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महत्वपूर्ण पाठ सामान्य लोगों के लिए
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लेखक: शैख
अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़
अल्लाह उनपर कृपा करे!
अल्लाह के नाम से (शुरू करता हूँ), जो बड़ा दयालु एवं दयावान है।
सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे ब्राह्मांडों का पालनहार है एवं अच्छा परिणाम अल्लाह से डरने वालों का होगा, एवं दरूद (प्रशंसा) व सलाम (शांति) हो हमारे नबी मुह़म्मद एवं आपकी समस्त आल (परिवार आदि) एवं साथियों पर।
तत्पश्चात!
ये कुछ शब्द हैं, जिनके द्वारा मैंने इस्लाम संबंधित कुछ उन विषयों का विवरण किया है, जिनका ज्ञान होना सामान्य लोगों के लिए आवश्यक है। मैंने इनका नाम रखा हैःसामान्य लोगों के लिए महत्वपूर्ण पाठअल्लाह से दुआ़ करता हूँ कि यह किताब मुसलमानों के हित में हो तथा अल्लाह तआला मेरे इस प्रयास को क़बूल करे। वह निस्संदेह बड़ा दानशील है।
अबदुल अज़ीज़ बिन अबदुल्लाह बिन बाज़
सूरा फातिहा तथा सूरा ज़लज़ला से सूरा नास तक छोटी छोटी जितनी सूरतें संभव हों उनको शुद्ध रूप से पढ़ना सिखाना, स्मरण करवाना एवं जिनको समझना आवश्यक है, उनकी व्याख्या करना।
इसलाम के पांचों स्तंभों का विवरण देना जिनमें प्रथम एवं महानतम स्तंभ है इस बात की साक्षी देना कि अल्लाह के सिवाय कोई सत्य माबूद (पूज्य) नहीं है तथा मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, इस कलिम-ए-तौहीद (एकेश्वरवाद-वाचक शब्द समूह) की व्याख्या करना एवं उसके उपबंधों (शर्तों) को समझाना। इस कलिमा का अर्थ है, अल्लाह के सिवा सारे माबूदों को अस्वीकार करना एवं इबादत (उपासना) केवल अल्लाह के लिए सिद्ध करना, जिसका कोई सहभागी नहीं है। 'ला इलाहा इल्लल्लाह' के उपबंध (शर्तें) इस प्रकार हैं: ऐसा ज्ञान जो अज्ञान के विपरीत हो, विश्वास जो संदेह के विपरीत हो, निष्ठा (इख़लास) जो शिर्क (बहुदेववाद) के विपरीत हो, सच्चाई जो झूठ के विपरीत हो, प्रेम जो घृणा के विपरीत हो, ऐसी आस्था जो (बहुदेववाद) के विपरीत हो, ऐसा अनुपालन जो रद्द करने के विपरीत हो एवं अल्लाह के सिवा सारे माबूदों को अस्वीकार करना। इन उपबंधों (शर्तों) को आने वाले दो छंदों में एकत्र किया गया है:
ज्ञान, विश्वास, निष्ठा (इख़लास) एवं तुम्हारी सच्चाई,जिस के संग प्रेम, अनुपालन एवं ग्रहण करने की इच्छाशक्ति भी पाई जाए।आठवाँ उपबंध (शर्त) यह है कि तुम अल्लाह के सिवाउन समस्त चीजों को नकार दो जिनको पूज्य मान लिया गया है।
साथ ही इस बात की गवाही देने को भी बयान करना है कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं जिसका तकाजा यह है कि उनकी बताई हुई बातों को सच्चा माना जाए, उनके आदेशों का पालन किया जाए, उनहोंने जिन बातों से रोका है, उनसे रुक जाया जाए एवं अल्लाह की इबादत, उसके तथा उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बताई हुई पद्धति के अनुसार की जाए। इसके पश्चात छात्र को इसलाम के शेष पांचों स्तंभों की शिक्षा दी जाएगी, जो इस प्रकार हैं: नमाज़, ज़कात, रोज़ा तथा अल्लाह के घर काबे का हज करना उसके लिए अनिवार्य है, जो वहाँ तक पहुंचने का सफर-ख़र्च बर्दाश्त कर सकता हो।
ईमान के स्तंभ छह हैं: अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर, उस के रसूलों (संदेशवाहकों) पर तथा आख़िरत (परलोक) पर ईमान (विश्वास) लाना एवं अच्छे तथा बुरे भाग्य पर ईमान रखना कि वे अल्लाह की ओर से होते हैं।
तौहीद के प्रकारों का विवरण देना और उसके तीन प्रकार हैं: तौहीदे रुबूबिय्यत, तौहीदे उलूहिय्यत तथा तौहीदे असमा व सिफात।
तौहीदे रुबूबिय्यत का अर्थ है इस बात पर ईमान लाना कि अल्लाह हर वस्तु का सृष्टा है, वही नियंत्रण करने वाला है एवं इन बातों में कोई उसका साझीदार नहीं।
तौहीदे उलूहिय्यत का मतलब है, इस बात पर ईमान लाना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं और इस मामले में उसका कोई साझी नहीं है। यही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का अर्थ है। अतएव नमाज़, रोज़ा आदि सारी इबादतों (उपासनाओं) को केवल अल्लाह के लिए खास करना है, किसी दूसरे के लिए उनमें से कुछ भी करना जायज नहीं।
तैहीदे असमा व सिफ़ात का अर्थ है, अल्लाह के उन सभी नामों तथा गुणों पर ईमान लाना, जो क़ुरआन एवं सही हदीसों में उल्लिखित हैं तथा उन्हें अल्लाह के लिए उपयुक्त ढंग से साबित करना, इस तरह कि उसमें न कोई विकृति हो, न इनकार, न अवस्था बयान की जाए एवं ना ही उदाहरण दिया जाए, अल्लाह के इस आदेश के अनुसारः"आप कह दें, वह अल्लाह एक है, अल्लाह सर्वसम्पन्न तथा निस्पृह है, ना उसने किसी को जन्म दिया है और ना ही किसी से जन्म लिया है, एवं उसका समकक्ष कोई नहीं।"[الصمد: पूरा]एवं अल्लाह के इस फ़रमान के अनुसार भी:"उसके जैसी कोई वस्तु नहीं एवं वह सुनने वाला तथा देखने वाला है।"[अश्-शूराः 11]
कुछ इस्लामी विद्वानों ने तौहीद की दो क़िस्में बताई हैं और तौहीदे असमा व सिफ़ात को तौहीदे रुबूबिय्यत के अंतर्गत माना है। इसमें कोई दोष भी नहीं है क्योंकि दोनों वर्गीकरणों से अस्ल उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है।
शिर्क के तीन प्रकार हैंः शिर्के अकबर (बड़ा शिर्क), शिर्के असग़र (छोटा शिर्क) तथा शिर्के ख़फ़ी(गुप्तप्राय शिर्क)।
शिर्के अकबर, मनुष्य के समस्त कर्मों को नष्ट कर देता है एवं ऐसा करने वाला सदैव जहन्नम मे रहेगा। अल्लाह तआला ने फ़रमाया:और अगर वे शिर्क करें तो उनके समस्त कर्म बरबाद हो जाएंगे।[अल-अनआमः 88]अल्लाह तआला ने दूसरी जगह फ़रमायाःमुश्रिकों (बहुदेववाद में विश्वास रखने वालों) का काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें जबकि वे स्वयं अपने ऊपर कुफ़्र के साक्षी हैं, उनके सारे कर्म व्यर्थ गए और वे सदा के लिए जहन्नम में रहने वाले हैं।[अत्-तौबाः 17]और अगर इसी हालत में उसका निधन हो जाए तो उसे क्षमादान नहीं मिलेगा तथा जन्नत उसके लिए हराम होगी जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमायाःनिस्संदेह, अल्लाह शिर्क को क्षमा नही करेगा, इसके सिवा जिसका जो गुनाह (पाप) चाहेगा, माफ़ कर देगा।[अन्-निसाः 48]अल्लाह तआला ने एक और स्थान पर फ़रमायाःजो अल्लााह के साथ किसी को साझी ठहराता है, अल्लाह ने उसके लिए जन्नत को हराम कर दिया है एवं उसको जहन्नम में आश्रय मिलेगा तथा ज़ालिमों (अत्याचारियों) की कोई सहायता करने वाला नहीं होगा।[अल्-माइदाः 72]
मरे हुए लोगों तथा मूर्तियों को पुकारना, उनसे सहायता मांगना, उनके लिए मन्नत मानना एवं बलि चढ़ाना आदि शि्र्के अकबर के अंतर्गत आते हैं।
शिर्के असग़र हर वह कर्म है जिसको किताब व सुन्नत में शिर्क कहा गया हो, पर वह शिर्के अकबर ना हो जैसे रियाकारी यानी दिखावा, अल्लाह के सिवा किसी वस्तु की कसम खाना एवं 'जो अल्लाह चाहे एवं अमुक व्यक्ति चाहे' आदि कहना, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया हैःमुझे तुम्हारे बारे में जिस बात का डर सबसे अधिक है, वह शिर्के असग़र है।आपसे शर्के असग़र के संबंध में पूछा गया तो आपने फ़रमाया:रियाकारी (दिखावा)।इमाम अहमद, तबरानी तथा बैहक़ी ने महमूद बिन लबीद अनसारी -रज़ियल्लाहु अनहु- से 'जैयिद सनद' (वर्णनकर्ताओं के विश्वसनीय क्रम) के साथ इस हदीस का वर्णन किया है एवं तबरानी ने इसे कई 'जैयिद सनदों' से 'महमूद बिन लबीद के हवाले से, वह राफ़े बिन ख़दीज से और राफ़े, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम' के तरीक़ (क्रम) से इसका वर्णन किया है।आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का एक फ़रमान यह भी हैःजो अल्लाह के सिवा किसी और वस्तु की कसम खाता है,वह शिर्क करता है।इमाम अहमद ने सही सनद के साथ इस हदीस का वर्णन उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- सेकिया है, जबकि अबू दाऊद तथा तिरमिज़ी ने इब्ने उमर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- से सही सनद के साथ रिवायत (वर्णन) किया है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाःजो अल्लाह के सिवा किसी और वस्तु की सौगंध खाता है, वह शिर्क करता है।आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का एक फ़रमान यह भी हैःजो अल्लाह चाहे एवं अमुक चाहे' ना कहो, बल्कि 'जो अल्लाह चाहे फिर अमुक चाहे' कहो।इसे अबू दाऊद ने ह़ुज़ैफ़ा बिन यमान -रज़ियल्लाहु अनहु- से सही सनद के साथ रिवायत किया है।
परन्तु इस शिर्क से कोई मुरतद (धर्म छोड़ने वाला) नहीं होता एवं न ही कोई इसके कारण सदैव जहन्नम में रहेगा, पर यह तौहीद की संपूर्णता के विपरीत है, जिसका अनुपालन ज़रूरी है।
तीसरे प्रकार अर्थात शिर्के ख़फ़ी (गुप्त शिर्क) का प्रमाण अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का यह कथन हैःक्या मैं तुम्हें वह बात न बता दूं जिसका मुझे तुम्हारे बारे में दज्जाल से भी अधिकतर भय है? सहाबा -रज़ियल्लाहु अनहुम- ने कहाः अवश्य, हे अल्लाह के रसूल! आपने कहाः शिर्के ख़फ़ी जैसे आदमी दिखावे के लिए अच्छे ढंग से नमाज़ पढ़े।इसको इमाम अहमद ने अपनी मुसनद में अबू सईद ख़ुदरी -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत किया है।वैसे, शिर्क को केवल दो भागों में भी विभक्त किया जा सकता हैःअकबर (बड़ा) एवं असग़र (छोटा)रही बात शिर्के ख़फ़ी (गुप्त शिर्क) की, तो यह दोनों को शामिल है।अकबर (बड़े शिर्क) में ख़फ़ी का उदाहरण है मुनाफ़िकों (जो केवल दिखावे के लिए इसलाम का दावा करें) का शिर्क; क्योंकि वे अपनी गलत आस्था को छिपाते हैं एवं अपनी जान बचाने हेतु इसलाम का दिखावा करते हैं।असग़र (छोटे शिर्क) में ख़फ़ी का उदाहरण रियाकारी एवं दिखावा है, जिस का विवरण उपर्युक्त हदीसों में गुज़र चुका है।
एहसान भी इसलाम का एक स्तंभ है जिसका सारांश यह है कि आप अल्लाह की उपासना इस प्रकार करें कि मानो आप उस को देख रहे हैं, यदि यह कल्पना न उत्पन्न हो सके कि आप उसको देख रहे हैं तो (यह स्मरण रखें कि ) वह आपको अवश्य देख रहा हैl
नमाज़ की नौ शर्तें हैंःइसलाम, समझ, होश संभालने की आयु, हदस (नापाकी) को दूर करना, नजासत (गन्दगी) को साफ़ करना, गुप्तांग को छिपाना, समय का आ जाना, क़िबला की तरफ मुंह करना तथा नीयत करना।
नमाज़ के अरकान (आधारशीलाएं) चौदह हैंःसक्षम होने पर खड़ा होना, तकबीरे तहरीमा (नमाज की प्रथम तकबीर), सूरा फ़ातिहा पढ़ना, रुकू करना, रुकू के पश्चात सीधे खड़ा होना, सात अंगों पर सजदा करना, सजदे से उठना, दोनों सजदों के बीच बैठना, उपरोक्त समस्त कर्मों में शांति एवं ठहराव, अरकान (आधारों) की अदायगी में क्रम, आख़िरी तशह्हुद, तथा उसके लिए बैठना, अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दरूद भेजना एवं दोनों सलाम।
नमाज़ के वाजिब (आवश्यक) कर्म आठ हैंःतकबीरे तहरीमा के सिवा, सारी तकबीरें, इमाम तथा अकेले दोनों का سمع الله لمن حمده तथा ربنا ولك الحمد कहना, रुकू में سبحان ربي العظيم कहना, सजदे में سبحان ربي الأعلى कहना, दोनें सजदों के दरमियान رب اغفر لي कहना, प्रथम तशह्हुद और उसके लिए बैठना।
तशह्हुद निम्नलिखित है:हर प्रकार का सम्मान, समग्र दुआ़एँ एवं समस्त अच्छे कर्म व अच्छे कथन अल्लाह के लिए हैं। हे नबी! आपके ऊपर सलाम, अल्लाह की कृपा तथा उसकी बरकतों की वर्षा हो, हमारे ऊपर एवं अल्लाह के भले बंदों के ऊपर भी शांति की जलधारा बरसे, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य माबूद (पूज्य) नहीं एवं मुहम्मद अल्लाह के बंदे तथा उस के रसूल हैं।फिर अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दरूद भेजेगा एवं उन के लिए बरकत की दुआ़ करते हुए कहेगाःहे अल्लाह! मुहम्मद एवं उनके परिवार पर उसी प्रकार अपनी रहमत भेज, जिस प्रकार से तूने इबराहीम एवं उनके परिवार पर अपनी रहमत भेजी थी। निस्संदेह, तू प्रशंसापात्र तथा सम्मानित है। एवं मुहम्मद तथा उनके परिवार पर उसी प्रकार से बरकतों की बारिश कर जिस प्रकार से तूने इबराहीम एवं उनके वंशज पर की थी। निस्संदेह, तू प्रशंसापात्र तथा सम्मानित है।फिर आख़िरी तशह्हुद में जहन्नम की यातना, क़ब्र के अज़ाब, जीवन एवं मौत की आज़माइश एवं दज्जाल के फ़ितने से अल्लाह का आश्रय मांगेगा। फिर जो दुआ़ चाहेगा पढ़ेगा, विशेष रूप से कुरआन एवं हदीस से सिद्ध दुआ़एँ। जैसेःहे अल्लाह! मझे क्षमता दे कि मैं तेरा ज़िक्र करूँ, तेरा शुक्र करूँ एवं अच्छे ढंग से तेरी उपासना करूँ। हे अल्लाह! मैंने अपनी आत्मा पर बड़ा अत्याचार किया है एवं तेरे सिवा कोई पापों को क्षमा करने का अधिकार नहीं रखता, इसलिए तू मुझे अपनी क्षमा की छाया प्रदान कर एवं मुझपर कृपा कर। निस्संदेह, तू क्षमा करने वाला तथा अति दयालु है।
ज़ुहर, अस्र, मग़रिब तथा इशा में प्रथम तशह्हुद में 'शहादतैन' के पश्चात तीसरी रकअ़त के लिए खड़ा हो जाएगा। परन्तु यदि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दरूद भेजता है तो यह अफ़ज़ल (उत्तम) है, क्योंकि इसे वह सारी हदीसें शामिल हैं। फिर तीसरी रकअ़त के लिए खड़ा होगा।
कुछ सुन्नतें इस प्रकार हैंः
इस्तिफ़्ताह़ (शुरूआती दुआ पढ़ना)।
रुकू से पहले और रुकू के बाद खड़े होने की अवस्था में दायीं हथेली को बायीं पर सीने के ऊपर रखना।
प्रथम तकबीर, रकू में जाते समय, रकू से उठते समय और प्रथम तशह्हुद से तीसरी रकअ़त के लिए खड़ा होते समय, दोनों हाथों को कंधों के अथवा कानों के बराबर इस तरह बुलंद करना कि अंगुलियां मिली तथा फैली रहें।
रुकू एवं सजदे में एक से अधिक बार तसबीह पढ़ना।
रुकू से उठने के बाद ربنا ولك الحمد से अधिक जो कहा जाए एवं दोनों सजदों के दरमियान एक बार اللهم اغفرلي से अधिक जो कहा जाए।
रुकू करते समय सिर एवं पीठ को समानांतर रखना।
सजदा करते समय बांहों को पहलुओं से तथा पेट को जांघों से एवं जांघों को टांगों से अलग रखना।
सजदा करते समय, बाज़ुओं को ज़मीन से अलग रखना।
प्रथम तशह्हुद तथा दोनों सजदों के दरमियान, बाएँ पैर को बिछाकर उसपर बैठना एवं दाएँ पैर को खड़ा रखना।
चार रकअ़त एवं तीन रकअ़त वाली नमाज़ों में अंतिम तशह्हुद में तवर्रुक (एक विशेष बैठक) करना, अर्थात अपने चूतड़ पर बैठना, बाएँ पैर को दाएँ पैर के नीचे रखना एवं दाएँ पैर को खड़ा रखना।
प्रथम एवं दूसरे तशह्हुद में, बैठने के समय से अंत तक तर्जनी से इशारा करना एवं दुआ़ करते समय उसे हिलाते रहना।
प्रथम तशह्हुद में अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एवं इबराहीम -अ़लैहिस सलातु वस्सलाम- तथा उनके वंशज पर दरूद भेजना एवं उनके लिए बरकत की दुआ़ करना।
अंतिम तशह्हुद में दुआ़ करना।
फ़ज्र, जुमा, दोनों ईदों, इसतिसक़ा (वर्षा मांगने के लिए पढ़ी जाने वाली नमाज़) एवं मग़रिब तथा इशा की पहली दो रकअ़तों में जहरी (बूलंद आवाज़ से) क़ुरआन पढ़ना।
ज़ुहर, अस्र, मग़रिब की तीसरी रकअ़त एवं इशा की आख़िर की दोनों रकअ़तों में सिर्री (एकदम धीमी आवाज़ से) क़ुरआन पढ़ना।
फ़ातिहा के अतिरिक्त कुछ आयतें पढ़ना। इनके अलावा भी कुछ सुन्नतें हैं, जैसे वे दुआ़एँ जो इमाम, मुक़तदी (इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) एवं अकेला व्यक्ति रुकू से उठने के बाद ربنا ولك الحمد के अलावा पढ़ते हैं, एवं रकू करते समय हाथों को घुटनों पर इस तरह रखना कि अंगुलियां खुली रहें। इन सभी सुन्नतों का ख़्याल रखा जाना चाहिए।
नमाज़ को निष्काम करने वाली वस्तुएँ आठ हैंः
याद रहते हुए जान-बूझ कर बात करना, परन्तु यदि कोई अज्ञानतावश या भूल कर बात कर ले तो उसकी नमाज़ निष्फल नहीं होगी।
हँसना
खाना
पीना
गुप्तांग का खुल जाना
क़िबले की ओर से बहुत ज़्यादा फिर जाना
नमाज़ में लगातार बेकार की हरकतें करना
वज़ू का टूटना
वज़ू की शर्तें दस हैंःइसलाम, अक़्ल, होश संभालने की आयु, नीयत, वज़ू सम्पूर्ण होने तक नीयत के हुक्म को जारी रखना, वज़ू को वाजिब (आवश्यक) करने वाली वस्तुओं का ख़त्म होना, वज़ू से पहले (शौच के पश्चात) जल अथवा पत्थर आदि का उपयोग करना, जल का पवित्र एवं जायज होना, जो वस्तु जल को चमड़े तक पहुँचने से रोके, उसे दूर करना एवं जिसका ह़दस अर्थात नापाकी का स्राव लगातार हो, उसके लिए नमाज़ के समय का आ जाना।
वज़ू के आवश्यक कर्म छह हैंःचेहरे को धोना, कुल्ला करना तथा नाक में पानी डालना इसी के अंतर्गत आते हैं, कोहनी समेत दोनों हाथों को धोना, पूरे सिर का मसह (हाथ फेरना) करना, दोनों कान उसी के अंतर्गत आते हैं, टखनों समेत पैरों को धोना, वज़ु के कार्य क्रमानुसार एवं लगातार करना,चेहरे, दोनों हाथों और दोनों पैरों को तीन-तीन बार धोना सुन्नत है और एक बार फ़र्ज़। परन्तु सिर का मसह सही हदीसों के अनुसार एक ही बार सुन्नत है।
वज़ू को तोड़ने वाली वस्तुएँ छह हैंःपेशाब एवं पाखाने के रास्ते निकलने वाली वस्तु, शरीर से अधिक मात्रा में निकलने वाली नजासत (गंदगी), नींद आदि के कारण होश में ना रहना, बिना किसी आड़ के अपने आगे या पीछे वाले गुप्तांग को छूना, ऊँट का मांस खाना और इसलाम को त्याग देना। अल्लाह तआ़ला हमें एवं सारे मुसलमानों को इससे बचाए।
महत्वपूर्ण घोषणा: सही बात यह है कि मरे हुए व्यक्ति को स्नान देने से वज़ू नहीं टूटता, क्योंकि इस बात की कोई दलील नहीं है। यही अधिकतर आलिमों की राय है। पर यदि मृतक के गुप्तांग पर बिना किसी आड़ के हाथ पड़ जाए तो वज़ू टूट जाएगा और नमाज़ पढ़ने के लिए नया वज़ू करना अनिवार्य होगा।
मृतक को स्नान देने वाले के लिए आवश्यक है कि वह बिना आड़ के उसके गुप्तांग को स्पर्श ना करे। इसी प्रकार, विद्वानों के दो मतों में से अधिक सही मत के अनुसार, औरत को स्पर्श करने से भी वज़ू नहीं टूटेगा, चाहे वासना सहित स्पर्श करे अथवा बिना वासना के, जबतक (स्पर्श करने वाले के गुप्तांग से) कुछ ना निकले, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे मेें आया है कि आपने अपनी किसी पत्नी का चुंबन लिया और वज़ू किए बिना नमाज़ पढ़ ली।
रही बात सूरा अन-निसा एवं सूरा अल-माइदा की दो आयतों की, जिनमें है किः"अथवा महिलाओं को स्पर्श करो"[सूरा अन्-निसाः 43][सूरा अल-माइदाः 6]तो इन दोनों स्थानों में आशय संभोग है, यही उलेमा के दो दृष्टिकोणों में अधिक सही दृष्टिकोण है और यही इब्ने अ़ब्बास -रज़ियल्लाहु अनहुमा- तथा सलफ़ अर्थात पहले के विद्वानों एवं ख़लफ़ (बाद में आने वाले विद्वानों) के एक समूह का मत है।अल्लाह तआ़ला ही सुयोग एवं क्षमता देने वाला है।
जैसे सच्चाई, ईमानदारी, पाकबाज़ी, लज्जा, वीरता, दानशीलता, वफ़ादारी, हर उस काम से दूर रहना जिसे अल्लाह ने हराम घोषित किया है और अच्छा पड़ोसी बनना, सामर्थ्य के अनुसार अभावग्रस्तों की सहायता करना आदि शिष्ट व्यवहार जो क़ुरआन एवं हदीसों प्रमाणित हैं।
कुछ इसलामी शिष्टाचार इस प्रकार हैंःसलाम करना, हँसमुख होना, दाएँ हाथ से खाना-पीना, 'बिस्मिल्लाह' कहकर खाना आरंभ करना एवं अंत में 'अल-हमदु लिल्लाह' कहना, छींक आने के बाद 'अल-हमदु लिल्लाह' कहना, छींकने वाले को जवाब देना, बीमार को देखने के लिए जाना, जनाज़े की नमाज़ एवं दफ़नाने के लिए जाना, मस्जिद अथवा घर में प्रवेश करने एवं निकलने के धार्मिक आदाब, यात्रा के आदाब, माता-पिता, संबंधियों, पड़ोसियों, छोटों तथा बड़ों के संग आच्छा व्यवहार करना, बच्चे के जन्म पर बधाई देना, शादी के समय बरकत की दुआ़ देना, मुसीबत (आपदा) के समय दिलासा देना एवं कपड़ा तथा जूता पहनने-उतारने के इसलामी आदाब आदि।
जैसे घातक वस्तुएं जो इस प्रकार हैंः शिर्क करना, जादूगरी, बिना हक़ के हत्या करना, सूद लेना, अनाथ का माल हड़पना, रणभूमि से फ़रार होना एवं मोमिन पाकदामन महिलाओं पर झूठा लांछन लगाना।
इसी प्रकार से माता-पिता का आज्ञाकारी ना होना, रिश्तों और नातों को तोड़ना, झूठी गवाही देना, झूठी कसम खाना, पड़ोसी को कष्ट देना, लोगों की जान, माल एवं उनके सम्मान पर आक्रमण करना, नशीले पदार्थों का सेवन करना, जूआ खेलना, गीबत एवं चुगली करना आदि जिन से अल्लाह तआ़ला एवं उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) ने रोका है।
नीचे इसका विवरण प्रस्तुत हैःप्रथममर रहे व्यक्ति को इस्लाम का कलिमा पढ़ने के लिए प्रेरित करनामर रहे व्यक्ति को لا إله إلا الله याद दिलाना चाहिए क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया हैःमर रहे लोगों को لا إله إلا الله पढ़ने के लिए प्रेरित करो।इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने अपनी सह़ीह़ (मुस्लिम शरीफ़) में रिवायत किया है।इस हदीस में الموتى से मुराद ऐसे लोग हैं, जिनपर मौत के निशान ज़ाहिर हो चुके हों।दूसरी बातजब उसकी मृत्यु का विश्वास हो जाए तब उसकी आंखें एवं मुंह बंद कर दिए जाएँ।क्योंकि हदीस में इस का प्रमाण मौजूद है।तीसरी बातमुसलमान मुर्दे को नहलाना वाजिब है, सिर्फ उस आदमी को नहलाने की ज़रूरत नहीं जो रणभूमि में शहीद हुआ हो।उसे ना नहलाया जाएगा, ना उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी। बल्कि उसे उन्हीं कपड़ों में दफ़न किया जाएगा। क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) ने उहुद की जंग में शहीद होने वालों को ना नहलवाया और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़ी।चौथी बातमृतक को स्नान कराने का तरीकाउसके गुप्तांग को ढांक दिया जाए।फिर उसे थोड़ा उठाया जाए एवं उसके पेट को धीरे से निचोड़ा जाए।फिर स्नान देने वाला अपने हाथ पर कोई चीथड़ा आदि लपेट ले एवं उसके गुप्तांग को साफ़ करे।फिर उसे नमाज़ वाला वज़ू कराए।फिर उस के सिर एवं उस की दाढ़ी को जल एवं बेरी के पत्तों आदि से धोए।फिर उसका दायां पहलू फिर उस का बायां पहलू धोया जाए।फिर उसे इसी तरह दूसरी एवं तीसरी बार स्नान दे।हर बार उस के पेट पर हाथ फेरा जाए। अगर कुछ निकले तो उसे धो डाले एवं गुप्तांग को रूई आदि से बंद कर दे।यदि इससे ना रुके तो गर्म मिट्टी से अथवा नवीन स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों के माध्यम से रोके।और उसे दोबारा वज़ू कराए। यदि तीन बार से साफ़ ना हो तो चार बार अथवा पांच बार स्नान दे। फिर कपड़े से पोंछे। फिर सजदे की जगहों पर तथा उन अंगों पर सुगंध लगाए जिनमें गंदगी जमा होती है। यदि पूरे शरीर पर लगाए तो बेहतर है। फिर उसके कफ़न को कपूर की धौनी दे।मूँछ अथवा नाखून लंबे हों तो काट दे। ना भी काटे तो कोई बात नहीं। उसके बालों को ना सँवारे, ना उसके गुप्तांग के बालों को साफ़ करे एवं ना ही उसका ख़तना करे क्योंकि इन बातों का कोई प्रमाण नहीं है। महिला के बालों को तीन चोटियों में बाँटकर सर के पिछली तरफ डाल दिए जाएँ।पाँचवीं बातमृतक को कफ़नाना
उसे ना नहलाया जाएगा, ना उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी। बल्कि उसे उन्हीं कपड़ों में दफ़न किया जाएगा। क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) ने उहुद की जंग में शहीद होने वालों को ना नहलवाया और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़ी।
चौथी बात
मृतक को स्नान कराने का तरीका
उसके गुप्तांग को ढांक दिया जाए।
फिर उसे थोड़ा उठाया जाए एवं उसके पेट को धीरे से निचोड़ा जाए।
फिर स्नान देने वाला अपने हाथ पर कोई चीथड़ा आदि लपेट ले एवं उसके गुप्तांग को साफ़ करे।
फिर उसे नमाज़ वाला वज़ू कराए।
फिर उस के सिर एवं उस की दाढ़ी को जल एवं बेरी के पत्तों आदि से धोए।
फिर उसका दायां पहलू फिर उस का बायां पहलू धोया जाए।
फिर उसे इसी तरह दूसरी एवं तीसरी बार स्नान दे।
हर बार उस के पेट पर हाथ फेरा जाए। अगर कुछ निकले तो उसे धो डाले एवं गुप्तांग को रूई आदि से बंद कर दे।
यदि इससे ना रुके तो गर्म मिट्टी से अथवा नवीन स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों के माध्यम से रोके।
और उसे दोबारा वज़ू कराए। यदि तीन बार से साफ़ ना हो तो चार बार अथवा पांच बार स्नान दे। फिर कपड़े से पोंछे। फिर सजदे की जगहों पर तथा उन अंगों पर सुगंध लगाए जिनमें गंदगी जमा होती है। यदि पूरे शरीर पर लगाए तो बेहतर है। फिर उसके कफ़न को कपूर की धौनी दे।
मूँछ अथवा नाखून लंबे हों तो काट दे। ना भी काटे तो कोई बात नहीं। उसके बालों को ना सँवारे, ना उसके गुप्तांग के बालों को साफ़ करे एवं ना ही उसका ख़तना करे क्योंकि इन बातों का कोई प्रमाण नहीं है। महिला के बालों को तीन चोटियों में बाँटकर सर के पिछली तरफ डाल दिए जाएँ।
पाँचवीं बात
मृतक को कफ़नाना
बेहतर यह है कि पुरुष को तीन कपड़ों में कफ़नाया जाए, जिनमें ना कमीज हो ना पगड़ी। लेकिन अगर कमीज, तहबंद एवं एक लपेटने वाले कपड़े में कफ़नाया जाए तो कोई हर्ज नहीं।
एवं महिला को पाँच कपड़ों में कफ़नाया जाएगा। कमीज, दुपट्टा, तहबंद तथा दो लपेटने वाले कपड़े। बच्चे को एक, दो अथवा तीन कपड़ों में एवं बच्ची को कमीज तथा दो लपेटने वाले कपड़ों में कफ़नाया जाएगा।
हाँ, पुरुष, महिला और बच्चे, सबके लए वाजिब केवल एक कपड़ा है, जो समस्त शरीर को छिपा दे। परन्तु, मृतक यदि एहराम की अवस्था में हो तो उसे जल एवं बेरी के पत्तों से स्नान दिया जाएगा एवं एक तहबंद तथा एक चादर आदि में कफ़नाया जाएगा। ना उसका सिर ढाँका जाएगा और ना उसका चेहरा और ना ही उसे सुगंध लगाई जाएगी, क्योंकि क़यामत के दिन उसे लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक पुकारता हुआ पुनर्जीवित किया जाएगा, जैसा कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की सहीह हदीस से साबित है। और एहराम की हालत में मरने वाली महिला को साधारण महिलाओं की तरह कफ़नाया जाएगा, मगर उसे सुगंध नहीं लगाई जाएगी एवं निक़ाब द्वारा उसका चेहरा नहीं ढाँका जाएगा एवं उसके हाथों को दस्ताने नहीं पहनाए जाएंगे। मगर उसका चेहरा तथा उसके हाथ कफ़न में लपेटे जाएंगे, जैसा कि इसका विवरण पहले दिया जा चुका है।
छठी बातमृतक को स्नान देने, उसके जनाज़े की इमामत करने एवं उसे दफ़न करने का सबसे अधिक हक़दार कौन है?
मृतक को स्नान देने, उसके जनाज़े की इमामत करने एवं उसे दफ़न करने का सबसे अधिक हक़दार कौन है?
मृतक को स्नान देने, उसके जनाज़े की इमामत करने एवं उसे दफ़न करने का सबसे अधिक हकदार वह व्यक्ति है जिसे मृतक ने वसीयत की हो, फिर पिता, फिर दादा, फिर जो जितना मृतक का निकटवर्ती संबंधी हो। यह हुई पुरुष की बात।
एवं महिला को स्नान देने का सबसे ज्यादा अधिकार उस महिला को प्राप्त है जिसे मृतक ने वसीयत की हो, फिर माता, फिर पिता, फिर जो जितनी निकटवर्ती महिला हो। पति-पत्नी के लिए उत्तम यह है कि एक-दूसरे को स्नान दे, क्योंकि अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अनहु- को उनकी पत्नी ने नहलाया था एवं अ़ली -रज़ियल्लाहु अनहु- ने अपनी पत्नी फ़ातिमा -रज़ियल्लाहु अनहा- को स्नान दिया था।
सातवीं बातजनाज़े की नमाज़ का तरीकाचार तकबीरें कहेगा। प्रथम तकबीर के बाद सूरा फ़ातिहा पढ़ेगा। यदि उसके साथ कोई छोटी सूरत अथवा एक आयत या दो आयतें पढ़ ले तो अच्छी बात है, क्योंकि इस संबंध में इब्ने अ़ब्बास -रज़ियल्लाहु अनहुमा- की हदीस मौजूद है। फिर दूसरी तकबीर कहे एवं अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) पर दरूद भेजे, तशह्हुद की तरह, फिर तीसरी तकबीर कहे तथा यह दुआ़ पढ़ेःहे अल्लाह! हममें से जो जीवित हैं और जिनकी मृत्यु हो गई है, हममें से जो उपस्थित हैं और अनुपस्थित हैं, चाहे वह छोटे हों या बड़े, पुरुष हों या महिलाएँ, उन सबको क्षमा कर दे। हे अल्लाह! हममें से जिसे तू जीवित रखेगा, उसे इसलाम पर जीवित रख एवं जिसे मृत्यु देगा, उसे ईमान पर मृत्यु दे। हे अल्लाह! उसे क्षमा कर दे, उस पर कृपा कर, उसे समस्त आपदाओं से सुरक्षित रख, उसके पापों को मिटा दे, उसका अच्छा स्वागत-सत्कार करना, उसकी क़ब्र को विस्तारित कर दे, उसे जल,तुषार तथा ओले से स्नान करवा, उसे पापों से उसी प्रकार साफ़ कर दे जिस प्रकार सफ़ेद कपड़े को गंदगी से निर्मल किया जाता है, उसे पृथ्वी से उत्तम घर एवं उत्तम परिवार प्रदान कर, उसे जन्नत में प्रवेश करा तथा क़ब्र के दंड से मुक्ति दे, उसकी क़ब्र को प्रशस्त एवं ज्योतिर्मय कर दे। ऐ अल्लाह! हमें उसके स़वाब से वंचित ना कर एवं उसके पश्चात पथभ्रष्ट मत कर।फिर चौथी तकबीर कहेगा एवं दाईं ओर एक सलाम कहेगा।एवं हर तकबीर के साथ हाथ उठाना मुसतहब है। यदि जनाज़ा महिला का हो तो कहा जाएगाः अल्लाहुम्मग़फिर लहा...इसी प्रकार से अंत तक।एवं जब दो जनाज़े हों तो कहा जाएगाः अल्लाहुम्मग़फ़िर लहुमा... इसी प्रकार से अंत तक।और अगर जनाज़े दो से अधिक हों तो कहा जाएगा कि अल्लाहुम्मग़फ़िर लहुम...इसी प्रकार से अंत तक।और अगर बच्चे का जनाज़ा हो तो मग़फ़िरत की दुआ़ के स्थान में यह कहा जाएगाःहे अल्लाह! इसे पहले पहुंचने वाला, इसके माता-पिता के लिए पुण्य का कोश एवं ऐसा सिफ़ारिश करने वाला बना दे, जिसकी सिफ़ारिश सुनी जाए। हे अल्लाह! इसके द्वारा उनके पलड़ों को भारी कर दे, उन्हें बड़ा स़वाब प्रदान कर, इस बच्चे को पहले मरे हुए मोमिन सज्जनों से मिला दे, इबराहीम - अ़लैहिस सलातु वस्सलाम - द्वारा इसका प्रतिपालन कर, एवं अपनी कृपा से इसे जहन्नम के दंड से मुक्ति प्रदान कर।सुन्नत यह है कि इमाम पुरुष के सिर के बराबर एवं महिला के बीच में खड़ा हो। यदि जनाज़ा अनेक हों तो पुरुष इमाम के निकट हो एवं महिला क़िबले के निकट हो।यदि उनके संग बच्चे भी हों तो क्रमानुसार बच्चे को, फिर महिला, फिर बच्ची को रखा जाएगा, एवं बच्चे का सिर पुरुष के सिर के बराबर, महिला का मध्य भाग पुरुष के सिर के बराबर, बच्ची का सिर महिला के सिर के बराबर, एवं बच्ची का मध्य भाग पुरुष के सिर के बराबर होगा, एवं सकल मुक़तदी (इमाम के पीछे के लोग) इमाम के पीछे होंगे। परन्तु यदि किसी एक व्यक्ति को जगह ना मिले तो वह इमाम की दाईं ओर खड़ा हो सकता है।आठवीं बातमृतक को दफ़न करने का तरीकाशरीअ़त के अनुसार, क़ब्र को आधे मनुष्य के बराबर गहरा बनाना चाहिए, जिसमें क़िबले की ओर एक लह़द (क़ब्र से युक्त मेहराबदार छत- sepulchre) हो, एवं मृतक को लहद के भीतर उसके दाएँ पहलू पर लिटाया जाएगा, कफ़न के बंधनों को खोल दिया जाएगा एवं कफ़न को छोड़ दिया जाएगा, परुष अथवा महिला दोनों के चेहरे को खुला नहीं रखा जाएगा, एवं लह़द को ईंट-गारे द्वारा बंद कर दिया जाएगा; ताकि अंदर धूल-मिट्टी ना पहुंच सके।यदि ईंट उपलब्ध ना हो तो तख़्तियों, पत्थरों अथवा लकड़ियों द्वारा ढाँक दिया जाएगा, फिर मिट्टी डाली जाएगी और इस अवस्था में यह दुआ़ कहना मुसतहब है:अल्लाह के नाम से एवं अल्लाह के रसूल के धर्म पर।क़ब्र को एक बित्ता के बराबर ऊँचा किया जाएगा, उसके ऊपर यदि संभव हो तो कंकड़ बिछा दिए जाएंगे एवं जल छिड़का जाएगा।यह बात शरीयत (इसलामी विधान) के अंतर्गत है कि मृतक के साथ जाने वाले क़ब्र के समीप खड़े हों तथा मृतक के लिए दुआ़ करें, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) दफ़न के पश्चात खड़े होते एवं कहते:तुम लोग अपने भाई के लिए क्षमा मांगो एवं दुआ़ करो कि वह प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ एवं अडिग रह सके, क्योंकि उससे अभी प्रश्न पूछे जाएंगे।नव्वीं बातयदि किसी की जनाज़े की नमाज़ छूट गई हो तो वह दफ़न के बाद पढ़ सकता है।
जनाज़े की नमाज़ का तरीका
चार तकबीरें कहेगा। प्रथम तकबीर के बाद सूरा फ़ातिहा पढ़ेगा। यदि उसके साथ कोई छोटी सूरत अथवा एक आयत या दो आयतें पढ़ ले तो अच्छी बात है, क्योंकि इस संबंध में इब्ने अ़ब्बास -रज़ियल्लाहु अनहुमा- की हदीस मौजूद है। फिर दूसरी तकबीर कहे एवं अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) पर दरूद भेजे, तशह्हुद की तरह, फिर तीसरी तकबीर कहे तथा यह दुआ़ पढ़ेः
हे अल्लाह! हममें से जो जीवित हैं और जिनकी मृत्यु हो गई है, हममें से जो उपस्थित हैं और अनुपस्थित हैं, चाहे वह छोटे हों या बड़े, पुरुष हों या महिलाएँ, उन सबको क्षमा कर दे। हे अल्लाह! हममें से जिसे तू जीवित रखेगा, उसे इसलाम पर जीवित रख एवं जिसे मृत्यु देगा, उसे ईमान पर मृत्यु दे। हे अल्लाह! उसे क्षमा कर दे, उस पर कृपा कर, उसे समस्त आपदाओं से सुरक्षित रख, उसके पापों को मिटा दे, उसका अच्छा स्वागत-सत्कार करना, उसकी क़ब्र को विस्तारित कर दे, उसे जल,तुषार तथा ओले से स्नान करवा, उसे पापों से उसी प्रकार साफ़ कर दे जिस प्रकार सफ़ेद कपड़े को गंदगी से निर्मल किया जाता है, उसे पृथ्वी से उत्तम घर एवं उत्तम परिवार प्रदान कर, उसे जन्नत में प्रवेश करा तथा क़ब्र के दंड से मुक्ति दे, उसकी क़ब्र को प्रशस्त एवं ज्योतिर्मय कर दे। ऐ अल्लाह! हमें उसके स़वाब से वंचित ना कर एवं उसके पश्चात पथभ्रष्ट मत कर।
फिर चौथी तकबीर कहेगा एवं दाईं ओर एक सलाम कहेगा।
एवं हर तकबीर के साथ हाथ उठाना मुसतहब है। यदि जनाज़ा महिला का हो तो कहा जाएगाः अल्लाहुम्मग़फिर लहा...इसी प्रकार से अंत तक।
एवं जब दो जनाज़े हों तो कहा जाएगाः अल्लाहुम्मग़फ़िर लहुमा... इसी प्रकार से अंत तक।
और अगर जनाज़े दो से अधिक हों तो कहा जाएगा कि अल्लाहुम्मग़फ़िर लहुम...इसी प्रकार से अंत तक।
और अगर बच्चे का जनाज़ा हो तो मग़फ़िरत की दुआ़ के स्थान में यह कहा जाएगाः
हे अल्लाह! इसे पहले पहुंचने वाला, इसके माता-पिता के लिए पुण्य का कोश एवं ऐसा सिफ़ारिश करने वाला बना दे, जिसकी सिफ़ारिश सुनी जाए। हे अल्लाह! इसके द्वारा उनके पलड़ों को भारी कर दे, उन्हें बड़ा स़वाब प्रदान कर, इस बच्चे को पहले मरे हुए मोमिन सज्जनों से मिला दे, इबराहीम - अ़लैहिस सलातु वस्सलाम - द्वारा इसका प्रतिपालन कर, एवं अपनी कृपा से इसे जहन्नम के दंड से मुक्ति प्रदान कर।
सुन्नत यह है कि इमाम पुरुष के सिर के बराबर एवं महिला के बीच में खड़ा हो। यदि जनाज़ा अनेक हों तो पुरुष इमाम के निकट हो एवं महिला क़िबले के निकट हो।
यदि उनके संग बच्चे भी हों तो क्रमानुसार बच्चे को, फिर महिला, फिर बच्ची को रखा जाएगा, एवं बच्चे का सिर पुरुष के सिर के बराबर, महिला का मध्य भाग पुरुष के सिर के बराबर, बच्ची का सिर महिला के सिर के बराबर, एवं बच्ची का मध्य भाग पुरुष के सिर के बराबर होगा, एवं सकल मुक़तदी (इमाम के पीछे के लोग) इमाम के पीछे होंगे। परन्तु यदि किसी एक व्यक्ति को जगह ना मिले तो वह इमाम की दाईं ओर खड़ा हो सकता है।
आठवीं बात
मृतक को दफ़न करने का तरीका
शरीअ़त के अनुसार, क़ब्र को आधे मनुष्य के बराबर गहरा बनाना चाहिए, जिसमें क़िबले की ओर एक लह़द (क़ब्र से युक्त मेहराबदार छत- sepulchre) हो, एवं मृतक को लहद के भीतर उसके दाएँ पहलू पर लिटाया जाएगा, कफ़न के बंधनों को खोल दिया जाएगा एवं कफ़न को छोड़ दिया जाएगा, परुष अथवा महिला दोनों के चेहरे को खुला नहीं रखा जाएगा, एवं लह़द को ईंट-गारे द्वारा बंद कर दिया जाएगा; ताकि अंदर धूल-मिट्टी ना पहुंच सके।
यदि ईंट उपलब्ध ना हो तो तख़्तियों, पत्थरों अथवा लकड़ियों द्वारा ढाँक दिया जाएगा, फिर मिट्टी डाली जाएगी और इस अवस्था में यह दुआ़ कहना मुसतहब है:
अल्लाह के नाम से एवं अल्लाह के रसूल के धर्म पर।
क़ब्र को एक बित्ता के बराबर ऊँचा किया जाएगा, उसके ऊपर यदि संभव हो तो कंकड़ बिछा दिए जाएंगे एवं जल छिड़का जाएगा।
यह बात शरीयत (इसलामी विधान) के अंतर्गत है कि मृतक के साथ जाने वाले क़ब्र के समीप खड़े हों तथा मृतक के लिए दुआ़ करें, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) दफ़न के पश्चात खड़े होते एवं कहते:
तुम लोग अपने भाई के लिए क्षमा मांगो एवं दुआ़ करो कि वह प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ एवं अडिग रह सके, क्योंकि उससे अभी प्रश्न पूछे जाएंगे।
नव्वीं बात
यदि किसी की जनाज़े की नमाज़ छूट गई हो तो वह दफ़न के बाद पढ़ सकता है।
क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) ने ऐसा किया है। परन्तु शर्त यह है कि ऐसा एक मास के अंदर होना चाहिए। इससे अधिक विलंब हो तो यह नमाज़ पढ़ना सही नहीं होगा। क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) से साबित नहीं है कि आपने दफ़न के एक महीना बाद किसी क़ब्र पर नमाज़ पढ़ी हो।
दसवीं बातमृतक के परिवार के लिए उचित नहीं कि वे लोगों के लिए खाना बनाएँ।जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के इस कथन के कारण कि"हम मृतक के घर में एकत्र होने एवं उसे दफ़नाने के बाद खाना बनाने को मातम समझते थे (जो इसलाम में हराम है)।"इमाम अहमद ने इसे हसन सनद के साथ रिवायत किया है।रही बात मृतक के परिवार तथा उनके अतिथियों के लिए खाना बनाने की तो इसमें कोई हर्ज नहीं और उसके संबंधियों तथा पड़ोसियों का उनके लिए खाना बनाना शरीयत के अंतर्गत है। क्योंकि जब सीरिया में जाफ़र बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अनहु- की मृत्यु हुई तो अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने अपने परिवार को आदेश प्रदान किया कि वे जाफ़र -रज़ियल्लाहु अ़नहू- के परिवार के लिए खाना बनाएँ, एवं फ़रमायाःउनपर ऐसी मुसीबत आई हुई है कि उनको किसी और काम के करने का होश भी नहीं है।
मृतक के परिवार के लिए उचित नहीं कि वे लोगों के लिए खाना बनाएँ।
जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के इस कथन के कारण कि
"हम मृतक के घर में एकत्र होने एवं उसे दफ़नाने के बाद खाना बनाने को मातम समझते थे (जो इसलाम में हराम है)।"
इमाम अहमद ने इसे हसन सनद के साथ रिवायत किया है।
रही बात मृतक के परिवार तथा उनके अतिथियों के लिए खाना बनाने की तो इसमें कोई हर्ज नहीं और उसके संबंधियों तथा पड़ोसियों का उनके लिए खाना बनाना शरीयत के अंतर्गत है। क्योंकि जब सीरिया में जाफ़र बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अनहु- की मृत्यु हुई तो अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने अपने परिवार को आदेश प्रदान किया कि वे जाफ़र -रज़ियल्लाहु अ़नहू- के परिवार के लिए खाना बनाएँ, एवं फ़रमायाः
उनपर ऐसी मुसीबत आई हुई है कि उनको किसी और काम के करने का होश भी नहीं है।
मृतक के परिवार वालों पर कोई बाधा नहीं कि वे अपने पड़ोसियों आदि को उस खाने पर बुलाएँ जो उन्हें भेजा गया हो, एवं हमारी जानकारी के अनुसार, शरीयत में इस का कोई नियत समय नहीं है।
ग्यारहवीं बातयदि महिला गर्भवती न हो तो उसके लिए अपने पति के सिवा किसी की मृत्यु का शोक तीन दिन से अधिक मनाना जायज नहीं।
यदि महिला गर्भवती न हो तो उसके लिए अपने पति के सिवा किसी की मृत्यु का शोक तीन दिन से अधिक मनाना जायज नहीं।
महिला के लिए अपने पति के सिवा तीन दिन से अधिक किसी की मृत्यु का शोक मनाना जायज नहीं एवं अपने पति का चार मास तथा दस दिन तक शोक पालन करना आवश्यक है। परन्तु यदि गर्भवती हो तो प्रसव तक, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) से ऐसा सही हदीसों से प्रमाणित है।
लेकिन पुरुष के लिए किसी भी करीबी या दूरस्थ रिश्तेदार का शोक मनाना सिरे से जायज नहीं है।
बारहवीं बातशरीयत के अनुसार, पुरुष कुछ समयांतराल पर क़ब्रों की ज़ियारत (दर्शन) के लिए जा सकते हैं ताकि उन के लिए अल्लाह की कृपा की दुआ़ करें एवं मृत्यु तथा उस के पश्चात की बातों को स्मरण करें।क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फ़रमान हैःक़ब्रों की ज़ियारत करो, क्योंकि वे तुम्हें परलोक की याद दिलाएंगी।इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (मुस्लिम शरीफ़) में इसे नकल किया है।अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) अपने साथियों को यह दुआ़ सिखाते थेःऐ मोमिन व मुसलमान क़ब्र वासियों! तुमपर शान्ति की जलधारा बरसे एवं यदि अल्लाह चाहे तो हम तुमसे भेंट करने वाले हैं। हम अपने तथा तुम्हारे लिए सुरक्षा की दुआ़ करते हैं। अल्लाह तआ़ला आगे जाने वालों एवं पीछे आने वालों, सबके ऊपर कृपा करे!
शरीयत के अनुसार, पुरुष कुछ समयांतराल पर क़ब्रों की ज़ियारत (दर्शन) के लिए जा सकते हैं ताकि उन के लिए अल्लाह की कृपा की दुआ़ करें एवं मृत्यु तथा उस के पश्चात की बातों को स्मरण करें।
क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फ़रमान हैः
क़ब्रों की ज़ियारत करो, क्योंकि वे तुम्हें परलोक की याद दिलाएंगी।
इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (मुस्लिम शरीफ़) में इसे नकल किया है।
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) अपने साथियों को यह दुआ़ सिखाते थेः
ऐ मोमिन व मुसलमान क़ब्र वासियों! तुमपर शान्ति की जलधारा बरसे एवं यदि अल्लाह चाहे तो हम तुमसे भेंट करने वाले हैं। हम अपने तथा तुम्हारे लिए सुरक्षा की दुआ़ करते हैं। अल्लाह तआ़ला आगे जाने वालों एवं पीछे आने वालों, सबके ऊपर कृपा करे!
जहाँ तक महिलाओं की बात है तो उनके लिए क़ब्रों की ज़ियारत (दर्शन) करना जायज नहीं है, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने ज़ियारत करने वाली महिलाओं पर लानत (धिक्कार) भेजी है एवं उनका धैर्य कम होता है तथा वे फ़ितने (रोना-पीटना आदि) में पड़ सकती हैं। उनके लिए ज़नाज़े (मृतक की लाश) के साथ चलकर क़ब्रिस्तान जाना भी जायज नहीं है, क्योंकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम) ने इस से रोका है। परन्तु मस्जिद में अथवा मुसल्ले में जनाज़े की नमाज़ पढ़ना, पुरुष एवं महिला दोनों के लिए जायज है।
यही कुछ है जिसको संकलित किया जाना संभव हो सका।
और दरूद व सलाम अवतरित हो हमारे नबी मुह़म्मद एवं आपके समस्त परिवार एवं साथियों पर।