क करके उनसे परामार्श ले सकता है और मदद तलब कर सकता है और इससे उन्हें ख़ुशी ही होगी।
अल्लाह तआला ने कहा है :﴿وَمَنْ يَتَّقِ اللَّهَ يَجْعَلْ لَهُ مَخْرَجًا (और जो अल्लाह से डरेगा, वह उसके लिए निकलने का कोई रास्ता बना देगा।وَيَرْزُقْهُ مِنْ حَيْثُ لَا يَحْتَسِب﴾ और उसे वहाँ से रोज़ी देगा, जहाँ से वह गुमान नहीं करता।)[सूरा अल-तलाक़ : 2, 3]
क्या सृष्टिकर्ता को प्रसन्न करना, जिसने सारी नेमतें दे रखी हैं, जो हमें उस समय रोज़ी देता था, जब माँ के पेट में थे और इस समय हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा प्रदान करता है, लोगों की प्रसन्नता प्राप्त करने से ज़्यादा अहम नहीं है?
क्या दुनिया एवं आख़िरत की कामयाबी इस बात की हक़दार नहीं है कि उसके लिए इस फ़ानी दुनिया के सुखों का परित्याग किया जाए? अवश्य ही है!
अतः यह उचित नहीं होगा कि इन्सान का अतीत उसे अपना मार्ग दुरुस्त करने और सही काम करने से रोक दे।
इन्सान को आज ही सच्चा मोमिन बन जाना चाहिए। शैतान को इस बात का मौक़ा नहीं देना चाहिए कि वह उसे सत्य के अनुसरण से रोक दे।
अल्लाह तआला ने फ़रमाया है :﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَكُمْ بُرْهَانٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَأَنزلْنَا إِلَيْكُمْ نُورًا مُبِينًا (174) (ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ गया है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतार दी है।فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَاعْتَصَمُوا بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُسْتَقِيمًا﴾ फिर जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए तथा इस (क़ुरआन) को मज़बूती से थाम लिया, तो वह उन्हें अपनी विशेष दया तथा अनुग्रह में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखाएगा।)[सूरा अल-निसा : 174-175]
यदि अब तक बताई गई सारी बातें तर्कसंगत हैं और हमारे पाठक ने सच्चाई को दिल से समझ लिया है, तो उसे इस्लाम ग्रहण करने की ओर पहला क़दम उठा लेना चाहिए।
जो व्यक्ति अपने जीवन का सबसे उत्तम निर्णय लेने में सहयोग और मुसलमान होने के तरीक़े के संबंध में मार्गदर्शन चाहता हो,
उसे उसके गुनाह इस्लाम ग्रहण करने से न रोकें। क्योंकि उच्च एवं महान अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में हमें बता दिया है कि बंदा जब अपने सृष्टिकर्ता के आगे तौबा करता है, तो अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ़ कर देता है। खुद इस्लाम ग्रहण करने के बाद भी इन्सान से कुछ न कुछ गुनाह हो सकते हैं। क्योंकि हम इन्सान हैं। गुनाहों से पाक फ़रिश्ते नहीं।ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम अल्लाह से क्षमा माँगें और उसके सामने तौबा करें। जब अल्लाह देखेगा कि हमने समय गँवाए बिना सत्य को ग्रहण कर लिया है, इस्लाम को गले लगा लिया है और दोनों गवाहियाँ दे दी हैं, तो वह दूसरे गुनाह छोड़ने पर हमारी मदद करेगा। क्योंकि जो अल्लाह की ओर चलकर जाता है और सत्य को ग्रहण करता है, अल्लाह उसे और अधिक नेकी का सुयोग प्रदान करता है। इसलिए इन्सान को इस्लाम ग्रहण करने में आगे-पीछे नहीं करना चाहिए।
इसका एक प्रमाण उच्च एवं महान अल्लाह का यह कथन है :﴿قُلْ لِلَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ يَنْتَهُوا يُغْفَرْ لَهُمْ مَا قَدْ سَلَفَ﴾ ((ऐ नबी!) इन काफ़िरों से कह दें : यदि वे बाज़ आ जाएँ, तो जो कुछ हो चुका, उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा, और यदि वे फिर ऐसा ही करें, तो पहले लोगों (के बारे में अल्लाह) का तरीक़ा गुज़र ही चुका है।)[सूरा अल-अनफ़ाल: 38]
जो व्यक्ति इस्लाम ग्रहण करना चाहे, उसे कोई अनुष्ठान नहीं कराना है। किसी की उपस्थिति भी आवश्यक नहीं है। बस उसे दोनों गवाहियुं को, उनका अर्थ जानते हुए और उन पर विशवास रखते हुए, कह देना है, अतः वह यह कहे: "أشهد أن لا إله إلا الله وأشهد أن محمدًا رسول الله" (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं।) अगर इस वाक्य को अरबी भाषा में बोल सके, तो ठीक है। अगर इसमें कठिनाई हो, तो अपनी भाषा में बोल दे। इतने भर से वह मुसलमान हो जाएगा। उसके बाद वह अपना दीन सीखे, जो दुनिया में उसके सुखमय जीवन तथा आख़िरत में मुक्ति का स्रोत है।
ब्रह्माण्ड की रचना किसने की? मेरी रचना किसने की? और क्यों?
यह पालनहार, रचयिता और आजीविकादाता पवित्र एवं महान अल्लाह है।
पूज्य पालनहार अपने सभी गुणों में परिपूर्ण है
महान सृष्टिकर्ता ने हमें क्यों पैदा किया? वह हमसे क्या चाहता है?
इतनी संख्या में रसूल क्यों आए?
कोई व्यक्ति सभी रसूलों पर ईमान लाए बिना मोमिन नहीं हो सकता
इस्लाम ग्रहण करके मुझे क्या मिलेगा?
यदि मैंने इस्लाम को ठुकरा दिया, तो मेरा क्या नुक़सान होगा?
मुझे मुसलमान होने के लिए क्या-क्या करना है?
सत्य से मुँह मोड़कर अपने पूर्वजों का अनुसरण करने वालों का कोई तर्क काम नहीं देगा
क्या आप अपने जीवन का सबसे बड़ा निर्णय लेने के लिए तैयार हैं?
इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए मुझे क्या करना है?