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ईमान के मूलाधार (हिन्दी)

सेटिंग्स: मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब

ईमान के मूलाधार

लेखक : महान इस्लामिक विद्वान एवं सुधारक शैखुल इस्लाममुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाबरहिमहुल्लाह

अध्याय : सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की पहचान और उस पर ईमान

1- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि रसूलुल्लाह -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने फ़रमाया : मैं तमाम साझेदारों की तुलना में साझेदारी से अधिक बेनियाज़ हूँ। जिसने कोई कार्य किया और उसमें किसी को मेरा साझी ठहराया, मैं उसके साथ ही उसके साझी बनाने के इस कार्य से भी किनारा कर लेता हूँ।} [15]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

2- अबू मूसा अशअरी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि : {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमारे बीच पांच बातों के साथ खड़े हुए और फ़रमाया :

(अल्लाह सोता नहीं है तथा सोना उसकी महानता के अनुरूप भी नहीं है। वह तराज़ू को नीचे तथा ऊपर करता है। उसकी ओर रात के कर्म दिन के कर्मों से पहले और दिन के कर्म रात के कर्मों से पहले उठाए जाते हैं। उसका परदा नूर है। यदि वह उसे खोल दे, तो उसके चेहरे की चमक सारी सृष्टियों को जला डालेगी, जहाँ तक उसकी नज़र पहुँचेगी।} [32]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

3- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{अल्लाह का दायाँ हाथ भरा हुआ है। [37] खर्च करने से उसमें कोई कमी नहीं आती। [38] वह रात-दिन प्रदान किए जा रहा है। क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की रचना से लेकर अब तक कितना कुछ खर्च किया है? लेकिन इसके बावजूद उसके दाएँ हाथ में जो कुछ है, उसमें कोई कमी नहीं आई। जबकि उसके दूसरे हाथ में तराज़ू है, जिसे वह उठाता और झुकाता है।}

इसे बुख़ारी तथा मुस्लिम ने रिवायत किया है।

4- और अबू ज़र -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं :{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने दो बकरियों को देखा, जो एक-दूसरी को सींग मार रही थीं। अतः, फ़रमाया : "ऐ अबू ज़र! क्या तुम जानते हो कि दोनों एक-दूसरी को सींग क्यों मार रही हैं?" उत्तर दिया : नहीं। तो फ़रमाया : "लेकिन, अल्लाह जानता है और वह उन दोनों के बीच निर्णय भी करेगा।} [39]इसे अह़मद ने रिवायत किया है।

5- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने यह आयत पढ़ी : {अल्लाह तु्म्हें आदेश देता है कि धरोहर उनके स्वामियों को चुका दो, और जब लोगों के बीच निर्णय करो, तो न्याय के साथ निर्णय करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी बात का निर्देश दे रहा है। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुनने देखने वाला है।} [43] [अन-निसा : 58] और अपने दोनों अंगूठों को दोनों कानों तथा उनसे मिली हुई उँगलियों को दोनों आँखों पर रखकर दिखाया।

इसे अबू दाऊद, इब्ने हिब्बान और इब्ने अबू हातिम ने रिवायत किया है।

6- अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{ग़ैब की कुंजियाँ पाँच हैं, जिन्हें अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता : कल क्या होने वाला है अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता, माँ के गर्भाशय में क्या कुछ पल रहा है अल्लाह के सिवा कोई नही जानता, बारिश कब होगी अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता, कोई प्राणी यह नहीं जानता कि उसकी मृत्यु किस धरती में होने वाली है, तथा यह भी बरकत वाले तथा महान अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता कि क़यामत कब होने वाली है।} [52]

इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है

7- अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अनहु- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

"बंदा जब अल्लाह के सामने तौबा करता है, तो वह उसकी तौबा से, तुममें से उस व्यक्ति से कहीं अधिक प्रन्न होता है, जब वह किसी रेगिस्तान में अपनी सवारी पर यात्रा कर रहा हो, फिर उसकी सवारी छूटकर भाग जाए और उसके खाने-पीने का सारा सामान भी उसी के ऊपर हो। अतः, वह निराश होकर एक पेड़ के नीचे आए और उसकी छाया मे लेट जाए। उसे सवारी वापस मिलने की कोई आशा दिखाई न दे। वह इसी अवस्था में हो कि अचानक अपनी सवारी को अपने पास खड़ा देखे और उसकी लगाम पकड़कर अति उत्साहित होकर कह उठे : ऐ अल्लाह तू मेरा बंदा है और मैं तेरा रब हूँ! यानी वह अति उत्साह में भूल कर बैठे।" [53]

इसे इमाम बुख़ारी तथा इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है।

8- अबू मूसा -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{महान अल्लाह रात में हाथ फैलाता है, ताकि दिन में गुनाह करने वाला तौबा कर लें और दिन में हाथ फैलाता है, ताकि रात में गुनाह करने वाला तौबा कर लें, यहाँ तक कि सूरज अपने डूबने के स्थान से निकल आए।} [54]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

9- बुख़ारी तथा मुस्लिम में उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, वह कहते हैं :{नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास हवाज़िन के क़ैदी लाए गए। अचानक देखा गया कि क़ैदियों में से एक स्त्री दौड़ रही है। इतने में क़ैदियों में उसे अपना बच्चा मिल गया, तो उसे उठाकर अपने पेट से चिमटा लिया और दूध पिलाने लगी। यह देख अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "क्या तुमको लगता है कि यह औरत अपने बच्चे को आग में डाल सकती है?" हमने कहा : नहीं, अल्लाह की क़सम! इस पर आपने फ़रमाया : "अल्लाह अपने बंदों पर उससे कहीं ज़्यादा मेहरबान है, जितना यह अपने बच्चे पर मेहरबान है।} [55]

10- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह ने जब मखलूक़ की सृष्टि की, तो एक किताब में, जो उसके पास अर्श पर है, लिख दिया : मेरी रहमत मेरे क्रोध पर हावी रहेगी।} [56]

इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

11- बुख़ारी एवं मुस्लिम ही में अबू हुरैरा - रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह तआला ने कृपा को एक सौ भागों में बाँटकर अपने पास निन्यानवे भाग रख लिए और धरती में एक भाग उतारा। उसी एक भाग के कारण सारी सृष्टियाँ एक-दूसरे पर दया करती हैं, यहाँ तक कि एक चौपाया इस डर से पाँव उठाए रहता है कि कहीं उसके बच्चे को चोट न लग जाए।} [59]

12- सहीह मुस्लिम में इसी मायने की एक हदीस सलमान -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, जिसमें है :

{हर रहमत आकाश तथा धरती के बीच के खाली स्थान के बराबर विशाल है।} [62] उसमें आगे है : {जब क़यामत का दिन आएगा, तो उसे इस रहमत के ज़रिया पूरा कर देगा।} [63]

13- अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{काफ़िर जब कोई अच्छा काम करता है, तो उसे दुनिया में ही उसका फल दे दिया जाता है। लेकिन जहाँ तक मोमिन की बात है, तो उसकी नेकियों को अल्लाह उसकी आख़िरत के लिए जमा रखता है और उसके आज्ञापालन के कारण उसे दुनिया में में रोज़ी प्रदान करता है।} [64]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

14- सहीह मुस्लिम ही में अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है :

{निश्चय अल्लाह बंदे की इस बात से ख़ुश होता है कि बंदा कुछ खाए तो उस पर अल्लाह की प्रशंसा करे, और कुछ पिए तो उसपर अल्लाह की प्रशंसा करे।} [65]

15- अबूज़र -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{आकाश चरचराता उठा और उसका चरचराना उचित भी है। उसमें चार उंगली के बराबर भी कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ कोई फ़रिश्ता पेशानी रखकर अल्लाह तआला को सजदा न कर रहा हो। अल्लाह की क़सम, अगर तुम वह कुछ जान लो, जो मैं जानता हूँ, तो तुम हँसो कम और रोओ अधिक तथा बिसतरों पर स्त्रियों के साथ आनंद न ले सको एवं अल्लाह से फ़रियाद करते हुए रास्तों की ओर निकल जाओ।} [67]

इस हदीस को इमाम तिरमिज़ी रिवायत किया है और कहा है कि यह हदीस हसन है|

इस हदीस का यह भाग : {अगर तुम वह कुछ जान लो, जो मैं जानता हूँ, तो तुम हँसो कम और रोओ अधिक।} [68] सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम [69] में अनस -रिज़यल्लाहु अनहु- से वर्णित हदीस के रूप में मौजूद है।

16- और सहीह मुस्लिम में जुनदुब -रज़ियल्लाहु अनहु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{एक व्यक्ति ने कहा : अल्लाह की क़सम, अल्लाह अमुक व्यक्ति को क्षमा नहीं करेगा। इस पर सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने कहा : वह कौन होता है इस बात की क़सम खाने वाला कि मैं अमुक को क्षमा नहीं करूँगा। जाओ मैंने उसे क्षमा कर दिया और तेरे कर्मों को नष्ट कर दिया।} [70]

17-सहीह बुख़ारी में अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{अगर मोमिन जान ले कि अल्लाह के पास गुनाहों की कैसी-कैसी सज़ा है, तो कोई उसकी जन्नत की लालच न करे, और अगर काफ़िर जान ले कि अल्लाह के पास कितनी दया है, तो कोई उसकी जन्नत से निराश न हो।} [71]

18- सहीह बुख़ारी में अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जन्नत, तुममें से किसी व्यक्ति से उसके जूते के फीते से भी अधिक निकट है तथा नर्क का भी यही हाल है।} [72]

19- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{बड़ी गर्मी का दिन था कि एक व्यभिचारिणी ने एक कुत्ते को कुएँ के चारों ओर चक्कर लगाते देखा, जिसने प्यास के कारण ज़ुबान निकाल रखी थी। अतः, उसने अपना चमड़े का मोज़ा निकाला और उसे पानी पिलाया, तो उसके इस कार्य के कारण उसे क्षमा कर दिया गया।} [75]

20- आपने फ़रमाया : {एक स्त्री को एक बिल्ली के कारण, जिसे उसने रोक रखा था, जहन्नम जाना पड़ा। न तो उसने उसे कुछ खाने को दिया और न ही छोड़ा कि वह धरती के कीड़ों-मकोड़ों को खा लेती।} [76]

जुहरी कहते हैं : ताकि कोई भरोसा करके न बैठ जाए और कोई निराश न हो। [77]

इसे बुख़ार एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

21- अबू हुरैरा-रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{हमारे रब को ऐसे लोगों पर आश्चर्य हुआ, जिन्हें बेड़ियों में जकड़कर जन्नत की ओर ले जाया जाता है।} [79] [80]इस हदीस को अहमद और बुख़ारी ने रिवायत किया है।22- अबू मूसा अशअरी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{कोई भी व्यक्ति, कष्टदायक बात सुनकर अल्लाह से अधिक धैर्य नहीं रख सकता। लोग उसके बेटा होने का दावा करते हैं, और इसके बावजूद वह उन्हें स्वस्थ एवं सलामत रखता है, और रोज़ी देता है।} [81]

इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

23- सहीह बुख़ारी ही में अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जब बरकत वाला एवं महान अल्लाह किसी बंदे से मोहब्बत करता है, तो जिब्रील को पुकारकर कहता है कि अल्लाह अमुक बंदे से मोहब्बत करता है, तो तुम भी उससे मोहब्बत करो। सो जिब्रील उससे मोहब्बत करने लगते हैं। फिर जिब्रील आकाश में आवाज़ लगाते हैं कि अल्लाह अमुक बंदे से मोहब्बत करता है, तो तुम लोग भी उससे मोहब्बत करो। चुनांचे, आकाश वाले भी उससे मोहब्बत करने लगते हैं। फिर धरती में उसके लिए लोकप्रियता रख दी जाती है।} [82]

24- जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि हम लोग अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास बैठे हुए थे कि आपने चौदहवीं रात के चाँद पर नज़र डाली और फ़रमाया :

{तुम अपने पालनहार को इसी तरह देख सकोगे, जैसे इस चाँद को देख रहे हो। तुम्हें उसे देखने में कोई कठिनाई नहीं होगी। अतः, यदि हो सके कि सूर्योदय और सूर्यास्त से पहले नमाज़ पर किसी चीज़ को हावी न होने दो, तो ऐसा ज़रूर करो।} [84]फिर यह आयत पढ़ी : {तथा अपने पालनहार की पवित्रता का वर्णन उसकी प्रशंसा के साथ करते रहें सूर्योदय से पहले तथा सूर्यास्त से पहले।} [85][सूरा ताहा : 130]

इसे मुहद्दिसों के एक समूह ने रिवायत किया है।

25- अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अललाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने फ़रमाया : जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की, उससे मैं युद्ध का एलान करता हूँ। मेरा बन्दा जिन-जिन इबादतों से मेरी निकटता हासिल करता है, उनमें कोई इबादत मुझे उस इबादत से ज़्यादा पसन्द नहीं, जो मैंने उस पर फर्ज़ की है। जबकि मेरा बन्दा नफ़ल इबादतों की अदायगी से मेरे इतने क़रीब हो जाता है कि मैं उससे मुहब्बत करने लगता हूँ। फिर जब मैं उससे मुहब्बत करता हूँ, तो मैं उसका कान बन जाता हूँ, जिससे वह सुनता है; उसकी आँख बन जाता हूँ, जिससे वह देखता है; उसका हाथ बन जाता हूँ, जिससे वह पकड़ता है और उसका पांव बन जाता हूँ, जिससे वह चलता है। अब अगर वह मुझसे माँगता है, तो मैं उसे देता हूँ; वह अगर पनाह माँगता है, तो उसे पनाह देता हूँ, और मुझे किसी काम में, जिसे करना चाहता हूँ, इतना संकोच नहीं होता, जितना अपने मुसलमान बन्दे की जान निकालने में होता है, इस अवस्था में कि वह मौत को बुरा समझता हो, और मुझे भी उसे कष्ट देना नागवार गुजरता है। हालाँकि मौत तो देनी है।} [87]

इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

26- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- ही से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{हमारा बरकत वाला और महान तथा उच्च रब हर रात, जबकि रात का एक तिहाई भाग शेष रह जाता है, पहले आसमान पर उतरता है और ऐलान करता है : कोई है जो दुआ करे कि मैं उसकी दुआ ग्रहण करूँ, कोई है जो मुझसे माँगे कि मैं उसे दूँ और कोई है जो मुझसे क्षमा माँगे कि मैं उसे क्षमा करूँ?} [88]

सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम।

27- अबू मूसा अशअरी -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{दो जन्नतें ऐसी हैं, जो सोने की हैं और उनके बरतन तथा उनकी सारी वस्तुएँ सोने की हैं, और दो जन्नतें ऐसी हैं, जो चांदी की हैं और उनके बरतन एवं दूसरी वस्तुएँ चाँदी की हैं। लोगों और उनके रब के दर्शन के बीच केवल अल्लाह के चहरे की बड़ाई की आड़ होगी और ऐसा अदन नामी जन्नत में होगा।} [89]

इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

अध्याय : अल्लाह का फरमान : {यहाँ तक कि जब उन (फरिश्तों) के हृदयों से घबराहट दूर कर दी जाती है, तो पूछते हैं कि तुम्हारे रब (पालनहार) ने क्या फरमाया? उत्तर देते हैं कि सच फरमाया और वह सर्वोच्च और महान है।} [94] [सूरा सबा : 23]

28- {अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अनहुमा- कहते हैं : मुझे एक अंसारी सहाबी ने बताया कि एक रात वे अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ बैठे हुए थे अचानक एक तारा टूटा और चारों ओर रोशनी फैल गई। यह देख आपने पूछा :"पहले जब इस तरह से तारा टूटता था, तो तुम क्या कहते थे?"लोगों ने उत्तर दिया : हम कहते थे कि आज रात कोई बड़ा आदमी पैदा हुआ है, या कोई बड़ा आदमी मरा है।यह सुन आपने कहा :"तारा किसी बड़े आदमी के पैदा होने या मरने से नहीं टूटता, बल्कि बात यह है कि जब हमारा सर्वशक्तिमान रब कोई निर्णय लेता है, तो अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते तसबीह पढ़ते हैं। फिर उनके निचले आकाश वाले तसबीह पढ़ते हैं। यहाँ तक कि तसबीह पढ़ने का सिलसिला सबसे निचले आकाश वालों तक पहुँच जाता है। फिर जो अर्श उठाने वाले फ़रिश्तों से क़रीब होते हैं, वह उनसे पूछते हैं कि तुम्हारे रब ने क्या आदेश दिया है? चुनांचे वह अल्लाह का आदेश बयान करते हैं। इसी तरह आकाश वाले एक-दूसरे से पूछते रहते हैं। यहाँ तक कि वह सूचना सबसे निचले आकाश वालों को पहुँच जाती है। इसी बीच जिन्न उस सूचना को चुपके-से उचक लेते हैं और अपने दोस्तों को आकर सुनाते हैं। अब जितना वह हूबबू बताते हैं, उतना तो सत्य है। लेकिन वह उसमें झूठ मिलाते हैं और बढ़ा-चढ़ाकर कहते हैं।} [95] [96]

इसे मुस्लिम, तिरमिज़ी तथा नसई ने रिवायत किया है।

29- नव्वान बिन समआन -रज़ियल्लाहु अन्हु- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह तआला जब किसी आदेश की वह्य (प्रकाशना) का इरादा करता है, तो वह्य (प्रकाशना) के शब्दों का उच्चारण करता है, जिससे सारे आकाश, सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह के भय से काँपने लगते हैं। जब यह आवाज़ आकाशों में रहने वाले सुनते हैं, तो वह भी बेहोश होकर सजदे में गिर जाते हैं। फिर, सबसे पहले जिबरील -अलैहिस्सलाम- अपना सर उठाते हैं और अल्लाह अपनी वह्य में से जो चाहता है, उनसे बात करता है। फिर जिबरील फ़रिश्तों के पास से गुज़रते हैं। जब-जब वह किसी आकाश से गुज़रते हैं, उसके फ़रिश्ते उनसे पूछते हैं कि ऐ जिबरील, हमारे रब ने क्या कहा? जिबरील कहते हैं : उसने सत्य कहा है तथा वह उच्च एवं विशाल है। चुनांचे सब फ़रिश्ते जिबरील की बात दोहराने लगते हैं। फिर जिबरील वह्य को वहाँ पहुँचा देते हैं, जहाँ पहुँचाने का आदेश सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने उन्हें दिया होता है।} [98]

इसे इब्ने जरीर, इब्ने ख़ुज़ैमा, तबरानी और इब्ने अबू हातिम ने रिवायत किया है और शब्द इब्ने अबू हातिम के हैं।

अध्याय : अल्लाह ताआला का फ़रमान: {तथा उन्होंने अल्लाह का जिस प्रकार सम्मान करना चाहिए था, नहीं किया। क़यामत के दिन सम्पूर्ण धरती उसकी मुट्ठी में होगी तथा आकाश उसके दाएँ हाथ में लपेटे होंगे। वह उन लोगों के शिर्क से पवित्र एवं ऊँचा है।" [99] [सूरा अज़्-ज़ुमर : 67]

30- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह धरती को मुट्ठी में कर लेगा और आकाश को अपने दाएँ हाथ में लपेट लेगा और कहेगा : मैं ही बादशाह हूँ! धरती के बादशाह कहाँ हैं?" [100] इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।}

31- सहीह बुख़ारी ही में अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{क़यामत के दिन अल्लाह धराओं को मुट्ठी में कर लेगा और आकाश उसके दाएँ हाथ में होंगे। फिर कहेगा : मैं ही बादशाह हूँ!} [101]32- उन्हीं की एक रिवायत में है कि {एक दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मिंबर पर यह आयत पढ़ी :{तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिए था और क़यामत के दिन धरती पूरी उसकी एक मुट्ठी में होगी तथा आकाश उसके हाथ में लपेटे हुए होंगे। वह पवित्र तथा उच्च है उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।} [102]यह आयत सुनाते समय अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अपने हाथ से इशारा कर रहे थे। उसे हिला रहे थे, आगे-पीछे कर रहे थे और फ़रमा रहे थे : "हमारा पालनहार अपनी बड़ाई बयान करते हुए कहेगा : मैं ही शक्तिशाली हूँ! मैं ही महिमावान हूँ! मैं ही बलवान हूँ! मैं ही प्रतिष्ठावान हूँ!" इस पर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को लेकर मिंबर इतना डोलने लगा कि हम कहने लगे कि कहीं आप मिंबर से गिर न पड़ें।}

इसे अह़मद ने रिवायत किया है।

33- इसे इमाम मुस्लिम ने उबैदुल्लाह बिन मिक़सम से रिवायत किया है कि वह अब्दुल्लाह बिन अमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- को देख रहे थे कि वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से कैसे नक़ल कर रहे हैं। आपने फ़रमाया :

{अल्लाह आकाशों तथा धराओं को अपने दोनों हाथों से पकड़कर मुट्ठी बाँध लेगा और कहेगा : मैं ही बादशाह हूँ!" यहाँ तक मैंने मिंबर को देखा कि वह नीचे से डोल रहा था और स्थिति यह बन गई थी कि मैंने मन ही मन कहा कि क्या यह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को लेकर गिर पड़ेगा?!} [103]

34-बुख़ारी एवं मुस्लिम में इमरान बिन हुसैन -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{ऐ बनू तमीम! सुसमाचार ले लो।"

उन्होंने कहा : आपने हमें सुसमाचार तो दिया, लेकिन कुछ दीजिए तो सही।

आपने कहा : "ऐ यमन वालो! सुसमाचार ले लो।"

उन्होंने कहा : हमने सुसमाचार ग्रहण कर लिया। अब आप हमें इस कायनात की प्रथम वस्तु के बारे में बताएँ।

तो आपने कहा : "अल्लाह हर वस्तु से पहले से था और उसका अर्श पानी के ऊपर था। उसने लौह-ए-महफ़ूज़ में हर चीज़ का विवरण लिख रखा है।"

इमरान -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि इसी बीच मेरे पास एक आदमी आकर बाला कि ऐ इमरान! तुम्हारी ऊँटनी रस्सी तोड़कर भाग खड़ी हुई है।

अतः, मैं उसकी तलाश में निकल पड़ा। इसलिए मैं नहीं कह सकता कि मेरे बाद और क्या बातें हुईं।

35- जुबैर बिन मुहम्मद बिन जुबैर बिन मुतइम अपने पिता से और वह उनके (यानी जुबैर के) दादा (जुबैर बिन मुतइम) से रिवायत करते हैं कि उन्होंने कहा :{एक देहाती अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और कहने लगा : ऐ अल्लाह के रसूल! जानें मुश्किल में पड़ गईं, बाल-बच्चे भूख से परेशान हो गए, धन घट गए और मवेशी नष्ट हो गए। अतः, अपने पालनहार से हमारे लिए बारिश माँगिए। हम आपको अल्लाह के सामने और अल्लाह को आपके पास सिफ़ारिशी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं।

यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

"तेरा बुरा हो! क्या तू जानता है कि क्या कह रहा है?" उसके बाद अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- तसबीह पढ़ने लगे और इतनी देर तक तसबीह पढ़ते रहे कि उसका प्रभाव सहाबा के चेहरों पर नज़र आने लगा। फिर फ़रमाया : "तेरा बुरा हो! अल्लाह को किसी सृष्टि के सामने सिफ़ारिशी के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। अल्लाह की शान इससे कहीं बड़ी है। तेरा बुरा हो! क्या तू जानता है कि अल्लाह क्या है? उसका अर्श उसके आकाशों पर कुछ यूँ है।" यह कहते समय आपने अपनी उँगलियों से अपने ऊपर गुंबद की शक्ल बनाकर दिखाया। "और वह उसके बोझ से उसी तरह चरचराता है, जैसे कजावा उस पर सवार व्यक्ति के बोझ से चरचराता है।} [113]

इस हदीस को अहमद तथ अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

36- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{सर्वशक्तिमान तथा महान अल्लाह कहता है : आदम की संतान ने मुझे झुठलाया, हालाँकि उसे ऐसा नहीं करना था। उसने मुझे गाली दी, हालाँकि ऐसा करने का उसे कोई अधिकार नहीं था। उसका मुझे झुठलाना यह कहना है कि उसने मुझे जिस प्रकार से पहली बार पैदा किया है, उसी प्रकार कदापि दोबारा पैदा नहीं करेगा। जबकि पहली बार पैदा करना मेरे लिए दूसरी बार पैदा करने से अधिक आसान नहीं था। उसका मुझे गाली देना, यह कहना है कि अल्लाह ने पुत्र बना लिया है। हालाँकि मैं एक तथा निष्काम हूँ। न मैंने जना है और न ही जना गया हूँ, और न कोई मेरी बराबरी का है।} [114]

37- तथा एक रिवायत में अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है :

{जहाँ तक उसके मुझे गाली देने की बात है, तो उससे मुराद उसका यह कहना है कि मेरी संतान है। जबकि मैं इस बात से पवित्र हूँ कि पत्नी अथवा संतान बनाऊँ।} [115]

इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

38- सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम ही में अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, वह कहते है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{पवित्र एवं उच्च अल्लाह ने फ़रमाया : आदम की संतान मुझे कष्ट देती है। वह ज़माने को गाली देती है। जबकि मैं ही ज़माने (का मालिक) हूँ। मेरे ही हाथ में सारे मामले हैं। मैं ही रात और दिन को पलटता हूँ।} [117]

अध्याय : तक़दीर (भाग्य) पर ईमान

अल्लाह तआला का फ़रमान है :{जिनके लिए पहले ही से हमारी ओर से भलाई का निर्णय हो चुका है, वही उस से दूर रखे जाएँगे।} [118][सूरा अल-अंबिया : 101]एक और स्थान में वह फ़रमाता है :{तथा अल्लाह का निश्चित किया आदेश पूरा होना ही है।} [119][सूरा अल-अहज़ाब : 38]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{हालाँकि तुमको और जो तुम करते हो उसको अल्लाह ही ने पैदा किया है।} [120][अस-साफ़्फ़ात : 96]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{निश्चय ही हमने प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न किया है एक अनुमान अर्थात तक़दीर के साथl} [38][सूरा अल-क़मर : 49]

39- सहीह मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस -रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह ने सृष्टियों की तक़दीरों का निर्धारण आकाशों तथा धरती की रचना से पचास हज़ार वर्ष पहले कर दिया था और उस समय उसका अर्श पानी पर था।} [122]

40- अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

"तुम में से ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसका ठिकाना जन्नत अथवा जहन्नम में लिख न दिया गया हो।" सहाबा ने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हम लिखे हुए पर भरोसा करके अमल करना छोड़ न दें? तो आपने उत्तर दिया :

"तुम अमल किए जाओ। क्योंकि अमल को हर उस व्यक्ति के लि आसान कर दिया जाता है, जिसके लिए उसे पैदा किया गया है। जो सौभाग्यशाली होगा, उसके लिए सौभाग्यशाली लोगों जैसा अमल करना आसान कर दिया जाएगा और जो अभागा होगा, उसके लिए अभागा लोगों जैसा अमल करना आसान कर दिया जाएगा।" उसके बाद आपने यह आयत पढ़ी :"फिर जिसने दान किया और भक्ति का मार्ग अपनाया और भली बात की पुष्टि करता रहा, तो हम उसके लिए सरलता पैदा कर देंगे।} [134][सूरा अल-लैल : 5-8]बुख़ारी एवं मुस्लिम।41- मुस्लिम बिन यसार जुहनी कहते हैं कि {उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अनहु- से इस आयत के बारे में पूछा गया :{तथा वह समय याद करो, जब आपके पालनहार ने आदम के पुत्रों की पीठ से उनकी संतति को निकाला।} [137][सूरा अल-आराफ़ : 172]इसपर उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- ने कहा कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को सुना कि जब आपसे इसके बारे में पूछा गया, तो आपने फ़रमाया :

"अल्लाह ने आदम को पैदा किया और उनकी पीठ पर अपना दायाँ हाथ फेरा और उससे उनकी कुछ संतानों को निकाला और कहा :

मैंने इन लोगों को जन्नत के लिए पैदा किया है और ये लोग जन्नतियों का ही काम करेंगे। फिर उनकी पीठ पर हाथ फेरा और उससे उनकी कुछ संतानों को निकाला और फ़रमाया : मैंने इन लोगों को जहन्नम के लिए पेैदा किया है और ये लोग जहन्नमियों का ही काम करेंगे। यह सुन एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! फिर कर्म किस काम के?

तो आपने उत्तर दिया : "अल्लाह जब किसी बंदे को जन्नत के लिए पैदा करता है, तो उसे जन्नतियों के काम में लाग देता है, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी जन्नतियों का काम करते हुए होती है और उसके बदले उसे जन्नत में दाख़िल कर देता है। तथा जब किसी बंदे को जहन्नम के लिए पैदा करता है, तो उसे जहन्नमियों के काम में लगा देता है, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी जहन्नमियों का काम करते हुए होती है और उसे जहन्नम में दाख़िल कर देता है।"

इसे इमाम मालिक और हाकिम ने रिवायत किया है और हाकिम ने इसे इमाम मुस्लिम की शर्त पर कहा है।

जबकि अबू दाऊद ने इसे एक अन्य सनद से रिवायत किया है। इन्होंने इसे मुस्लिम बिन यसार से रिवायत किया है, जो नुऐम बिन रबीआ से रिवायत करते हैं और वह उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत करते हैं।

42- इसहाक़ बिन राहवैह कहते हैं : हमसे हदीस बयान की बक़िय्या बिन वलीद ने, वह कहते हैं कि मुझे बताया ज़ुबैदी मुहम्मद बिन वलीद ने, वह वर्णन करते हैं राशिद बिन साद से, वह रिवायत करते हैं अब्दुर रहमान बिन अबू क़तादा से, वह वर्णन करते हैं अपने पिता से और वह रिवायत करते हैं हिशाम बिन हकीम बिन हिज़ाम से कि {एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या कार्य शुरू होते हैं या उनका निर्णय पहले ही से ले लिया गया होता है? तो आपने फ़रमाया :

"जब अल्लाह ने आदम की संतान को उनकी पीठ से निकाला, तो उन्हें स्वयं उन्हीं पर गवाह बनाया, फिर उन्हें उनके दोनों हथेलियों पर फैला दिया और कहा : यह लोग जन्नत के लिए हैं और यह लोग जहन्नम के लिए हैं। अतः, जन्नत वालों के लिए जन्नतियों का काम करना आसान कर दिया जाएगा और जहन्नम वालों के लिए जहन्नमियों का काम करना आसान कर दिया जाएगा।"

43- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अनहुमा- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जो कि सच्चे हैं और जिनको सच्चा माना भी गया है, हमें बताया है :

{तुममें से हर व्यक्ति की सृष्टि-सामग्री उसकी माँ के पेट में चालीस दिनों तक वीर्य के रूप में एकत्र की जाती है। फिर इतने ही समय में वह जमे हुए रक्त का रूप धारण कर लेती है। फिर इतने ही दिनों में मांस का लोथड़ा बन जाती है। फिर अल्लाह उसकी ओर एक फ़रिश्ते को चार बातों के साथ भेजता है : वह उसका क्रम, उसकी आयु, उसकी रोज़ी तथा यह भी लिख देता है कि वह अच्छा होगा या बुरा। अतः, उसकी क़सम, जिसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है, तुममें से कोई जन्नत वालों के काम करता रहता है, यहाँ तक कि उसके और जन्नत के बीच केवल एक हाथ की दूरी रह जाती है, कि इतने में उस पर तक़दीर का लिखा ग़ालिब आ जाता है और वह जहन्नम वालों के काम करने लगता है और उसमें प्रवेश कर जाता है। इसी तरह तुममें से कोई जहन्नम वालों के काम करता रहता है, यहाँ तक उसके और जहन्नम के बीच केवल एक हाथ की दूरी रह जाती है कि इतने में उस पर तक़दीर का लिखा ग़ालिब आ जाता है और वह जन्नत वालों के काम करने लगता है और जन्नत में प्रवेश कर जाता है।} [138]

बुख़ारी एवं मुस्लिम

44- हुज़ैफ़ा बिन उसैद -रज़ियल्लाहु अन्हु- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हवाले से बयान करते हैं कि आपने फ़रमाया :

{वीर्य के गर्भाशय में ठहरने के चालीस अथवा पैंतालीस दिनों के बाद फ़रिश्ता उसके पास आता है और कहता है कि ऐ मेरे रब! यह बुरा होगा या अच्छा? चुनांचे जो कुछ उत्तर मिलता है, उसे लिख देता है। उसके बाद कहता है : ऐ मेरे रब! यह पुरुष होगा या स्त्री? चुनांचे जो कुछ उत्तर मिलता है, उसे लिख देता है। इसी तरह उसके कर्म, प्रभाव, आयु और रोज़ी को भी लिख देता है। फिर सहीफ़ों को लपेट दिया जाता है। बाद में न कुछ बढ़ाया जा सकता है न घटाया जा सकता है।} [141]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

45- तथा सहीह मुस्लिम की एक रिवायत में आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- कहती हैं :

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को एक अंसारी बच्चे के जनाज़े के लिए बुलाया गया, तो मैंने कहा : उसके लिए सुसमाचार है! वह जन्नत के गौरैयों में से एक गौरैया है। न कुछ बुरा किया है और न उसकी आयु को पहुँचा है। यह सुन आपने कहा :

{ऐ आइशा! मामाला इससे अलग भी हो सकता है। अल्लाह ने जन्नत के लिए उसमें रहने वाले पैदा किए। जब उन्हें उसके लिए पैदा किया, तो वे अपने पिताओं की पीठ में थे। तथा जहन्नम के लिए भी उसमें रहने वाले पैदा किए। जब उन्हें उसके लिए पैदा किया, तो वे अपने पिताओं की पीठ में थे।} [142]

46- अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{हर वस्तु अल्लाह के क़दर (अल्लाह के पूर्व ज्ञान और लिखे) के अनुसार है। यहाँ तक विवशता और तत्परता भी।} [146]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

47- क़तादा -रज़ियल्लाहु अन्हु- उच्च एवं महान अल्लाह के फ़रमान : {تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ} (उसमें फ़रिश्ते तथा जिबरील अपने पालनहार की आज्ञा से हर काम को पूरा करने के लिए उतरते हैं।) [148] [सूरा अल-क़द्र : 4] की व्याख्या करते हुए कहते हैं : "उस रात को साल भर के अंदर होने वाले सभी कार्यों का निर्णय लिया जाता है।"

इसे अब्दुर रज़्ज़ाक़ और इब्ने जरीर ने रिवायत किया है।

इसी तरह की बात अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-, हसन बसरी, अबू अब्दुर रहमान अस-सुलमी, सईद बिन जुबैर तथा मुक़ातिल से वर्णित है।

48- अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- कहते हैं : अल्लाह ने लौह-ए-महफ़ूज़ को श्वेत मोती से बनाया है, जिसकी दोनों दफ़तियाँ लाल याक़ूत की हैं, उसकी क़लम नूर है, उसकी लिखावट नूर है, उसकी चौड़ाई धरती तथा आकाश के बीच की दूरी के बराबर है, उस पर अल्लाह प्रत्येक दिन तीन सौ साठ बार नज़र डालता है और हर बार कुछ पैदा करता है, किसी को रोज़ी देता है, किसी को जीवन देता है, किसी को मारता है, किसी को इज़्ज़त देता है, किसी को अपमान देता है और जो चाहे करता है। इसी का उल्लेख उच्च एवं महान अल्लाह के इस फ़रमान में है :{प्रत्येक दिन वह एक नए कार्य में है।} [149][सूरा अर-रहमान : 29]

इसे अब्दुर रज़्ज़ाक़, इब्न अल-मुनज़िर, तबरानी और हाकिम ने रिवायत किया है।

इब्न अल-क़य्यिम ये और इस तरह की अन्य हदीसों का उल्लेख करने के बाद कहते हैं [150] :

अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- के इस कथन में दैनिक निर्णय का उल्लेख है, जबकि उससे पहले एक वार्षिक निर्णय होता है, उससे पहले इनसान के शरीर में प्राण डालते समय उम्र भर का निर्णय होता है, उससे पहले भी एक बार उम्र भर का निर्णय उस समय होता है जब इनसान की रचना का आरंभ होता है और वह मांस के टुकड़े के रूप में होता है, उससे पहले इनसान को अस्तित्व में लाने का निर्णय हुआ था, जो आकाशों तथा धरती की सृष्टि के बाद हुआ था और उससे पहले आकाशों तथा धरती की रचने से पचास हज़ार साल पू्र्व एक निर्णय हुआ था। इनमें से हर निर्णय पूर्ववर्ती निर्णयों के विवरण की हैसियत रखता है।

इसमें इस संसार के महान पालनहार के अनंत ज्ञान, सामर्थ्य तथा हिकमत एवं उसकी ओर से फ़रिश्तों एवं ईमान वाले बंदों की अधिक प्रशंसा का प्रमाण है।

आगे फ़रमाया :

इससे स्पष्ट हो गया कि यह सारी तथा इस तरह की अन्य हदीसें इस बात पर एकमत हैं कि अल्लाह के द्वारा लिया गया पूर्व निर्णय इनसान को अमल से नहीं रोकता और तक़दीर पर भरोसा करके हाथ पर हाथ धरे बैठ जाने की अनुमति नहीं देता। बल्कि, इस के विपरीत अधिक मेहनत एवं तत्परता के साथ अल्लाह की इबादत करने को अनिवार्य करता है।

यही कारण है कि जब किसी सहाबी ने इस तरह की बातें सुनीं, तो फ़रमाया : अब मेरी इबादत का जज़्बा और अधिक हो गया है ।

जबकि अबू उसमान नहदी ने सलमान से कहा : मैं उससे, जो पहले लिखा जा चुका है, उसकी तुलना में कहीं अधिक प्रसन्न हूँ, जो अब हो रहा है।

उनका कहना यह है कि जब मामला ऐसा है कि अल्लाह ने पहले से सब कुछ लिख रखा है और मेरे लिए उसके पथ पर चलना आसान कर दिया है, तो मुझे उन असबाब की बनिस्बत, जो बाद में ज़ाहिर हो रहे हैं, अल्लाह के पहले से लिखे निर्णय पर अधिक ख़ुशी है।

49- वलीद बिन उबादा कहते हैं : {मैं अपने पिता के पास उस समय गया, जब वह बीमार थे और मुझे लगता था कि अब वह जीवित नहीं रहेंगे। अतः, मैंने उनसे कहा : प्रिय पिता! आप मुझे वसीयत करें, और मेरे लिए थोड़ा-सा प्रयास करें। उन्होंने कहा : तुम लोग मुझे बिठा दो। जब उन्हें बिठा दिया गया, तो बोले : तुम ईमान का मज़ा उस समय तक नहीं चख सकते और सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह का ज्ञान उस समय तक प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक भली-बुरी तक़दीर पर विश्वास न रखो। मैंने कहा : पिता जी! मैं कैसे जानूँ कि भली-बुरी तक़दीर क्या है? उन्होंने कहा : तुम विश्वास रखो कि जो तुम्हारे हाथ आ गया, वह तुमसे छूटने वाला नहीं था और जो छूट गया, वह हाथ आने वाला नहीं था। ऐ मेरे बेटे! मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है :

"अल्लाह ने सबसे पहले क़लम को पैदा किया और उसके बाद उससे कहा : लिख! अतः, उसने उसी समय वह सब कुछ लिखना आरंभ कर दिया, जो क़यामत के दिन तक होने वाला है।" ऐ मेरे बेटे! यदि तुम्हारी मृत्यु इस अवस्था में हुई कि तुम इस अक़ीदे पर क़ायम न हो, तो जहन्नम में प्रवेश करोगे। [151]

इसे अह़मद ने रिवायत किया है।

50- अबू ख़िज़ामा अपने पिता -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णन करते हैं कि उन्होंने कहा : {ऐ अल्लाह के रसूल! झाड़-फूँक जो हम कराते हैं, दवा-इलाज जिसका हम सहारा लेते और बीमारी से बचने के अन्य उपायों, जो हम अपनाते हैं, के बारे में आपका क्या ख़याल है? क्या ये चीज़ें अल्लाह के निर्णय को टाल सकती हैं? तो आपने उत्तर दिया :

"ये भी अल्लाह के निर्णय का हिस्सा हैं।} [152]

इस हदीस को इमाम अहमद और तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और तिरमिज़ी ने इसे हसन कहा है।

51- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{शक्तिशाली मोमिन कमज़ोर मोमिन के मुकाबले में अल्लाह के समीप अधिक बेहतर तथा प्रिय है। किंतु, प्रत्येक के अंदर भलाई है। जो चीज़ तुम्हारे लिए लाभदायक हो, उसके लिए तत्पर रहो और अल्लाह की मदद माँगो तथा असमर्थता न दिखाओ। फिर यदि तुम्हें कोई विपत्ति पहुँचे, तो यह न कहो कि यदि मैंने ऐसा किया होता, तो ऐसा और ऐसा होता। बल्कि यह कहो कि अल्लाह ने ऐसा ही भाग्य में लिख रखा था और वह जो चाहता है, करता है। क्योंकि 'अगर' शब्द शैतान के कार्य का द्वार खोलता है।} [153]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

अध्याय : फ़रिश्तों और उन पर ईमान का बयान

अल्लाह तआला का फ़रमान है :{भलाई ये नहीं है कि तुम अपना मुख पूर्व अथवा पश्चिम की ओर फेर लो, बल्कि वास्तव में अच्छा वह व्यक्ति है जो अल्लाह पर, परलोक के दिन पर, फरिशतों पर, अल्लाह की किताबों पर और नबियों पर ईमान रखने वाला हो।} [154][सूरा अल-बक़रा : 177]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{निश्चय जिन्होंने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है, फिर इसी पर स्थिर रह गए, तो उन पर फ़रिश्ते उतरते हैं (और कहते हैं) कि भय न करो और न उदास रहो तथा उस स्वर्ग से प्रसन्न हो जाओ, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है।} [155][सूरा फ़ुस्सिलत : 30]एक अन्य स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{मसीह कदापि अल्लाह के बंदे होने को अपमान नहीं समझते और न समीपवर्ती फ़रिश्ते।} [156][सूरा अन-निसा : 172]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{और उसी का है, जो आकाशों तथा धरती में है और जो फ़रिश्ते उसके पास हैं, वे उसकी इबादत (वंदना) से अभिमान नहीं करते और न थकते हैं।वे रात और दिन उसकी पवित्रता का गान करते हैं तथा आलस्य नहीं करते।} [157][सूरा अल-अंबिया : 19 , 20]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{जो बनाने वाला है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाला।} [158][सूरा फ़ातिर : 1]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{वह फ़रिश्ते, जो अपने ऊपर अर्श को उठाए हुए हैं, तथा जो उसके आस-पास हैं, वह पवित्रतागान करते रहते हैं अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ तथा उस पर ईमान रखते हैं और क्षमायाचना करते रहते हैं उनके लिए जो ईमान लाए हैं।} [159][सूरा अल-मोमिन : 7]

52- आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{फ़रिश्ते नूर से पैदा किए गए हैं, जिन्न धधकती आग से पैदा किए गए हैं और आदम -अलैहिस्सलाम- उस चीज़ से पैदा किए गए हैं, जिसके बारे में तुम्हें बताया गया है।} [160]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

53- {मेराज की कुछ हदीसों में साबित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को 'अल-बैत अल-मामूर' की सैर कराई गई, जो सातवें आकाश में और कुछ लोगों के अनुसार छठे आकाश में काबा की सीध में स्थित है। आकाश में उसका वही सम्मान है, जो धरती में काबा का है। आपने देखा कि वहाँ प्रत्येक दिन सत्तर हज़ार फ़रिश्ते प्रवेश करते हैं और क़यामत तक उनको दोबारा वहाँ जाना नसीब नहीं होता।} [161]

54- आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{आकाश में क़दम रखने के बराबर भी ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ कोई फ़रिश्ता सजदे में न हो या नमाज़ में खड़ा न हो। इसी का उल्लेख फ़रिश्तों के इस कथन में है।} [162] :{तथा हम ही (आज्ञापालन के लिए) पंक्तिबद्ध हैं और हम ही तस्बीह (पवित्रता गान) करने वाले हैं।} [163][सूरा अस-साफ़्फ़ात : 165, 166]

इसे मुहम्मद बिन नस्र, इब्न अबू हातिम, इब्न जरीर तथा अबुश-शैख़ ने रिवायत किया है।

55- तबरानी ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह -रज़ियल्लाहु अनहुमा- से रिवायत किया है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{सातों आकाशों में पाँव धरने के बराबर, बित्ता भर और हथेली भर भी ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ कोई फ़रिश्ता नमाज़ में खड़ा न हो, या कोई फ़रिश्ता रुकू में न हो अथवा कोई फ़रिश्ता सजदे में न हो। इसके बावजूद जब क़यामत का दिन आएगा, तो सबके सब कहेंगे : ऐ अल्लाह! तू पवित्र है। हमसे तेरी वैसी इबादत हो न सकी, जैसी होनी चाहिए थी। हाँ, हमने इतना ज़रूर किया है कि किसी को तेरा साझी नहीं ठहराया।}

56- जाबिर -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{मुझे इस बात की अनुमति दी गई है कि अर्श को उठाने वाले फ़रिश्तों में से एक फ़रिश्ते के बारे में बताऊँ। दरअसल, उसकी कर्णपाली (कान की लौ) से कंधे तक की दूरी सात सौ साल की दूरी के बराबर है।} [165]

इसे अबू दाऊद ने, तथा बैहक़ी ने 'अल-असमा वस-सिफ़ात' में और ज़िया ने 'अल-मुख़तारह' में रिवायत किया है।

फ़रिश्तों के बीच जिबरील -अलैहिस्सलाम- को उच्च स्थान प्राप्त है। अल्लाह ने उनको अमानतदार, अच्छे व्यवहार का मालिक तथा शक्तिशाली कहा है।{सिखाया है जिसे उनको शक्तिवान ने।बड़े शक्तिशाली ने। फिर वह सीधा खड़ा हो गया।} [166][सूरा अन-नज्म : 5, 6]

उनकी शक्ति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने लूत -अलैहिस्सलाम- के समुदाय के नगरों को, जिनकी संख्या सात थी, उनके अंदर रहने वाले लोगों के साथ-साथ, जिनकी संख्या चार लाख के आस-पास थी, उनके साथ रहने वाले चौपायों तथा जानवरों एवं खेतों तथा मकानों समेत, अपने पंख के एक किनारे में उठाकर आकाश के इतना निकट ले गए कि फ़रिश्तों को उनके कुत्तों के भूँकने तथा मुर्गों के बाँग देने की आवाज़ सुनाई देने लगी, फिर उनको पलटकर उनके ऊपरी भाग को नीचे कर दिया।

यह उनके शक्तिशाली होने का एक उदाहरण है।

अल्लाह तआला के शब्द "ذو مرۃ" का अर्थ है : अच्छी तथा सुंदर बनावट वाला और बड़ा शक्तिशाली।

यह अर्थ इब्ने-अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का बताया हुआ है।

जबकि अन्य लोगों के अनुसार "ذو مرۃ" का अर्थ शक्तिशाली है।

अल्लाह तआला ने जिबरील -अलैहिस्सलाम- की कुुछ अन्य विशेषताएँ इस प्रकार बयान की हैं :{यह (क़ुरआन) एक मान्यवर स्वर्ग दूत का लाया हुआ कथन है। जो शक्तिशाली है। अर्श के मालिक के पास उच्च पद वाला है। जिसकी बात मानी जाती है और बड़ा अमानतदार है।} [167][सूरा अत-तकवीर : 19-21]यानी वह बड़ी क़ूवत तथा शक्ति के मालिक हैं और अर्श वाले के पास बड़ा पद तथा प्रतिष्ठा रखते हैं।{जिसकी बात मानी जाती है और बड़ा अमानतदार है।} [168]यानी निकटवर्ती फ़रिश्तों में उनकी बात मानी जाती है, और बड़े अमानतदार हैं। यही कारण है कि वह अल्लाह एवं उसके रसूलों के बीच दूत का काम करते हैं।

57- जिबरील अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास विभिन्न रूप में आते थे। आपने उनको, उसी रूप में, जिसमें अल्लाह ने उनको पैदा किया है, दो बार देखा है। उनके छः सौ पर थे।

इसे बुख़ारी ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत किया है।

58- तथा इमाम अहमद ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है, वह कहते हैं : {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिबरील को उनके असली रूप में देखा है। उनके छः सौ पर थे और प्रत्येक पर क्षितिज को ढांप रहा था। उनके परों से विभिन्न प्रकार के इतने रंग, मोती और याक़ूत झड़ रहे थे कि अल्लाह ही बेहतर जानता है।} [169]

इसकी सनद क़वी (मज़बूत) है।

59- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिबरील को उनके असली रूप में देखा, जो हरे रंगा का जोड़ा पहने हुए थे और आकाश तथा धरती के बीच के पूरे खाली स्थान को भर रखा था।

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

60- आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{मैंने जीबरील को उतरते हुए देखा। उन्होंने पूरब तथा पश्चिम के बीच के खाली स्थान को भर रखा था। उनके शरीर पर रेशमी कपड़े थे, जिनपर मोती और याक़ूत टँके हुए थे।} [173]

इसे अबुश-शैख़ ने रिवायत किया है।

61- इब्ने जरीर ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अनहुमा- से वर्णन किया है, वह कहते हैं : जिबरील का अर्थ हैअब्दुल्लाह (अल्लाह का दास), मीकाईल अल्लाह का अर्थ है उबैदुल्लाह ( अल्लाह का छोटा दास) तथा हर वह नाम, जिसमें 'ईल' शब्द है, उसका अर्थ '(अब्दुल्लाह) अल्लाह का दास' है।

62- तथा तबरानी में अली बिन हुसैन से भी इसी तरह की रिवायत मौजूद है, जिसमें यह वृद्धि है : तथा इसराफ़ील का अर्थ है, अब्दुर्रहमान (रहमान का दास)

63- तबरानी ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णन किया है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{क्या मैं तुम्हें न बताऊँ कि सर्वश्रेष्ठ फ़रिश्ता कोन है? सर्वश्रेष्ठ फ़रिश्ता जिबरील हैं।}

64- {अबू इमरान जूनी का वर्णन है कि उन्हें यह हदीस पहुँची है कि जिबरील -अलैहिस्सलाम- नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास रोते हुए आए, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनसे पूछा :

"आप रो क्यों रहे हैं?"

उन्होंने उत्तर दिया : रोऊँ, क्यों नहीं? जिस दिन से अल्लाह ने जहन्नम को पैदा किया है, मेरी आँख इस भय से सूख नहीं पाई कि कहीं मैं अल्लाह की अवज्ञा कर बैठूँ और वह मुझे उसमें डाल दे।

इसे इमाम अहमद ने 'अज़-ज़ुह्द' में रिवायत किया है।

65- बुख़ारी में अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिबरील से कहा :

{क्या आप हमारे पास जितनी बार आते हैं, उससे अधिक नहीं आ सकते?} [175]तो यह आयत उतरी : {हम केवल आपके पालनहार के आदेश से उतरते हैं। उसी का है, जो हमारे सामने है और जो कुछ हमारे पीछे है और जो इसके बीच में है, तथा आपका पालनहार भूलने वाला नहीं है।} [176][सूरा मरयम : 64]

श्रेष्ठ फ़रिश्तों में से एक मीकाईल -अलैहिस्लाम- हैं, जिनके ज़िम्मे बारिश बरसाने तथा पौधे उगाने के काम हैं :

66- तथा इमाम अहमद ने अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिबरील से पूछा :

{बात क्या है कि मैंने मीकाईल को कभी हँसते हुए नहीं देखा?" उन्होंने उत्तर दिया : वह उस दिन से नहीं हँसे, जिस दिन जहन्नम को पैदा किया गया है।} [177]

श्रेष्ठ फ़रिश्तों में से एक इसराफ़ील -अलैहिस्सलाम- हैं, जो अर्श उठाने वाले फरिशतों में से एक हैं और जो सूर में फूँक मारेंगे।

67- तिरमिज़ी और हाकिम ने अबू सईद ख़ुदरी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है और तिरमिज़ी ने हसन भी कहा है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{"मैं कैसे चैन से रह सकता हूँ, जो सूर वाले फ़रिश्ते ने सूर को मुँह से लगा रखा है, पेशानी को झुका रखा है और इस प्रतीक्षा में कान लगा रखा है कि कब उसे आदेश मिल जाए और फूँक मार दे?"सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! ऐसे में हम क्या कहें?आपने फ़रमाया : "तुम कहो : हमारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है और वह अच्छा काम बनाने वाला है,हमने अल्लाह पर भरोसा किया।} [178]

68- अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अर्श को उठाकर रखने वाले फ़रिश्तों में एक फ़रिश्ते का नाम इसराफ़ील है, जिसके कंधे पर अर्श का एक कोना है। उसके दोनों क़दम निचली सातवीं धरती पर है और उसका सर ऊपरी सातवें आकाश तक पहुँचा हुआ है।}इसे अबुश शैख़ ने तथा अबू नुऐम ने 'अल-हिलयह' में रिवायत किया है।

69- तथा अबुश शैख़ ने औज़ाई से वर्णन किया है कि वह कहते हैं : अल्लाह की किसी सृष्टि की आवाज़ इसराफ़ील से अधिक सुंदर नहीं है। जब वह तसबीह पढ़ने लगते हैं, तो सातों आकाशों वालों की नमाज़ तथा तसबीह को काट देते हैं।

श्रेष्ठ फ़रिश्तों में से एक मृत्यु का फ़रिश्ता भी है :

उनका नाम स्पष्ट रूप से क़ुरआन तथा सहीह हदीसों में उल्लिखित नहीं है। जबकि कुछ आसार में उसका नाम अज़राईल आया है। [179] अल्लहा बेहतर जानता है। यह बात हाफ़िज़ इब्ने कसीर ने कही है। वह आगे कहते हैं : ज़िम्मेवारियों की दृष्टि से फ़रिश्ते कई प्रकार के होते हैं :

कुछ फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं।

कुछ फ़रिश्ते कर्रूबी कहलाते हैं, जो अर्श के आस-पास रहते हैं। ये तथा अर्श को उठाए रखने वाले फ़रिश्ते निकटवर्ती फ़रिश्ते कहलाते हैं और सर्वश्रेष्ठ फ़रिश्ते शुमार होते हैं। जैसा अल्लाह तआला का फ़रमान है :{मसीह कदापि अल्लाह के बंदे होने को अपमान नहीं समझते और न समीपवर्ती फ़रिश्ते।} [181][सूरा अन-निसा : 172]कुछ फ़रिश्ते सातों आकाशों में रहते हैं और रात-दिन तथा सुबह-शाम अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला का फ़रमान है :{वे रात और दिन उसकी पवित्रता का गान करते हैं तथा आलस्य नहीं करते।} [182][अल-अंबिया : 20]

कुछ फ़रिश्ते 'अल-बैत अल-मामूर' आते-जाते रहते हैं।

मैं कहता हूँ : बज़ाहिर यही लगता है कि आकाशों में रहने वाले फ़रिश्ते ही 'अल-बैत अल-मामूर' आते-जाते रहते हैं।

कुछ फ़रिश्ते जन्नतों की दखभाल तथा जन्नतियों के आदर-सत्कार, जैसे उनके लिए वस्त्रतों, खाने-पीने की वस्तुओं, आभूषणों एवं ठहरने के स्थानों आदि, जिन्हें न किसी आँख ने देखा है, न किसी कान ने सुना है और न किसी दिल में उनका ख़याल आया है, की व्यवस्था हेतु नियुक्त हैं। जबकि कुछ फ़रिश्ते जहन्नम -अल्लाह हमें उससे बचाए- की देखभाल पर नियुक्त हैं। इन फ़रिश्तों को ज़बानिया कहा जाता है। इन के अगुवा उन्नीस फ़रिश्तेहैं। इनके अगुआ तथा जहन्नम के दरोगा का नाम मालिक है। इन्हीं फ़रिश्तों का ज़िक्र अल्लाह तआला के इस फ़रमान में है :{तथा कहेंगे जो अग्नि में हैं, नरक के रक्षकों से : अपने पालनहार से प्रार्थना करो कि हमसे किसी दिन कुछ यातना हल्की कर दे।} [183][अल-मोमिनून : 49]और अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{तथा वे पुकारेंगे कि हे मालिक! तेरा पालनहार हमारा काम ही तमाम कर दे। वह कहेगा : तुम्हें इसी दशा में रहना है।} [184][सूरा अज़-ज़ुख़रुफ़ : 77]और अल्लाह तआला ने फ़रमायाः{जिस पर कड़े दिल, कड़े स्वभाव वाले फ़रिश्ते नियुक्त हैं। वह अल्लाह के आदेश की अवज्ञा नहीं करते तथा वही करते हैं, जिसका आदेश उन्हें दिया जाए।} [185][सूरा अत-तहरीम : 6]और अल्लाह तआला ने फ़रमायाः{नियुक्त हैं उनपर उन्नीस (रक्षक फ़रिश्ते)।और हमने नरक के रक्षक फ़रिश्ते ही बनाए हैं।} [186]अल्लाह के इस कथन तक :{और आपके पालनहार की सेनाओं को उसके सिवा कोई नहीं जानता।} [187][अल-मुद्दस्सिर : 30-31]तथा कुछ फ़रिश्ते इनसानों की सुरक्षा पर नियुक्त हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमाया है :{उस (अल्लाह) के रखवाले (फ़रिश्ते) हैं, उसके आगे तथा पीछे, जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा कर रहे हैं।} [188][सूरा अर-राद : 11]

अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहते हैं : यह ऐसे फ़रिश्ते हैं, जो इनसान के आगे तथा पीछे से उसकी रक्षा करते हैं। फिर जब अल्लाह का आदेश आएगा, तो उसे छोड़कर हट जाएँगे। [189]

मुजाहिद कहते हैं : हर बंदे पर एक फ़रिश्ता नियुक्त होता है, जो उसके सोते-जागते जिन्नों, इनसानों और हानिकारक जावरों से उसकी सुरक्षा करता है। जब भी इनमें से कोई चीज़ उसे कष्ट पहुँचाने के उद्देश्य से आती है, तो वह उससे कहता है : दूर हो जाओ। हाँ, यदि कोई ऐसी वस्तु आए, जिसकी अनुमति अल्लाह ने दी हो, तो वह उसे पहुँच जाती है।

तथा कुछ फ़रिश्ते बंदों के कर्मों की सुरक्षा पर नियुक्त हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमाया है :{जबकि (उसके) दाएँ-बाएँ दो फ़रिश्ते लिख रहे हैं।वह नहीं बोलता कोई बात, मगर उसे लिखने के लिए उसके पास एक निरीक्षक तैयार होता है।} [190][सूरा क़ाफ़ : 17, 18]और अल्लाह तआला ने फ़रमायाः{जबकि तुमपर निरीक्षक हैं।जो माननीय लेखक हैं।वे, जो कुछ तुम करते हो, जानते हैं।} [191] [सूरा अल-इनफ़ितार : 10-12]

70- बज़्ज़ार ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णन किया है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह तुम्हें निर्वस्त्र होने से मना करता है। अतः, अल्लाह के फ़रिश्तों से हया करो, जो तुम्हारे साथ रहते हैं। वे सम्मानित लिखने वाले हैं, जो केवल तीन अवस्थाओं में ही तुम्हारा साथ छोड़ते हैं ; पेशाब-पाखाने के समय, सहवास के समय और स्नान के समय। अतः, जब तुममें से कोई खाली स्थान में स्नान करे, तो अपने कपड़े, दीवार की आड़ अथवा किसी अन्य वस्तु के द्वारा परदा करे।}

हाफ़िज़ इब्ने कसीर कहते हैं : "उनके सम्मान का मतलब यह है कि उनसे हया की जाए और उन्हें बुरा कर्म लिखने पर मजबूर न किया जाए। क्योंकि उन्हें रचना तथा स्वभाव के दृष्टिकोण से सम्मानित बनाकर पैदा किया गया है।"

उन्होंने आगे जो कुछ कहा है, उसका सार है : उनकी मर्यादा तथा मान-सम्मान का एक उदाहरण यह है कि वे ऐसे घर में प्रवेश नहीं करते, जिसमें कुत्ता, छवि, जुनुबी व्यक्ति एवं मूर्ति हो। इसी तरह ऐसे लोगों के साथ नहीं होते, जिनके साथ कुत्ता अथवा घंटी हो।

71- मालिक, बुख़ारी एवं मुस्लिम ने अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{तुम्हारे पास रात तथा दिन के फ़रिश्ते बारी-बारी आते-जाते रहते हैं, जो फ़ज्र तथा अस्र की नमाज़ में एकत्र होते हैं। फिर जब वह फ़रिश्ते अल्लाह की ओर चढ़ते हैं, जो तुम्हारे पास रात गुज़ारकर जाते हैं, तो अल्लाह, जो बेहतर जानता है, उनसे पूछता है कि तुम मेरे बंदों को किस अवस्था में छोड़ आए हो? वह उत्तर देते हैं : हम जब उन्हें छोड़ आए थे, तो वे नमाज़ पढ़ रहे थे और जब उनके पास पहुँचे थे, तब भी वे नमाज़ पढ़ रहे थे।} [194]

72- तथा एक रिवायत में है कि अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने फ़रमाया : यदि तुम चाहो, तो यह आयत पढ़ लो :{तथा प्रातः (फ़ज्र के समय) क़ुरआन पढ़िए। वास्तव में प्रातः क़ुरआन पढ़ना उपस्थिति का समय है।} [196][सूरा अल-इसरा : 78]

73- इमाम अहमद तथा मुस्लिम ने यह हदीस रिवायत की है :

{जब भी कुछ लोग अल्लाह के किसी घर में अल्लाह की किताब को पढ़ने और उसे सीखने-सिखाने के उद्देश्य से एकत्र होते हैं, तो उन पर शांति की धारा बरसती है, अल्लाह की रहमत उन्हें ढाँप लेती है, और अल्लाह उनकी चर्चा अपने निकटवर्ती फ़रिश्तों के बीच करता है। तथा जिसका कर्म उसे पीछे छोड़ दे, उसके कुल तथा वंश की श्रेष्ठता उसे आगे नहीं ले जा सकता।} [198]

74- मुसनद तथा सुनन की किताबों में यह हदीस मौजूद है :

{फ़रिश्ते ज्ञान अर्जन करने वाले के लिए उसके कार्य से प्रसन्न होकर अपने पंख बिछाते हैं।} [199]

ऐसी हदीसों की संख्या बहुत ज़्यादा है, जिनमें फ़रिश्तों का ज़िक्र आया है।

अध्याय : सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की किताब की वसीयत

अल्लाह तआला का फ़रमान है :{(हे लोगो!) जो तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर उतारा गया है, उस पर चलो और उसके सिवा दूसरे सहायकों के पीछे न चलो। तुम बहुत थोड़ी शिक्षा लेते हो।} [200][सूरा अल-आराफ़ : 3]

75- ज़ैद बिन अरक़म -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ख़ुतबा दिया और अल्लाह की प्रशंसा एवं स्तुति के बाद फ़रमाया :

"तत्पश्चात! लोगो! सुन लो! मैं एक इनसान ही हूँ। समीप है कि मेरे पास मेरे पालनहार का दूत आए और मैं दुनिया से चला जाऊँ। अलबत्ता, मैं तुम्हारे बीच दो भारी चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ। एक है, अल्लाह की किताब, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है। अतः, अल्लाह की किताब को ग्रहण करो और मज़बूती से थामे रहो।" चुनांचे, आपने अल्लाह की किताब को पकड़ने पर उभारा और उसकी प्रेरणा दी, और उसके बाद फ़रमाया : "मेरे परिजनों का भी ख़याल रखना।" तथा एक स्थान में है : "अल्लाह की किताब ही अल्लाह की मज़बूत रस्सी है। जो उसका अनुसरण करेगा, वह सीधे मार्ग पर होगा और जो उसे छोड़ देगा, वह गुमराही का शिकार हो जाएगा।} [201]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

76- तथा सहीह मुस्लिम ही में, जाबिर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की एक लंबी हदीस में है कि {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अरफ़ा के दिन के खुतबे में फ़रमाया :

"मैं तुम्हारे बीच ऐसी चीज़ छोड़े जा रहा हूँ कि यदि उसे मज़बूती से थामे रहोगे, तो कभी गुमराह नहीं होगे। उससे अभिप्राय अल्लाह की किताब है। देखो, तुम लोगों को मेरे बारे में पूछा जाएगा, तो भला तुम क्या उत्तर दोगे?" सहाबा ने कहा : हम गवाही देंगे कि आपने अल्लाह का संदेश पहुँचा दिया, अपनी ज़िम्मेवारी निभाई और हिताकांक्षी रहे। इस पर आपने अपनी तर्जनी को आकाश की ओर उठाया और उससे लोगों की ओर इशारा करते हुए तीन बार फ़रमाया : "ऐ अल्लाह, तू गवाह रह।} [202]

77- अली -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि {मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है :

"देखो, आगे बहुत-से फ़ितने सामने आएँगे।"

मैंने कहा ऐ अल्लाह के रसूल: उनसे निकलने का रास्ता क्या है?

फ़रमाया : "अल्लाह की किताब। उसमें तुमसे पहले जो कुछ हो चुका है, उसकी सूचना है; तुम्हारे बाद जो कुछ होगा, उसकी जानकारी है तथा तुम्हारे बीच होने वाले मतभेदों का निर्णय है। वह निर्णयकारी पुस्तक है, उपहास की वस्तु नहीं। जो अभिमानी उसे छोड़ेगा, उसे अल्लाह तोड़कर रख देगा, और जो उसे छोड़कर किसी अन्य स्रोत से मार्गदर्शन तलाश करेगा, उसे अल्लाह गुमराह कर देगा। वह अल्लाह की मज़बूत रस्सी है, हिकमत से परिपूर्ण वर्णन है और सीधा रास्ता है। वह ऐसी पुस्तक है कि उसके अनुसरण के बाद आकांक्षाएँ भटक नहीं सकतीं, ज़बानें उसे पढ़ने में कठिनाई महसूस नहीं करतीं, उलेमा उससे आसूदा नहीं होते, बार-बार दोहराने से वह पुरानी नहीं होती और उसकी आश्चर्यजनक चीज़ें कभी समाप्त नहीं होंगी। यह वही पुस्तक है, जिसे सुनकर जिन्न बेसाख्ता कह उठे :{हमने एक विचित्र क़ुरआन सुना है।जो सीधी राह दिखाता है। अतः, हम उस पर ईमान ले आए।} [203][सूरा अल-जिन्न : 1, 2]जिसने उसके अनुसार कहा उसने सच कहा, जिसने उस पर अमल किया वह प्रतिफल का हक़दार बन गया, जिसने उसके अनुसार निर्णय किया उसने न्याय किया और जिसने उसकी ओर बुलाया उसे सीधी राह प्राप्त हो गई।}

इसे इमाम तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और ग़रीब कहा है।

78- अबू दरदा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{“अल्लाह ने अपनी किताब में जो हलाल किया, वह हलाल है, तथा जो हराम किया, वह हराम है, और जिससे ख़ामोशी अख़्तियार की वह आफ़ियत है। अतः, तुम अल्लाह की प्रदान की हुई आफ़ियत को क़बूल करो। बेशक अल्लाह तआला भूलने वाला नहीं है।" फिर आपने यह आयत पढ़ी :{और तेरा रब भूलने वाला नहीं है।} [204]}[सूरा मरयम : 64]

इसे बज़्ज़ार, इब्ने अबू हातिम और तबरानी ने रिवायत किया है।

79- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रजयिल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह ने एक सीधे मार्ग का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसके दोनों जानिब दो दीवारें हैं। दोनों दीवारों में द्वार खुले हुए हैं। द्वारों पर परदे लटके हुए हैं। मार्ग के अंतिम छोर पर एक आवाज़ देने वाला यह कहकर आवाज़ दे रहा है कि मार्ग पर सीधे चलते रहो तथा इधर-उधर न मुड़ो। उसके ऊपर भी एक आवाज़ देने वाला आवाज़ दे रहा है। जब भी कोई बंदा कोई द्वार खोलना चाहता है, तो वह कहता है : तेरा बुरा हो! उसे मत खोल। यदि उसे खोल दिया, तो उसमें प्रवेश कर जाएगा।} [205]

फिर आपने उसकी व्याख्या की और फ़रमाया कि मार्ग से मुराद इस्लाम है, खुले हुए द्वार अल्लाह की हराम की हुई चीज़ें हैं, लटके हुए परदे अल्लाह की ओर से निर्धारित दंड हैं, मार्ग के अंतिम छोर पर पुकारने वाला क़ुरआन है और ऊपर से पुकारने वाला हर मोमिन के दिल में अल्लाह का उपदेशक है।

इसे रज़ीन ने रिवायत किया है, तथा अहमद एवं तिरमिज़ी ने इसे नव्वास बिन समआन से इसी की भाँति रिवायत किया है।

80- आइशा -रजि़यल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं :

{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने यह आयत तिलावत की :{उसी ने आप पर यह पुस्तक (क़ुरआन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं।} [206]और उसके अंत यानी यहाँ तक पढ़ा :{और बुद्धिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।} [207][सूरा आल-ए-इमरान: 7]वह कहती हैं : जब तुम ऐसे लोगों को देखो, जो क़ुरआन की मुतशाबेह आयतों के पीछे पड़े हों, तो समझ लो कि यह वही लोग हैं, जिनका अल्लाह ने क़ुरआन में नाम लिया है। अतः, उनसे बचते रहो।}बुख़ारी एवं मुस्लिम।

81- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- बयान करते हैं कि {अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें बताने के लिए अपने हाथ से एक लकीर खींची और फिर फ़रमाया :

"यह अल्लाह का मार्ग है।" फिर उसके दाएँ और बाएँ एक-एक लकीर खींची तथा फ़रमाया : "यह अलग-अलग मार्ग हैं, और इनमें से हर मार्ग पर शैतान बैठा है, जो लोगों को उसकी ओर बुलाता है।" फिर यह आयत पढ़ी :{तथा (उसने बताया कि) ये (इस्लाम ही) अल्लाह की सीधी राह है। अतः इसी पर चलो और दूसरी राहों पर न चलो, अन्यथा वह राहें तुम्हें उसकी राह से दूर करके तितर-बितर कर देंगी। यही है, जिसका आदेश उसने तुम्हें दिया है, ताकि तुम उसके आज्ञाकारी रहो।} [208]}[सूरा अल-अनआम : 153]

इस हदीस को अहमद, दारिमी और नसई ने रिवायत किया है।

82- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि {नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के कुछ साथी तौरात की कुछ बातें लिख लिया करते थे। लोगों ने इसकी सूचना अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को दी, तो आपने फ़रमाया :

"सबसे निर्बुद्धि और पथभ्रष्ट समुदाय वह है, जिसने अपने नबी की लाई हुई शिक्षाओं को छोड़कर किसी अन्य नबी की शक्षाओं को अपनाया और अपने समुदाय को छोड़कर किसी अन्य समुदाय को अपनाया।" फिर अल्लाह ने यह आयत उतारी :{क्या उन्हें पर्याप्त नहीं कि हमने उतारी है आप पर ये पुस्तक (क़ुरआन) जो पढ़ी जा रही है उन पर? वास्तव में, इसमें दया और शिक्षा है, उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।} [209]}[अल-अनकबूत : 51]

इसे इसमाईली ने अपने मोजम और इब्ने मरदवैह ने रिवायत किया है।

83- अब्दुल्लाह बिन साबित बिन हारिस अंसारी -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं :{उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास एक किताब ले आए, जिसमें तौरात के कुछ अंश लिख हुए थे और बोले : इसे मैंने एक अह्ले किताब से प्राप्त किया है, ताकि आपके सामने प्रस्तुत करूँ। यह देख अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के चेहरे का रंग इतना ज़्यादा बदल गया कि मैंने उस तरह बदलते हुए कभी नहीं देखा था। इस पर अब्दुल्लाह बिन हारिस ने उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- से कहा : क्या आप अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का चेहरा नहीं देख रहे हैं?! अतः, उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- ने कहा : हम अल्लाह के पालनहार, इस्लाम के धर्म और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नबी होने पर संतुष्ट एवं प्रसन्न हैं। तब जाकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का गुस्सा ठंडा हुआ और फ़रमाया :

"अगर मूसा भी उतर आएँ, और तुम मुझे छोड़ उनका अनुसरण करने लगो, तो पथभ्रष्ट हो जाओगे। मैं नबियों में से तुम्हारा हिस्सा हूँ और तुम उम्मतों में से मेरा हिस्सा हो।}

इसे अब्दुर रज़्ज़ाक़, इब्ने साद और हाकिम ने 'अल-कुना' में रिवायत किया है।

अध्याय : नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के अधिकार

अल्लाह तआला का फ़रमान है :{हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, तथा अपने शासकों की आज्ञा का पालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखते हो। यह तुम्हारे लिए अच्छा और इसका परिणाम अच्छा ह।} [210][सूरा अन-निसा : 59]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{तथा नमाज़ की स्थापना करो, ज़कात दो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुम पर दया की जाए।} [211][सूरा अन-नूर : 56]और अल्लाह तआला का फ़रमान हैः{तथा जो तुम्हें रसूल दें, तुम उसे ले लिया करो और जिस चीज़ से रोकें, रुक जाया करो।} [212] पूरी आयत[सूरा अल-हश्र : 7]84- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{मुझे आदेश दिया गया है कि लोगों से युद्ध करूँ, यहाँ तक कि इस बात की गवाही दें कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ क़ायम करें और ज़कात अदा करें। अगर उन्होंने इतना कर लिया तो अपनी जान तथा माल को इस्लाम के अधिकार के सिवा हमसे सुरक्षित कर लिया और उनका हिसाब महान और शक्तिशाली अल्लाह पर है।} [213]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

85- बुख़ारी तथा मुस्लिम में अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{तीन चीज़ें जिसके अंदर होंगी, वह ईमान की मिठास महसूस कर पाएगा। पहली : अल्लाह और उसके रसूल उसके निकट सबसे प्रिय हों। दूसरी : किसी इनसान से केवल अल्लाह के लिए प्रेम रखे। तीसरी : जब अल्लाह ने उसे कुफ़्र से बचा लिया है, तो वह वापस कुफ़्र की खाई में पड़ने को वैसे ही नापसंद करे, जैसे जहन्नम में डाला जाना उसे नापसंद हो।} [219]

86- तथा बुख़ारी एवं मुस्लिम में अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- ही से मर्फूअन रिवायत है :

{तुममें से कोई व्यक्ति उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता, जब तक मैं उसके निकट, उसकी संतान, उसके पिता और तमाम लोगों से अधिक प्यारा न हो जाऊँ।} [220]

87- मिक़दाम बिन मादीकरिब किंदी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{समीप है कि ऐसा समय आए कि एक व्यक्ति अपने तख़्त पर टेक लगाए बैठा होगा और जब उसे मेरी कोई हदीस सुनाई जाएगी, तो कहेगा : हमारे और तुम्हारे बीच सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की पुस्तक (ही काफ़ी) है। हम उसमें जो चीज़ हलाल पाएँगे, उसे हलाल मानेंगे और उसमें जो चीज़ हराम पाएँगे, उसे हराम मानेंगे!! सुन लो, बेशक जिस चीज़ को अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हराम कहा है, वह उसी तरह हराम है, जैसे अल्लाह की हराम की हुई चीज़ हराम है।} [221]

इसे तिरमिज़ी और इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

अध्याय : नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का सुन्नत को अनिवार्य जानने पर उभारने, उसकी प्रेरणा देने और बिदअत, विभेद तथा बिखराव से सावधान करने का बयान

अल्लाह तआला का फ़रमान हैः{तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) की, तथा याद करे अल्लाह को अत्यधिक।} [224][सूरा अल-अहज़ाब : 21]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{जिन लोगों ने अपने धर्म में विभेद किया और कई समुदाय हो गए, आपका उनसे कोई संबंध नहीं। उनका निर्णय अल्लाह को करना है। फिर वह उन्हें बताएगा कि वह क्या कर रहे थे।} [225][सूरा अल-अनआम: 159]एक और स्थान पर अल्लाह तआला ने फ़रमाया :{अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित कर दिया है, जिसको स्थापित करने का उसने नूह को आदेश दिया था, और जो (प्रकाशना के द्वारा) हमने तेरी ओर भेज दिया है तथा जिसका विशेष आदेश हमने इब्राहीम तथा मूसा एवं ईसा को दिया था कि धर्म को स्थापित रखना तथा इसमें फूट न डालना।} [266][सूरा अश-शूरा : 13]88- इरबाज़ बिन सारिया -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं :{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमारे सामने एक प्रभवाी संबोधन रखा, जिससे आँखें बह पड़ीं और दिल सहम गए। अतः, एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! ऐसा प्रतीत होता है कि यह विदा करने वाले का उपदेश है। ऐसे में आप हमें क्या वसीयत करते हैं? आपने कहा : "मैं तुम्हें अल्लाह का भय रखने तथा शासक की बात सुनने एवं मानने की वसीयत करता हूँ, चाहे तुम्हारा शासक एक हबशी दास ही क्यों न हो! क्योंकि तुममें से जो लोग जीवित रहेंगे, वे बहुत-से मतभेद देखेंगे। अतः, तुम मेरी सुन्नत तथा मेरे बाद मेरे संमार्गी ख़लीफाओं की सुन्नत को मज़बूती से थामे रहना और दाढ़ से पकड़े रहना। साथ ही धर्म के नाम पर किए जाने वाले नित-नए कामों से बचते रहना। क्योंकि धर्म के नाम पर किया जाने वाला हर नया काम बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है।} [227]

इसे अबू दाऊद, तिरमिज़ी तथा इब्ने माजा ने रिवायत किया है और तिरमिज़ी ने सहीह कहा है।

तथा तिरमिज़ी की एक अन्य रिवायत में है :

{मैंने तुम्हें एक ऐसे प्रकाशमय मार्ग पर छोड़ा है, जिसकी रात भी दिन की तरह रौशन है। मेरे बाद इससे वही भटकेगा, जिसके भाग्य में विनाश लिखा हो। जो मेरे बाद जीवित रहेगा, वह बहुत-सारे मतभेदा देखेगा...} [228]

फिर उसी अर्थ की हदीस बयान की।

89- मुस्लिम में जाबिर -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{तत्पश्चात; निस्संदेह सबसे अच्छी बात अल्लाह की किताब है, और सबसे उत्तम तरीक़ा मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का तरीक़ा है, और सबसे बुरी चीज़ धर्म के नाम पर की जाने वाली नई चीज़ें हैं और हर बिदअत (धर्म के नाम पर की जाने वाली नई चीज़) गुमराही है।} [229]

90- सहीह बुख़ारी में अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{मेरी उम्मत के सभी लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे, सिवाए उसके जो इनकार करे।

किसी ने पूछा : भला इनकार कौन करेगा?

फ़रमाया : "जिसने मेरा अनुसरण किया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा, और जिसने मेरी अवज्ञा की, उसने (जन्नत में प्रवेश करने से) इनकार किया।} [233]

91- बुख़ारी तथा मुस्लिम में अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं :{तीन आदमी नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बीवियों के पास आए और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की इबादत के बारे में पूछने लगे। जब उन्हें बताया गया, तो गोया कि उन्होंने आपकी इबादत को बहुत कम समझा। फिर कहने लगे : हम आपकी कब बराबरी कर सकते हैं? क्योंकि आपके तो अगले-पिछले सब गुनाह माफ कर दिए गए हैं। चुनांचे उनमें से एक कहने लगा : मैं तो जीवन भर पूरी-पूरी रात नमाज़ पढ़ता रहूँगा। दूसरे ने कहा : मैं हमेशा रोज़े रखूँगा और कभी रोज़ा नहीं छोड़ूँगा। जबकि तीसरे ने कहा : मैं औरतों से दूर रहूँगा और कभी शादी नहीं करूँगा। चुनाँचे, नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनके पास आए और फ़रमाया : "तुम लोगों ने ऐसी-ऐसी बातें की हैं? अल्लाह की क़सम! मैं तुम्हारी तुलना में अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला और तक़वा अख़्तियार करने वाला हूँ। लेकिन मैं रोज़े भी रखता हूँ और रोज़ा छोड़ता भी हूँ। रात को नमाज़ भी पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ। साथ ही औरतों से निकाह भी करता हूँ। जान लो, जो आदमी मेरे तरीक़े से मुँह मोड़ेगा, वह मुझसे नहीं है।} [237]

{तीन आदमी नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बीवियों के पास आए और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की इबादत के बारे में पूछने लगे। जब उन्हें बताया गया, तो गोया कि उन्होंने आपकी इबादत को बहुत कम समझा। फिर कहने लगे : हम आपकी कब बराबरी कर सकते हैं? क्योंकि आपके तो अगले-पिछले सब गुनाह माफ कर दिए गए हैं। चुनांचे उनमें से एक कहने लगा : मैं तो जीवन भर पूरी-पूरी रात नमाज़ पढ़ता रहूँगा। दूसरे ने कहा : मैं हमेशा रोज़े रखूँगा और कभी रोज़ा नहीं छोड़ूँगा। जबकि तीसरे ने कहा : मैं औरतों से दूर रहूँगा और कभी शादी नहीं करूँगा। चुनाँचे, नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनके पास आए और फ़रमाया : "तुम लोगों ने ऐसी-ऐसी बातें की हैं? अल्लाह की क़सम! मैं तुम्हारी तुलना में अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला और तक़वा अख़्तियार करने वाला हूँ। लेकिन मैं रोज़े भी रखता हूँ और रोज़ा छोड़ता भी हूँ। रात को नमाज़ भी पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ। साथ ही औरतों से निकाह भी करता हूँ। जान लो, जो आदमी मेरे तरीक़े से मुँह मोड़ेगा, वह मुझसे नहीं है।} [237]

92- अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{इस्लाम की शुरूआत अजनबी हालत में हुई और शीघ्र ही वह पहले के समान अजनबी हो जाएगा। ऐसे में, शुभ सूचना है अजनबियों के लिए।} [239]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

93- अब्दुल्लाह बिन अम्र -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{तुममें से कोई उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता, जब तक उसकी इच्छाएँ मेरी लाई हुई शरीयत के अधीन न हो जाएँ।}

इसे बग़वी ने शर्ह-अस-सुन्नह में रिवायत किया है और नववी ने सहीह कहा है।

94- अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से ही वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{मेरी उम्मत पर बिल्कुल वैसा ही समय आएगा, जैसा कि बनी इस्राईल पर आया था। यहाँ तक कि यदि उनमें से किसी ने अपनी माँ के साथ खुल्लम-खुल्ला ज़िना किया होगा, तो मेरी उम्मत में भी इस प्रकार का व्यक्ति होगा, जो ऐसा करेगा। तथा बनी इस्राईल बहत्तर फ़िर्कों (दलों) में बट गए थे, और मेरी यह उम्मत तिहत्तर फ़िर्कों में बट जाएगी। उनमें से एक के अतिरिक्त बाक़ी सब नरकवासी होंगे।"

{मेरी उम्मत पर बिल्कुल वैसा ही समय आएगा, जैसा कि बनी इस्राईल पर आया था। यहाँ तक कि यदि उनमें से किसी ने अपनी माँ के साथ खुल्लम-खुल्ला ज़िना किया होगा, तो मेरी उम्मत में भी इस प्रकार का व्यक्ति होगा, जो ऐसा करेगा। तथा बनी इस्राईल बहत्तर फ़िर्कों (दलों) में बट गए थे, और मेरी यह उम्मत तिहत्तर फ़िर्कों में बट जाएगी। उनमें से एक के अतिरिक्त बाक़ी सब नरकवासी होंगे।"

सहाबा ने पूछा : वह कौन-सा वर्ग होगा ऐ अल्लाह के रसूल?

फ़रमाया : "वह वर्ग, जो उस मार्ग पर चल रहा होगा, जिस पर मैं चल रहा हूँ और मेरे सहाबा चल रहे हैं।} [240]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

95- और सहीह मुस्लिम में अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{जिसने किसी हिदायत की ओर बुलाया, उसे उतना ही सवाब मिलेगा, जितना उसका अनुसरण करने वालों को मिलेगा। लेकिन इससे उन लोगों के सवाब में कोई कमी नहीं होगी। तथा जिसने गुमराही की ओर बुलाया, उसे उतना ही गुनाह होगा, जितना गुनाह उसका अनुसरण करने वालों को होगा। परन्तु इससे उन लोगों के गुनाह में कोई कमी नहीं होगी।} [243]

96- और सहीह मुस्लिम में अबू मसऊद अंसारी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है :{एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और बोला : मेरा रास्ता कट गया है, अतः, मेरे लिए सवारी का प्रबंध कर दें। आपने कहा : "मेरे पास भी तो नहीं है।" इसप र एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं एक व्यक्ति का पता दे सकता हूँ, जो उसके लिए सवारी का प्रबंध कर दे। यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और बोला : मेरा रास्ता कट गया है, अतः, मेरे लिए सवारी का प्रबंध कर दें। आपने कहा : "मेरे पास भी तो नहीं है।" इसप र एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं एक व्यक्ति का पता दे सकता हूँ, जो उसके लिए सवारी का प्रबंध कर दे। यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

"जिसने किसी अच्छे काम की राह दिखाई, उसे उसके करने वाले के बराबर सवाब मिलेगा।} [244]

97- अम्र बिन औफ़ -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफूअन वर्णित है :

{जिसने मेरी किसी सुन्नत को, जो मेरे बाद मुर्दा हो चुकी थी, जीवित किया, उसे बाद में उस पर अमल करने वाले तमाम लोगों के बराबर सवाब मिलेगा, और इससे उनके सवाब में कोई कटौती नहीं होगी। इसी तरह जिसने धर्म के नाम पर कोई ऐसा काम किया, जो अल्लाह और उसके रसूल को पसंद न हो, तो उसे बाद में अमल करने वाले तमाम लोगों के बराबर गुनाह होगा और इससे उनके गुनाहों में कोई कटौती नहीं होगी।} [245]

इसे तिरमिज़ी तथा इब्ने माजा ने रिवायत किया है, तिरमिज़ी ने हसन कहा है और शब्द इब्ने माजा के हैं।

98- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं :

{तुम्हारा उस समय क्या हाल होगा, जब तुमपर फ़ितने का इस तरह राज होगा कि छोटा उसी में बड़ा होगा, बड़ा उसी में बूढ़ा होगा, उसका प्रचलन इस हद तक बढ़ जाएगा कि सब लोग उसका पालन करेंगे, और जब उसमें कोई परिवर्तन किया जाएगा, तो आवाज़ उठेगी कि एक सुन्नत छोड़ दी गई! किसी ने पूछा कि ऐ अबू अब्दुर रहमान! ऐसा कब होगा? उन्होंने उत्तर दिया : जब तुम्हारे बीच क़ुरआन पढ़ने वाले अधिक होंगे और समझने वाले कम, धन-दौलत की बारिश होगी और अमानतदार घट जाएँगे, आख़िरत के अमल से दुनिया तबल की जाएगी और दुनियादारी के उद्देश्य से धर्म का ज्ञान प्राप्त किया जाएगा।} [246]

इसे दारिमी ने रिवायत किया है।

99- {ज़ियाद बिन हुदैर -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने मुझसे पूछा : क्या तुम जानते हो कि कौन-सी चीज़ें इस्लाम को ध्वस्त करने का काम करती हैं? मैंने उत्तर दिया कि नहीं। तो फ़रमाया : जो चीज़ें इस्लाम को ध्वस्त करने का काम करती हैं, वह हैं : आलिम की त्रुटि, मुनाफ़िक़ का क़ुरआन के द्वारा वाद-विवाद करना और पथभ्रष्टता की ओर ले जाने वाले शासनकर्ताओं का शासन।} [247]

इसे भी दारिमी ने रिवायत किया है।

100- हुज़ैफा- रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं :{हर वह इबादत जिसे मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सहाबा किराम ने इबादत नहीं समझा, उसे तुम भी इबादत न समझो। क्योंकि उन्होंने बाद में आने वालों के लिए कुछ कहने की गुन्जाईश नहीं छोड़ी है। अतः, ऐ क़ुरआन के पाठको, अल्लाह तआलाल से डरो और अपने पूर्वजों के तरीके को अपनाओ।}

{हर वह इबादत जिसे मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सहाबा किराम ने इबादत नहीं समझा, उसे तुम भी इबादत न समझो। क्योंकि उन्होंने बाद में आने वालों के लिए कुछ कहने की गुन्जाईश नहीं छोड़ी है। अतः, ऐ क़ुरआन के पाठको, अल्लाह तआलाल से डरो और अपने पूर्वजों के तरीके को अपनाओ।}

इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

101- तथा अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं : तुममें से जो व्यक्ति किसी का तरीक़ा अपनाना चाहे, वह उन लोगों का तरीक़ा अपनाए, जो दुनिया से जा चुके हैं। क्योंकि जीवित व्यक्ति के बारे में फ़ितने में पड़ने का अंदेशा बना रहता है। मैं बात मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथियों की कर रहा हूँ, जो इस उम्मत के सर्वश्रेष्ठ लोग थे। वे सबसे नेकदिल, ज्ञान के धनी और दिखावा तथा बनावट से दूर रहने वाले लोग थे। अल्लाह ने अपने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का साथ निभाने और अपने धर्म को स्थापित करने के लिए उनका चयन किया था। अतः, उनके मर्तबे को पहचानो, उनके पदचिह्नों पर चलो और जहाँ तक हो सके, उनके आचार-विचार को अपनाओ। क्योंकि वे सीधे मार्ग पर चलकर गए हैं।"

इसे रज़ीन ने रिवायत किया है।

102- अम्र बिन शोऐब अपने पिता से और वह अपने दादा से रिवायत करते हैं कि उन्होंने कहा :{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कुछ लोगों को क़ुरआन के बारे में वाद-विवाद करते हुए सुना, तो फ़रमाया : "तुमसे पहले गुज़रे हुए लोग इसी बात के कारण हलाक हुए थे; उन्होंने अल्लाह की किताब की कुछ आयतों का उसकी कुछ दूसरी आयतों से टकराव पैदा कर दिया था। जबकि अल्लाह की किताब इस तरह उतरी है कि उसका एक भाग दूसरे भाग की पुष्टि करता है। अतः, उसके एक भाग के द्वारा दूसरे भाग से न झुठलाओ। उसमें से जितना जानते हो, बस उतने ही की बात करो और जितना नहीं जानते हो, उसे जानने वाले के हवाले कर दो।} [248]

{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कुछ लोगों को क़ुरआन के बारे में वाद-विवाद करते हुए सुना, तो फ़रमाया : "तुमसे पहले गुज़रे हुए लोग इसी बात के कारण हलाक हुए थे; उन्होंने अल्लाह की किताब की कुछ आयतों का उसकी कुछ दूसरी आयतों से टकराव पैदा कर दिया था। जबकि अल्लाह की किताब इस तरह उतरी है कि उसका एक भाग दूसरे भाग की पुष्टि करता है। अतः, उसके एक भाग के द्वारा दूसरे भाग से न झुठलाओ। उसमें से जितना जानते हो, बस उतने ही की बात करो और जितना नहीं जानते हो, उसे जानने वाले के हवाले कर दो।} [248]

इसे अहमद और इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

अध्याय : ज्ञान प्राप्त करने पर उभारने और ज्ञान प्राप्त करने की कैफ़ियत का बयान

103- सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम की एक हदीस में क़ब्र की परीक्षा के बारे में आया है कि {अल्लाह की नेमतों का हक़दार बंदा कहेगा : अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमारे पास स्पष्ट निशानियों और मार्गदर्शन के साथ आए, तो हमने आपकी बात मानी, ईमान ले आए और आपका अनुसरण किया। जबकि अल्लाह के दंड का हक़दार व्यक्ति कहेगा : मैंने लोगों को एक बात कहते हुए सुना, तो मैंने भी कह दिया।} [249]

104- तथा बुख़ारी एवं मुस्लिम में मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह जिसके साथ भलाई का इरादा करता है, उसे धर्म की समझ प्रदान करता है।} [254]

105- बुख़ारी तथा मुस्लिम ही में अबू मूसा अशअरी -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह ने जो हिदायत और ज्ञान देकर मुझे भेजा है, उसकी मिसाल तेज़ बारिश की सी है, जो ज़मीन पर बरसती है। फिर धरती का कुछ भाग उपजाऊ होता है, जो पानी को सोख लेता है और बड़ी मात्रा में घास तथा हरियाली उगा देता है। जबकि धरती का कुछ भाग पैदावार के लायक नहीं होता, वह पानी को रोक लेता है और उसके द्वारा अल्लाह लोगों को फ़ायदा पहुँचाता है, तो लोग वह पानी पीते हैं, अपने जानवरों को पिलाते हैं और उससे खेती-बाड़ी करते हैं। साथ ही बारिश धरती के कुछ ऐसे भाग पर भी बरसती है, जो टीलों की शक्ल में होता है। वह न पानी को जमा रखता है और न हरियाली उगाता है। यही मिसाल उस आदमी की है, जिसने अल्लाह के धर्म की समझ हासिल की और जो शिक्षा देकर अल्लाह तआला ने मुझे भेजा है, उससे फ़ायदा उठाया। उसने उसे ख़ुद सीखा और दूसरों को सिखाया तथा यह उस आदमी की मिसाल भी है, जिसने इसपर तवज्जो नहीं दी तथा अल्लाह की हिदायत को, जो मैं लेकर आया हूँ, स्वीकार नहीं किया।} [255]

106- तथा सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम ही में आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{जब तुम ऐसे लोगों को देखो, जो क़ुरआन की मुतशाबेह आयतों के पीछे पड़े हों, तो समझ लो कि यह वही लोग हैं, जिनका अल्लाह ने क़ुरआन में नाम लिया है। अतः, उनसे बचते रहो।} [257]

107- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :{अल्लाह ने मुझसे पहले किसी उम्मत में जो भी रसूल भेजा, अपनी उम्मत में उसके कुछ मित्र एवं साथी हुआ करते थे, जो उसकी सुन्नत पर अमल करते और उसके आदेश का अनुसरण करते थे। फिर उनके बाद ऐसे उत्तराधिकारी आए जो कि जो वह कहते थे, वह करते नहीं थे और वह करते थे, जिसका उन्हें आदेश नहीं दिया गया था। तो जिसने उनसे हाथ से जिहाद किया वह मोमिन है, जिसने उनसे दिल से जिहाद किया, वह मोमिन है तथा जिसने उनसे ज़बान से जिहाद किया, वह भी मोमिन है। तथा इसके अतिरिक्त एक राई के दाने के बराबर भी ईमान नहीं है।} [259]

{अल्लाह ने मुझसे पहले किसी उम्मत में जो भी रसूल भेजा, अपनी उम्मत में उसके कुछ मित्र एवं साथी हुआ करते थे, जो उसकी सुन्नत पर अमल करते और उसके आदेश का अनुसरण करते थे। फिर उनके बाद ऐसे उत्तराधिकारी आए जो कि जो वह कहते थे, वह करते नहीं थे और वह करते थे, जिसका उन्हें आदेश नहीं दिया गया था। तो जिसने उनसे हाथ से जिहाद किया वह मोमिन है, जिसने उनसे दिल से जिहाद किया, वह मोमिन है तथा जिसने उनसे ज़बान से जिहाद किया, वह भी मोमिन है। तथा इसके अतिरिक्त एक राई के दाने के बराबर भी ईमान नहीं है।} [259]

इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

108- जाबिर -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! हमें यहूदियों की कुछ बातें अच्छी लगती हैं, तो क्या आप उचित समझते हैं कि हम उनमें से कुछ बातों को लिख लें? इस पर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{क्या तुम भी यहूदियों एवं ईसाइयों की तरह विस्मय के शिकार होना चाहते हो? मैं तुम्हारे पास एक प्रकाशमान तथा साफ़-सुथरी शरीयत लेकर आया हूँ। यदि मूसा भी जीवित होते, तो उन्हें भी मेरा अनुसरण करना पड़ता।} [260]

इसे अह़मद ने रिवायत किया है।

109- अबू सालबा ख़ुशनी -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{अल्लाह तआला ने कुछ चीज़ें फ़र्ज़ की हैं; उन्हें नष्ट न करो, कुछ सीमाएँ निर्धारित की हैं; उन्हें पार न करो, कुछ चीज़ें हराम की हैं; उनके निकट न जाओ और कुछ चीज़ों से, जान-बूझकर तुम्हारे ऊपर दयास्वरूप खामोशी बरती है; उनके पीछे मत पड़ो।}

यह हदीस हसन है। इसे दारक़ुतनी आदि ने रिवायत किया है।

110- बुख़ारी एवं मुस्लिम में अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{मैं तुम्हें जिस चीज़ से रोकूँ, उससे बचते रहो और जिस चीज़ का आदेश दूँ, उसे जहाँ तक हो सके किए जाओ, क्योंकि तुमसे पहले के लोगों को उनके अधिक प्रश्नों और नबियों के विरोध ने हलाक किया है।} [261]

111- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह उस बंदे को प्रफुल्ल व प्रसन्न रखे, जो मेरी बात सुने, उसे याद तथा सुरक्षित रखे और दूसरे को पहुँचा दे। क्योंकि कई फ़िक़्ह के वाहक फ़क़ीह नहीं होते और कई फ़िक़्ह के वाहक उसे ऐसे व्यक्ति तक पहुँचा देते हैं जो उससे अधिक फ़क़ीह होते हैं। तीन बातों के संबंध में एक मुसलमान के दिल से चूक नहीं होती: केवल अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए काम करना, मुसलमानों का शुभाकांक्षी रहना और उनकी जमात के साथ आवश्यक रूप से जुड़ा रहना। क्योंकि मुसलमानों की दुआ उनको अपने घेरे में रखती है।} [263]

इसे शाफ़िई ने तथा बैहक़ी ने 'अल-मदख़ल' में रिवायत किया है। जबकि अहमद, इब्ने माजा एवं दारिमी ने इसे ज़ैद बिन साबित -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है।

112- तथा अहमद, अबू दाऊद और तिरमिज़ी ने इसे ज़ैद बिन साबित -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है।

113- अब्दुल्लाह बिन अम्र -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{ज्ञान केवल तीन हैं : सुदृढ़ आयत का ज्ञान, प्रचलित सुन्नत का ज्ञान तथा न्याय पर आधारित फ़राइज़ का ज्ञान। इनके सिवा जितने ज्ञान हैं, वह अतिरिक्त हैं।} [266]

इस हदीस को दारिमी तथा अबू दाऊद ने वर्णन किया है।

114- अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जिसने क़ुरआन के बारे में अपने मन से कोई बात कही, वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।} [267]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

115- तथा एक रिवायत में है :

{जिसने क़ुरआन के बारे में बिना जानकारी के कोई बात कही, वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।} [268]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

116- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जिसने बिना जानकारी के फ़तवा दिया, उसका गुनाह फ़तवा देने वाले पर होगा तथा जिसने यह जानते हुए भी अपने भाई को किसी बात का मशविर दिया कि वह उसके लिए उचित नहीं है, उसने उसके साथ धोखा किया।} [269]

इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

117- मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि नबी -सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कठिन मसलों में पड़ने से मना किया है।

इसे भी अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

118- कसीर बिन क़ैस कहते हैं : मैं दिमश्क़ की मस्जिद में अबू दरदा के साथ बैठा हुआ था कि एक व्यक्ति ने आकर कहा : ऐ अबू दरदा! मैं आपके पास अल्लाह के रसूल -सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नगर से आया हूँ, क्योंकि मुझे सूचना मिली है कि आप अल्लाह के रसूल -सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम- से एक हदीस बयान करते हैं। मैं आपके पास किसी अन्य उद्देश्य से नहीं आया हूँ। यह सुन अबू दरदा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहा कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम- को फ़रमाते हुए सुना है :

{जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति के पथ पर चलता है, अल्लाह उसके लिए जन्नत का रास्ता आसान कर देता है और फ़रिश्ते ज्ञान प्राप्ति करने वाले से खुश होकर उसके लिए अपने पर बिछा देते हैं। निश्चय ही आलिम के लिए आकाशों तथा धरती की सारी चीजें, यहाँ तक कि पानी की मछलियाँ भी क्षमा की प्रार्थना करती हैं। आलिम को आबिद पर वही श्रेष्ठता प्राप्त है, जो चाँद को सितारों पर। उलेमा नबियों के वारिस हैं और नबियों ने दीनार तथा दिरहम विरासत में नहीं छोडा, बल्कि विरासत में केवल ज्ञान छोडा। अत: जिसने इसे प्राप्त कर लिया, उसने नबवी मीरास का बड़ा भाग प्राप्त कर लिया।} [270]

इसे अहमद, दारिमी, अबू दाऊद, तिरमिज़ी तथा इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

119- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{हिकमत की बात मोमिन का खोया हुआ सामान है। वह उसे जहाँ भी पाए, उसे अपनाने का अधिक हक़ रखता है ।} [275]

इस हदीस को तिरमिज़ी तथा इब्ने माजा ने रिवायत किया है और तिरमिज़ी ने 'ग़रीब' कहा है।

120- {अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं : वास्तविक फ़क़ीह वह है जो लोगों को अल्लाह की दया से निराश न करे,उन्हें अल्लाह की अवज्ञा की छूट न दे, अल्लाह की यातना से निश्चिंत न करे और क़ुरआन से मुँह मोड़ कर किसी और वस्तु को न अपनाए। उस इबादत में कोई भलाई नहीं जो ज्ञानरहित हो, उस ज्ञान में कोई भलाई नहीं जो विवेकरहित हो और उस तिलावत में कोई भलाई नहीं जो विचाररहित हो।} [276]

121- और हसन -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जिस व्यक्ति की मृत्यु इस अवस्था में आए कि वह इस्लाम को जीवित करने के उद्देश्य से ज्ञानार्जन में लगा हुआ हो, तो उसके तथा नबियों के बीच जन्नत में केवल एक दर्जे का अंतर होगा।} [277]

इन दोनों हदीसों को दारिमी ने रिवायत किया है।

अध्याय : ज्ञान का उठा लिया जाना

122- अबू दरदा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं :{हम लोग अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ थे। इसी बीच आपने आकाश की ओर नज़र उठाई और फ़रमाया : "यह वह समय है, जब लोगों का ज्ञान उचक लिया जाएगा और उनके पास ज़रा भी ज्ञान बाक़ी नहीं रहेगा।"} [278]

{हम लोग अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ थे। इसी बीच आपने आकाश की ओर नज़र उठाई और फ़रमाया : "यह वह समय है, जब लोगों का ज्ञान उचक लिया जाएगा और उनके पास ज़रा भी ज्ञान बाक़ी नहीं रहेगा।"} [278]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

123- ज़ियाद बिन लबीद -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं : {अल्लाह के नबी -सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम- ने किसी चीज़ की चर्चा की और फ़रमाया कि यह उस समय होगा, जब ज्ञान विलुप्त हो जाएगा। मैंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! ज्ञान विलुप्त कैसे हो जाएगा, जबकि हम क़ुरआन पढ़ते हैं, अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, हमारे बच्चे भी अपने बच्चों को पढ़ाएँगे और इस तरह यह सिलसिला क़यामत तक जारी रहेगा? आपने उत्तर दिया : "ज़ियाद! तुम्हारी माँ तुमपर रोए! मैं तो तुम्हें मदीने के सबसे समझदार लोगोंं में गिना करता था और तुम इस तरह का प्रश्न करते हो? क्या तुम इन यहूदियों तथा ईसाइयों को नहीं देखते, जो तौरात तथा इंजील पढ़ते तो हैं, लेकिन दोनों ग्रंथों की शिक्षाओं पर ज़रा भी अमल नहीं करते?} [279]

इसे अहमद और इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

124- अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं :

{तुम ज्ञान को आवश्यक जानो, इससे पहले कि उसे उठा लिया जाए। देखो, ज्ञान को उठा लिए जाने का मतलब ज्ञानवान लोगों का उठ जाना है। तुम ज्ञान को आवश्यक जानो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हें कब उसकी ज़रूरत पड़ जाए, या किसी और को तुम्हारे ज्ञान की ज़रूरत पड़ जाए। एक समय ऐसा आएगा कि तुम्हें ऐसे लोग मिलेंगे, जो अल्लाह की किताब की ओर बुलाने का दावा तो करेंगे, लेकिन ख़ुद उन्होंने ही उसे अपनी पीठ के पीछे डाल रखा होगा। तुम ज्ञान को आवश्य जानो तथा बिदअतों, अतिशयोक्ति एवं बाल की खाल निकालने से बचो और पुरानी वस्तु को आवश्यक जानो।} [280]

इसे दारिमी ने उसी की भाँति रिवायत किया है।

125- सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से मर्फ़ूअन वर्णित है :

{अल्लाह ज्ञान को ऐसे ही बंदों से खींचकर उठा नहीं लेगा, बल्कि ज्ञान को उठाने का काम उलेमा की मृत्यु के माध्यम से केरगा। यहाँ तक कि जब कोई ज्ञानी बाक़ी नहीं रहेगा, तो लोग अज्ञानियों को सरदार बना लेंगे। फिर जब उनसे कुछ पूछा जाएगा, तो बिना ज्ञान के फ़तवा देंगे अतः ख़ुद भी पथभ्रष्ट होंगे और लोगों को भी पथभ्रष्ट करेंगे।} [281]

126- अली -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{समीप है कि लोगों पर ऐसा समय आए, जब इस्लाम का केवल नाम रह जाएगा, और क़ुरआन की केवल लिखावट रह जाएगी। मस्जिदें आबाद तो होंगी, परन्तु हिदायत से ख़ाली होंगी। उलेमा आकाश के नीचे रहने वाले सबसे बुरे प्राणी होंगे। उन्हीं के पास से फ़ितने निकलेंगे और उन्हीं के पास लौटकर जाएँगे।}

इसे बैहक़ी ने 'शोअब अल-ईमान' में रिवायत किया है।

अध्याय : बहस करने तथा झगड़ने के उद्देश्य से ज्ञान प्राप्त करने की मनाही

127- काब बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जिसने उलेमा से बहस करने, नासमझ लोगों से झगड़ने अथवा लोगों का आकर्षण लूटने के लिए ज्ञान प्राप्त किया, उसे अल्लाह जहन्नम में डालेगा।} [282]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

128- अबू उमामा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मर्फ़ूअन वर्णित है :

{जब भी कोई समुदाय मार्गदर्शन पर होने के बाद पथभ्रष्ट होती है, तो उसे बहस करने की आदत पड़ जाती है।} [283]फिर आपने यह आयत तिलावत की :{उन्होंने आपके सामने यह उदाहरण केवल कुतर्क के लिए दिया। बल्कि वह हैं ही बड़े झगड़ालू लोग।} [284][सूरा अज़-ज़ुख़रुफ़ : 58]

फिर आपने यह आयत तिलावत की :

{उन्होंने आपके सामने यह उदाहरण केवल कुतर्क के लिए दिया। बल्कि वह हैं ही बड़े झगड़ालू लोग।} [284]

[सूरा अज़-ज़ुख़रुफ़ : 58]

इसे अहमद, तिरमिज़ी और इब्ने माजा ने रिवायत किया है।

129- आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{अल्लाह के पास सबसे घृणित व्यक्ति वह है, जो अत्यधिक झगड़ालू तथा हमेशा विवाद में रहने वाला हो।} [285]

बुख़ारी एवं मुस्लिम।

130- अबू वाइल ने अब्दुल्लाह -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत किया है, वह कहते हैं : "जिसने चार उद्देश्यों के तहत ज्ञान प्राप्त किया, वह जहन्नम में प्रवेश करेगा -या फिर कुछ इसी तरह की बात कही- : उलेमा पर अभिमान करने के लिए, बेवक़ूफ़ों से बहस करने के लिए, लोगों को आकर्षित करने के लिए या अमीरों से कुछ प्राप्त करने के लिए।"

इसे दारिमी ने रिवायत किया है।

131- अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से वर्णित है कि उन्होंने कुछ लोगों को धर्म के बारे में बहस करते हुए सुना, तो फ़रमाया : क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह के कुछ बंदे ऐसे हैं, जो अल्लाह के भय से चुप्पी साधे हुए हैं। हालाँकि वे बहरे-गोंगे नहीं, बल्कि विद्वान, सुवक्ता, वाक्पटु तथा श्रेष्ठ लोग और इतिहास के जानकार हैं। लेकिन इसके बावजूद हाल यह है कि जब अल्लाह की महानता को याद करते हैं, तो उनका विवेक छू-मंतर जो जाता है, दिल बैठ जाते हैं और ज़बानें बंद हो जाती हैं। यहाँ तक कि जब इस स्थिति से उभरते हैं, तो सुकर्मों के साथ अल्लाह की ओर दौड़ पड़ते हैं। वे स्वयं को कोताही करने वालों में गिनते हैं, हालाँकि वे चाक-चौबंद एवं सामर्थ्य वाले लोग होते हैं। इसी तरह वे स्वयं को पथभ्रष्ट तथा पापियों में शुमार करते हैं, हालाँकि वे सदाचारी एवं मासूम होते हैं। सुनो, वे अल्लाह के लिए किए हुए अपने अधिक अमल को अधिक नहीं समझते और उसकी प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए थोड़े-मोड़ अमल से संतुष्ट भी नहीं होते। वह अपने अमल का बखान भी नहीं करते। जहाँ भी उनको देखो, कर्तव्यनिष्ठ, डरे-सहमे और भयभीत नज़र आते हैं।

इसे अबू नुऐम ने रिवायत किया है।

132- हसन बसरी ने कुछ लोगों को झगड़ते हुए सुना, तो कहा :{यह इबादत से उकताए हुए, बात बनाने को आसान समझने वाले और परहेज़गारी में पिछड़े हुए लोग हैं, इसीलिए इस तरह की बात कर रहे हैं।}

{यह इबादत से उकताए हुए, बात बनाने को आसान समझने वाले और परहेज़गारी में पिछड़े हुए लोग हैं, इसीलिए इस तरह की बात कर रहे हैं।}

अध्याय : संक्षिप्त बात करने और बात-चीत में बनावट तथा अतिशयोक्ति से बचने का बयान

133- अबू उमामा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{हया तथा कम बोलना ईमान की दो शाखाएँ हैं, जबकि अश्लील बातें करना तथा अधिक बोलना निफ़ाक़ की दो शाखाएँ हैं।} [288]

इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

134- अबू सालबा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{तुममें मेरे सबसे प्रिय और क़यामत के दिन मुझसे सबसे निकट वह व्यक्ति होगा, जिसका आचरण सबसे अच्छा होगा और मेरे निकट सबसे अप्रिय और क़यामत के दिन मुझसे सबसे दूर वह लोग होंगे, जो बहुत ज़्यादा बातूनी, बिना सावधानी के बात करने वाले और मुँह भर-भर के बोलने वाले हैं।} [289]

इसे बैहक़ी ने 'शोअब अल-ईमान' में रिवायत किया है।

135- तथा तिरमिज़ी ने भी जाबिर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने इससे मिलती-जुलती हदीस नक़ल की है।

136- साद अबू वक़्क़ास -रज़ियल्लाहु अन्हु- बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक ऐसे लोग प्रकट न हों, जो उसी तरह अपनी ज़बानों से खाएँगे, जैसे गाय अपनी ज़बान से खाती है।} [290]

इस हदीस को अहमद, अबू दाऊद और तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।

137- अब्दुल्लाह बिन अम्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मरफ़ूअन वर्णित है :

{अल्लाह ऐसे सुभाषी व्यक्ति से नफ़रत करता है, जो ऐसे ज़बान चलाता हो, जैसे गाय ज़बान चलाती है।} [291] इसे अबू दाऊद तथा तिरमिज़ी ने रिवायत किय है।

138- अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जो व्यक्ति लोगों के दिलों को फाँसने के लिए अलग-अलग अंदाज़ में बात करना सीखे, क़यामत के दिन अल्लाह न उसकी फ़र्ज़ इबादत क़बूल करेगा, न नफ़ल इबादत।} [292] इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

139- आइशा -रजि़यल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं :{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बात के हर शब्द अलग अलग होते, जिसे हर सुनने वाला समझ लेता।" वह कहती हैं : "जब आप हमसे कोई बात कहते और कोई व्यक्ति आपके शब्दों को गिनना चाहता, तो गिन सकता था।" वह कहती हैं : "आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- तुम्हारी तरह जल्दी-जल्दी बात नहीं करते थे।} [293]

{अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बात के हर शब्द अलग अलग होते, जिसे हर सुनने वाला समझ लेता।" वह कहती हैं : "जब आप हमसे कोई बात कहते और कोई व्यक्ति आपके शब्दों को गिनना चाहता, तो गिन सकता था।" वह कहती हैं : "आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- तुम्हारी तरह जल्दी-जल्दी बात नहीं करते थे।} [293]

अबू दाऊद ने इसके कुछ भाग को रिवायत किया है।

140-औरअबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया :

{जब किसी बंदे को देखो कि उसके अंदर दुनिया की चाहत कम हो और उसे कम बोलने की आदत हो, तो उसके निकट जाओ, क्योंकि वह हिकमत की बात ही सिखाएगा।} [295]

इसे बैहक़ी ने 'शोअब अल-ईमान' में रिवायत किया है।

141- बुरैदा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है, वह कहते हैं कि मैने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है :

{कुछ बातें जादू का काम करती हैं, कुछ ज्ञान अज्ञानता से परिपूर्ण होते हैं, कुछ शेर (कविता) हिकमत से भरे होते हैं और कुछ बातें अप्रासंगिक होती हैं।} [296]

142- अम्र बिन आस -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि {उन्होंने एक दिन ऐसे मोक़े पर, जब एक व्यक्ति खड़े होकर बहुत ज़्यादा बात किए जा रहा था, फ़रमाया : यदि यह संतुलित अंदाज़ में बात करे, तो उसके लिए अच्छा है। मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है : "मैंने सोचा है -या मुझे आदेश दिया गया है- कि संक्षिप्त अंदाज़ में बात करूँ। क्योंकि संक्षिप्त बात ही अच्छी है।} [302]

इन दोनों हदीसों को अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

यह पुस्तक संपन्न हुई। सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का पालनहार है। हम उसकी नितांत प्रशंसा करते हैं।


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