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رسول الإسلام محمد صلى الله عليه وسلم (هندي)

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كتاب مترجم إلى اللغة الهندية، عبارة عن نبذة موجزة عن رسول الإسلام محمد صلى الله عليه وسلم تحتوى على، اسمه ونسبه وبلده وزواجه، ورسالته، والذي دعا إليه، وآيات نبوته، وشريعته، وموقف خصومه منه.

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शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु एवं अत्यंत कृपावान है।

इस्लाम के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

इस्लाम के रसूल मुहम्मद-सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का संक्षिप्त परिचय, जिसमें मैं आपके नाम, वंशज, शहर, शादी, संदेश जिसकी ओर आपने बुलाया, आपकी नबूवत के चमत्कारों, आपकी शरीयत और आपके साथ दुश्मनों के व्यवहार के बारे में बात करूँगा।

1- आपका नाम, नसब और शहर, जिस में आप पैदा हुए तथा पले-बढ़े

इस्लाम के रसूल का नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्ला बिन अब्द अल-मुत्तलबि बिन हाशिम है। आप इस्माइल बिन इब्राहीम की नस्ल से थे। दरअसल अल्लाह के नबी इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- अपनी पत्नी हाजिरा तथा पुत्र इस्माइल के साथ, जो गोद में थे, शाम से मक्का आए और अल्लाह के आदेश से उनको यहीं बसा दिया। जब वह बच्चा जवान हो गया तो अल्लाह के नबी इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- फिर एक बार मक्का आए और अपने पुत्र इस्माइल के साथ मिलकर अल्लाह के पवित्र घर काबा का निर्माण किया। धीरे-धीरे काबा के आस-पास लोगों की आबादी बढ़ती गई और मक्का सारे संसार के पालनहार अल्लाह की इबादत करने वाले तथा हज करने की चाहत रखने वाले लोगों का आध्यात्मिक केंद्र बन गया। लोग कई सदियों तक इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- की शिक्षआों का अनुपालन करते हुए अल्लाह की इबादत एवं एकेश्वरवाद के मार्ग पर चलते रहे। फिर इसके बाद बिगाड़ पैदा हो गया और अरब प्रायद्वीप का हाल भी उसके चारों ओर स्थित अन्य सारे देशों के जैसा हो गया। वहाँ भी अनेकेश्वरवाद तथा उससे संबंधित बातें जैसे बुतों की पूजा, लड़कियों को ज़िंदा दफ़न कर देने की प्रथा, स्त्रियों पर अत्याचार, झूठ बोलना, मदिरा पान करना, अशलील काम, अनाथ के धन पर क़ब्ज़ा कर लेना और सूदी लेनदेन आदि चीज़ें आम हो गईं। इसी मक्का के अंदर और इन परिस्थितियों में इस्लाम के रसूल मुहम्मद बिन अब्दुल्ला, इस्माइल बिन इब्राहीम के कुल में, 571 ईस्वी को पैदा हुए। पिता की मृत्यु आपके जन्म से पहले ही हो गई थी। छः साल के हुए तो माँ का साया भी सर से उठ गया। ऐसे में चचा अबू तालिब ने पालन-पोषण किया। एक अनाथ एवं निर्धन का जीवन व्यतीत किया। ख़ुद अपने हाथ से कमा कर खाते थे।

2- शुभ ख़ातून से शुभ विवाह

जब पच्चीस वर्ष के हुए तो आप की शादी मक्का की एक सम्मानित महिला ख़दीजा बिंत ख़ुवैलिद -रज़ियल्लाहु अनहा- से हुई। उनसे आपको चार बेटियाँ और दो बेटे हुए। दोनों बेटे बाल्यावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। अपनी पत्नी तथा परिवार से आपका संबंध बड़ा स्नेह एवं प्यार भरा हुआ करता था। यही कारण है कि आपकी पत्नी ख़दीजा भी आपसे टूट कर मुहब्बत करती थीं, और आप भी उनको इसी तरह चाहते। इसी का नतीजा था कि आप उनको उनकी मृत्यु के वर्षों बाद भी भुला नहीं सके। आप बकरी ज़बह करते तो ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अनहा- के प्यार को ताज़ा रखने, उनकी सहेलियों को इज़्ज़त देने एवं पुण्य के लिए उसके मांस को उनमें बाँट देते।

3- वह्यी का आरंभ

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- बचपन ही से बड़े आदर्श चरित्र के मालिक थे। लोग आपको "अस-सादिक़" (सत्यवादी) तथा "अल-अमीन" (अमानतदार) कहकर पुकारते थे। वह बड़े-बड़े कामों में लोगों के साथ रहते, लेकिन उनकी बुतपरस्ती (मूर्ती पूजन) और उससे संबंधित बातों से नफ़रत करते और अलग रहते थे।

जब चालीस साल के हुए तो अल्लाह ने आपका चयन अपने संदेष्टा के रूप में कर लिया। एक दिन जिबरील -अलैहिस्सलाम- आपके पास क़ुरआन की सबसे पहले उतरने वाली सूरा की कुछ आरंभिक आयतों के साथ आए। आयतें कुछ इस तरह थीं: अपने पालनहार के नाम से पढ़, जिसने पैदा किया। जिसने मनुष्य को रक्त के लोथड़े से पैदा किया। पढ़, और तेरा पालनहार बड़ा उदार है। जिसने कलम के द्वारा ज्ञान सिखाया। इन्सान को वह ज्ञान दिया जिसको वह नहीं जानता था। [सूरा अल-अलक़: 1-5] इसके बाद आप अपनी पत्नी ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अनहा- के पास आए। आप अंदर से घबराए हुए थे। जो कुछ हुआ, उनको बताया तो उन्होंने इतमीनान (संतुष्टि) दिलाया और अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नौफ़ल के पास ले गईं। वरक़ा ईसाई बन चुके थे और तौरात एवं इंजील का ज्ञान रखते थे। ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अनहा- ने उनसे कहा कि ऐ मेरे चचेरे भाई! आप अपने भतीजे की बात सुनिए। वरक़ा ने आपसे कहा कि ऐ मेरे भतीजे! बताइए, आपके साथ क्या हुआ? आपने उनके सामने जो कुछ हुआ था, बयान किया, तो वरक़ा ने कहा: (यह वही फ़रिश्ता है जिसे अल्लाह ने मूसा -अलैहिस्सलाम- पर उतारा था। काश मैं उस समय जवान तथा जीवित होता जब आपकी जाति के लोग आपको निकाल देंगे। यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया: "क्या सच-मुच मेरी जाति के लोग मुझे निकाल देंगे?" उन्होंने उत्तर दिया: हाँ। दरअसल आप जो संदेश लेकर आए हैं उस तरह का संदेश जो भी लेकर आया, लोगों ने उसके साथ दुश्मनी की। यदि वह दिन मुझे मिल सका तो मैं आपकी भरपूर मदद करूँगा।)

मक्का में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर लगातार क़ुरआन उतरता रहा। जिबरील -अलैहिस्सलाम- सारे संसार के पालनहार के यहाँ से आपके पास क़ुरआन लाते। इसी तरह वह संदेश का विवरण भी लाते।

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- लोगों को इस्लाम की ओर बुलाने लगे। लोगों ने आपका विरोध किया और आप से दुश्मनी की, उन्होंने आपको इस संदेश को त्याग देने के बदले धन तथा राज्य सौंपने का प्रस्ताव दिया, लेकिन आपने इस तरह की हर पेशकश को ठुकरा दिया। उन्होंने आपको जादूगर, झूठा तथा झूठ गढ़ने वाला आदि कहा, जैसा कि आपसे पहले के रसूलों को भी उनकी जाति के लोगों ने कहा था। यही नहीं, उन्होंने आपको परेशान करना, शारीरिक कष्ट देना तथा आपके साथियों को भी तंग करना शुरू कर दिया। लेकिन आप मक्का में लोगों को अल्लाह की ओर बुलाने का काम जारी रखा। आप हज के मौसम तथा अरब के मौसमी बाज़ारों में जाते, वहाँ लोगों से मुलाक़ात करते और उनके सामने इस्लाम पेश करते। न दुनिया न पद-प्रतिष्ठा का लालच दिखाया और न तलवार का भय, क्योंकि आपके पास न ताक़त थी और न राज्य। आरंभिक दिनों में इस बात का चैलेंज किया कि लोग आपके द्वारा लाई गई पुस्तक क़ुरआन की जैसी कोई किताब लाकर दिखाएँ। विरोधियों को यह चुनौती आप बार-बार देते रहे। इसके फलस्वरूप कुछ लोगों ने आपके आह्वान को स्वीकार किया। मक्का में अल्लाह ने आपको एक बड़ा चमत्कार प्रदान किया। आप रातों रात बैत अल-मक़दिस गए और फिर वहाँ से आकाशों की सैर की। बताने की ज़रूरत नहीं है कि अल्लाह ने अपने नबी इलयास तथा ईसा को भी आकाश में उठाया है। इस बात का उल्लेख मुसलमानों तथा ईसाईयों दोनों के यहां है। आकाश ही में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अल्लाह की ओर से नमाज़ का आदेश प्राप्त किया। वही नमाज़, जिसे मुसलमान प्रति दिन पाँच बार पढ़ते हैं। मक्का ही में चाँद के दो टुकड़े होने का चमत्कार सामने आया, जिसे बहुदेववाद मक्का वालों ने भी देखा।

क़ुरैश के काफ़िरों ने लोगों को आपसे रोकने का हर हथकंडा अपनाया, साज़िशें कीं और लोगों को आपसे दूर करने का भरपूर प्रयास किया। बार-बार निशानियाँ माँगीं और ऐसे प्रमाण प्राप्त करने के लिए यहूदियों की मदद ली जो आपसे बहस करने और लोगों को आपसे रोकने के मिशन में उनके लिए सहायक सिद्ध हों।

क़ुरैश के काफ़िरों की ओर से मुसलमानों की निरंतर प्रताड़ना को देखते हुए अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको हबशा की ओर हिजरत (प्रवास) करने की अनुमति दे दी तथा कहा कि वहाँ एक न्यायप्रिय राजा है, जिसके राज्य में किसी पर अत्याचार नहीं होता। वह राजा ईसाई था। मुसलमानों के दो समूहों ने हबशा की ओर हिजरत की। जब ये मुहाजिर हबशा पहुँचे और वहां के राजा नज्जाशी के सामने उस धर्म को पेश किया जिसे अल्लाह के नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- लाए थे, तो वह मुसलमान हो गए और कहा कि अल्लाह की क़सम यह धर्म तथा मूसा -अलैहिस्सलाम- का लाया हुआ धर्म एक ही स्रोत से निकले हुए हैं।इसके बाद भी मक्का वासियों का अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- तथा वहां मौजूद आपके बाक़ी साथियों को सताने का सिलसिला जारी रहा।

एक बार हज के मौसम में मदीना के कुछ लोग अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर ईमान लाए तथा आपके हाथ पर इस्लाम पर क़ायम रहने और मुसलमानों के मदीना आने पर सहायता करने की बैअत (प्रतिज्ञा) की। उन दिनों मदीना को यसरिब के नाम से जाना जाता था। इसके बाद आपने मक्का में बचे हुए मुसलमानों को मदीना की ओर हिजरत करने की अनुमति दे दी। इसके पश्चात मुसलमान मदीना हिजरत कर गए और देखते ही देखते वहां इस्लाम इस तरह फैल गया कि कोई घर उसकी रोशनी से वंचित न रहा।

जब अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को मक्का के अंदर लोगों को अल्लाह की ओर बुलाते हुए 13 वर्ष बीत गए, तो अल्लाह ने आपको भी मदीना हिजरत करने की अनुमति दे दी। अतः आप भी मक्का छोड़ मदीना चले गए। मदीना में अल्लाह की ओर बुलाने का काम जारी रहा और इस्लाम के आदेश तथा निर्देश धीरे-धीरे उतरते रहे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपने संदेशवाहकों को अपने पत्र के साथ विभिन्न क़बीलों के सरदारों तथा शासकों की ओर भेजकर उन्हें इस्लाम की ओर बुलाना शुरू कर दिया। जिन शासकों की ओर पत्र भेजे थे उनमें रूम का शासक, फ़ारस का शासक और मिस्र का शासक आदि शामिल हैं।

मदीना में एक बार सूर्य ग्रहण की घटना सामने आई, जिससे लोग घबरा गए और चूँकि संयोग से उसी दिन अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पुत्र इब्राहीम की मृत्यु भी हुई थी, इसलिए लोगों ने कहना शुरू कर दिया सूर्य ग्रहण इब्राहीम की मृत्यु के कारण लगा है। यह देख अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया: (सूर्य तथा चंद्र ग्रहण किसी के मरने या पैदा होने के कारण नहीं लगता, बल्कि ये अल्लाह की निशानियाँ हैं, इनके द्वारा अल्लाह अपने बंदों को डराता है।)यहाँ समझने की बात यह है कि यदि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- झूठे होते और नबी होने का गलत दावा कर रहे होते तो लोगों को फ़ौरन खुद को झुठलाने से डराते और कहते कि सूर्य ग्रहण मेरे बेटे की मृत्यु के कारण लगा है। अतः उन लोगों का क्या होगा जो मुझको झुठलाते हैं?

रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को अल्लाह ने उच्च आचरणों का मजमूआ बनाया था, उसने आपको इन शब्दों में परिभाषित किया है: ''निश्चय ही आप उच्च आचरण के शिखर पर हैं।'' [सूरा अल-क़लम: 4] अतः आप अच्छे आचरण, जैसे सच्चाई, निष्ठा, बहादुरी, न्याय, वफ़ादारी और उदारता आदि से सुशोभित थे। निर्धनों, दरिद्रों, विधवाओं और ज़रूरतमंदों को दान करना पसंद करते थे। उनके मार्गदर्शन तथा उनपर दया और उनके प्रति विनम्र भाव रखने का शौक़ रखते थे। कई बार ऐसा होता कि अजनबी व्यक्ति आकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को ढूँढ रहा होता और आपके साथियों से आपके बारे में पूछ रहा होता, हालाँकि आप उन्हीं लोगों के बीच में मौजूद होते, लेकिन वह पहचान नहीं पाता और कहता कि तुम में से मुहम्मद कौन है?

आपकी सीरत (चरित्र) सभों के साथ बर्ताव के मामले में संपूर्णता एवं शराफ़त का एक चमत्कार थी, मित्र हो या शत्रु, निकट का हो या दूर का, बड़ा हो या छोटा, स्त्री हो या पुरुष तथा जानवर हो या पक्षी।

जब अल्लाह ने अपना धर्म मुकम्मल कर दिया और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अल्लाह के संदेश को पूर्ण रूप से पहुँचा दिया, तो 63 वर्ष की आयु में आप मृत्यु को प्राप्त हुए। 40 वर्ष नबूवत से पहले और 23 वर्ष नबी और रसूल के तौर पर। मृत्यु के पश्चात मदीना में दफ़न हुए। न धन छोड़ा न मीरास, छोड़ा तो बस एक सफ़ेद रंग का खच्चर, जिसपर सवार होते थे और एक ज़मीन का टुकड़ा, जिसे मुसाफ़िरों के लिए दान कर दिया था।

उन लोगों की संख्या जिन्होंने इस्लाम धर्म अपनाया, उस पर विश्वास किया और उसका अनुसरण किया, बहुत बड़ी थी। हज्जतुल विदा (आपका अंतिम हज) के अवसर पर आपके साथ एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए। यह हज आपकी मृत्यु से लगभग तीन महीना पहले किया गया था। शायद यही आपके धर्म के सुरक्षित रहने तथा फलने-फूलने का एक अहम कारण है। आपके सहाबा, आपने जिनकी तरबियत (शिक्षण) इस्लाम के उच्च आदर्शों को सामने रखकर की थी, वे न्याय, निस्पृहता, परहेज़गारी, वफ़ादारी में, तथा उस महान धर्म को फैलाने के मामले में, जिसके वह मानने वाले थे, आपके सबसे अच्छे साथी साबित हुए।

सहाबा में अपने ईमान, अमल, निष्ठा, पुष्टि, दान, बहादुरी और नैतिकता के आधार पर सबसे महान अबू बक्र सिद्दीक़, उमर फ़ारूक़, उस्मान बिन अफ़्फ़ान और अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अनहुम- थे। वे बिलकुल आरंभिक दौर में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पुष्टि करने और आप पर ईमान लाने वाले लोग थे, तथा आपके बाद ख़लीफ़ा (आपके उत्तराधिकारी) भी बने और इस्लाम के झंडे को बुलंद रखा। लेकिन उनके अंदर नबियों वाली कोई विशेषता नहीं थी और न उनको कोई ऐसी वस्तु दी गई थी, जो शेष सहाबा के पास न हो।

अल्लाह ने अपने नबी की लाई हुई किताब, आपकी सुन्नत, सीरत, कथनों तथा कर्मों को उसी भाषा में सुरक्षित रखा, जो आप बोलते थे। आपकी सीरत जिस तरह सुरक्षित है उस तरह मानव इतिहास में किसी भी व्यक्ति की सीरत सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि आप कैसे सोते थे, कैसे खाते थे, कैसे पीते थे और कैसे हँसते थे यह तमाम बातें सुरक्षित हैं। और यह भी सुरक्षित है कि घर के अंदर परिवार के साथ आपका व्यवहार कैसा था। आपके जीवन से संबंधित सारी बातें सुरक्षित एवं संकलित हैं। आप एक इन्सान तथा रसूल थे। आपके अंदर पालनहार जैसी कोई विशेषता नहीं थी और आप अपने किसी लाभ एवं हानि के मालिक भी नहीं थे।

4- आपका संदेश

अल्लाह ने मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को रसूल बनाकर उस समय भेजा था जब धरती पर शिर्क, कुफ़्र और अज्ञानता आम हो चुकी थी। गिनती के कुछ अह्ल-ए-किताब को छोड़ दें तो धरती पर ऐसे लोग नहीं बचे थे जो केवल एक अल्लाह की इबादत करते हों और किसी को उसका साझी न बनाते हों। इन परिस्थितियों में अल्लाह ने अपने रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को रसूलों एवं नबियों की अंतिम कड़ी के रूप में मार्गदर्शन एवं सत्य धर्म के साथ सारे संसार वासियों की ओर भेजा, ताकि हर ओर इस्लाम की जोत जगा दें और लोगों को बुतपरस्ती, कुफ़्र और अज्ञानता के अंधेरों से निकाल कर एकेश्वरवाद एवं ईमान की प्रकाश में पहुँचा दें। आपकी रिसालत आपसे पहले आए हुए तमाम रसूलों की रिसालतों की संपूर्ण करने वाली थी। उन तमाम रसूलों एवं नबियों पर अल्लाह की शांति अवतरित हो।

आपने लोगों को उसी रास्ते की ओर बुलाया जिसकी ओर आपसे पहले आए हुए रसूलों, जैसे नूह, इब्राहीम, मूसा, सुलैमान, दाऊद और ईसा -अलैहिमुस्सलाम- ने बुलाया था। जैसे इस बात पर विश्वास कि अल्लाह ही इस संसार का रचयिता है, वही रोज़ी देता है, वही जीवन देता है, वही मृत्यु देता है, वही सारे संसार का मालिक है, वही संचालन कर्ता है, वह करुणामय एवं दयालु है। वही संसार की उन सारी चीज़ों का सृष्टा है जिन्हें हम देख पाते हैं और जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं। अल्लाह के अतिरिक्त सारी चीज़ें उसकी पैदा की हुई हैं।

इसी तरह आपने कहा कि एक अल्लाह की इबादत की जाए और उसके अतिरिक्त किसी की इबादत से गुरेज़ किया जाए। आपने स्पष्ट रूप से बता दिया कि अल्लाह एक है, इबादत, राज्य, सृष्टि एवं संचालन के कामों में उसका कोई साझी नहीं है। आपने बताया कि पवित्र अल्लाह की न कोई संतान है और न वह किसी की संतान है। कोई उसके बराबर तथा उसके जैसा भी नहीं है। वह अपनी किसी सृष्टि के अंदर हुलूल (शरीर में समा जाना) भी नहीं करता है और न किसी की शक्ल में ज़ाहिर होता है।

आपने आसमानी ग्रंथों, जैसे इब्राहीम एवं मूसा के सहीफ़े (ग्रंथ), तौरात, ज़बूर एवं इन्जील पर विश्वास रखने का आह्वान किया और तमाम रसूलों -अलैहिमुस्सलाम- पर ईमान रखने की बात कही। आपने बताया कि जिसने एक रसूल को भी झुठलाया उसने सारे रसूलों को झुठलाया।

आपने सारे लोगों को अल्लाह की कृपा का सुसमाचार सुनाया और बताया कि अल्लाह ही दुनिया में उनकी सारी ज़रूरतें पूरी करता है, और वह बड़ा दयालु पालनहार है। वह क़यामत के दिन सारी सृष्टियों को क़ब्रों से निकाल कर उनका हिसाब लेगा। वह ईमान वालों को उनके अच्छे कर्मों का बदला दस गुना देता है और बुरे कर्मों का बदला उनके बराबर ही देता है। ईमान वालों के लिए आख़िरत में हमेशा रहने वाली नेमतें हैं। जबकि अविश्वास व्यक्त करने वाला और बुरे कर्म करने वाला दुनिया एवं आख़िरत दोनों स्थानों में बुरा बदला पाएगा।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपने क़बीले, नगर और खुद अपना गुणगान नहीं किया। क़ुरआन में आपके नाम से अधिक बार अन्य नबियों, जैसे नूह, इब्राहीम, मूसा और ईसा -अलैहिमुस्सलाम- के नाम आए हैं। क़ुरआन में आपकी माता एवं पत्नियों के नाम भी नहीं आए हैं, जबकि मूसा -अलैहिस्सलाम- की माता का नाम एक से अधिक बार आया है और मरयम -अलैहस्सलाम- का नाम 35 बार आया है।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उन तमाम बातों से पवित्र हैं जो शरीयत, अक़्ल तथा फ़ितरत विरोधी हों या उच्च आचरण की कसौटी पर खरी न उतरती हों। क्योंकि सारे नबी अल्लाह का संदेश पहुँचाने के मामले में मासूम होते हैं, और उनके कंधों पर बस अल्लाह के आदेशों को लोगों तक पहुँचाने की ज़िम्मेवारी होती है। नबियों के अंदर पालनहार एवं पूज्य जैसी कोई विशेषता नहीं होती है। वह आम इन्सानों की तरह ही इन्सान होते हैं। बस अंतर यह है कि अल्लाह उनकी ओर अपना संदेश वह्यी के माध्यम से भेजता है।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का संदेश अल्लाह का संदेश है, इस बात की एक बड़ी गवाही यह है कि वह आज भी उसी रूप में मौजूद है जिस रूप में आपके जीवन काल में मौजूद था। एक अरब से अधिक मुसलमान उसका अनुसरण करते हैं और उसके शरई अनिवार्य कार्यों, जैसे नमाज़, ज़कात, रोज़ा और हज आदि का पालन, बिना किसी परिवर्तन तथा छेड़-छाड़ के किया जाता है।

5- आपकी नबूवत की निशानियाँ तथा उसके प्रमाण

अल्लाह अपने नबियों की मदद करता है कुछ ऐसी निशानियाँ प्रदान करके जो उनके नबी होने की पुष्टि करती हैं। वह उनकी नबूवत को सिद्ध करने वाले कुछ प्रमाण भी स्थापित करता है। अल्लाह ने हर नबी को ऐसी निशानियाँ प्रदान कीं जो उस दौर के लोगों के ईमान लाने के लिए प्रयाप्त थीं। लेकिन अन्य नबियों की तुलना में हमारे नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को अधिक बड़ी-बड़ी निशानियाँ प्रदान की गईं हैं। अल्लाह ने आपको क़ुरआन दिया जो सारे नबियों की निशानियों में क़यामत तक बाक़ी रहने वाली एक मात्र निशानी है। इसी प्रकार कई अन्य बड़े चमत्कार भी दिए जिनकी संख्या बहुत अधिक हैं। कुछ चमत्कार इस प्रकार हैं:

रातों रात मक्का से बैत अल-मक़दिस और वहाँ से आकाशों की सैर करना, चाँद के दो टुकड़े होना, अनावृष्टि के कारण वर्षा के लिए आपकी दुआ के बाद कई बार बारिश हो जाना।

थोड़े-से भोजन तथा थोड़े-से पानी का इतना अधिक हो जाना कि उससे बहुत-से लोग खाए तथा पिये।

बीते हुए समय की उन बातों को बताना जिनका विवरण किसी को मालूम नहीं था, जैसा कि अल्लाह का उनको नबियों और उनकी जातियों के क़िस्से और असहाब-ए-कह्फ़ का क़िस्सा बतलाना।

आने वाले समय की उन घटनाओं की सूचना देना जो बाद में घटित हुईं, जैसे उस आग के बारे में बताना जो हिजाज़ की ज़मीन से निकलेगी और उसे शाम वाले देख सकेंगे और लोगों का ऊँचे-ऊँचे भवनों पर एक-दूसरे पर अभिमान करना।

इसी तरह ख़ुद आपको तथा आपकी इज़्ज़त-आबरू को लोगों से सुरक्षित रखना,

आपका अपने साथियों से किए हुए दावों का पूरा होना, जैसा कि आपने उनसे कहा था: ''तुम एक दिन फ़ारस तथा रूम में विजय प्राप्त कर लोगे और उनके ख़ज़ानों को अल्लाह के मार्ग में खर्च करोगे।''

फ़रिश्तों द्वारा आपका समर्थन

पिछले नबियों का अपनी जातियों को मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के रसूल बनकर आने का सुसमाचार सुनाना। इस तरह का सुसमाचार सुनाने वालों में मूसा, दाऊद, सुलैमान, ईसा -अलैहिमुस्सलाम- तथा बनी इसराईल के नबी शामिल हैं।

इसी तरह अल्लाह ने आपको बहुत-से ऐसे अक़्ली प्रमाण प्रदान किए और ऐसी मिसालेंदेकर बात समझाने का प्रयास किया जिनके सामने स्वच्छ विवेक घुटना टेक देता है।

इस प्रकार की निशानियाँ, प्रमाण तथा अक़्ली मिसालें पवित्र क़ुरआन तथा अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सुन्नत में बहुत बड़ी संख्या में बिखरी हुई हैं। आपको अनगिनत निशानियाँ मिली हुई थीं। जो इस तरह की निशानियों से अवगत होना चाहे वह पवित्र क़ुरआन तथा सुन्नत एवं सीरत की किताबों का अध्ययन करें, उनमें इन निशानियों के बारे विश्वसनीय ख़बर है।

यदि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास इस प्रकार की बड़ी-बड़ी निशानियाँ एवं प्रमाण न होते, तो आपका विरोध करने वाले क़ुरैश के अविश्वासी लोगों, यहूदियों एवं ईसाइयों को आपको झुठलाने और लोगों को आपसे दूर रखने का अवसर मिल जाता।

पवित्र क़ुरआन वह ग्रंथ है जिसे अल्लाह ने अपने रसूल महुम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की ओर वह्यी द्वारा उतारा है। यह सारे संसार के पालनहार की वाणी है। अल्लाह ने इन्सानों एवं जिन्नों को चुनौती दी है कि इस जैसी किताब या उसके जैसा कोई अध्याय ही लाकर दिखाएँ। यह चुनौती आज भी क़ायम है। क़ुरआन बहुत-से ऐसे प्रश्नों का उत्तर देता है जिनके बारे में लाखों लोग हैरान हैं। क़ुरआन आज तक उसी अरबी भाषा में सुरक्षित है जिसमें उतरा था। एक अक्षर का फ़र्क़ नहीं आया। आज यह छपकर पूरी दुनिया में फैला हुआ है। यह एक महान एवं चमत्कारिक ग्रंथ तथा लोगों को प्राप्त होने वाली सबसे महान पुस्तक है। यह इस योग्य है कि खुद इसे या इसके अनुवाद को पढ़ा जाए। जिसने इसे नहीं पढ़ा और इसपर विश्वास नहीं रखा, वह सारी भलाइयों से वंचित रह गया। इसी तरह मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सुन्नत, आपका तरीक़ा और जीवन वृतांत भी सुरक्षित तथा विश्वस्त वर्णनकर्ताओं की शृंख्लाओं द्वारा वर्णित है। उन्हें उसी अरबी भाषा में सुरक्षित रखे गये हैं जो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- बोला करते थे। उनको पढ़कर ऐसा लगता है जैसे आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हमारे बीच जी रहे हों। उनका अनुवाद भी बहुत-सी भाषाओं में हो चुका है। पवित्र क़ुरआन एवं अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सुन्नत ही इस्लामी विधान, आदेशों तथा निर्देशों के स्रोत हैं।

6- अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की लाई हुई शरीयत

आपकी लाई हुई शरीयत इस्लामी शरीयत है, जो अल्लाह की दी हुई अंतिम शरीयत और उसका अंतिम संदेश है। बुनियादी बातों में यह पिछले नबियों की शरीयतों के समान ही है, यह अलग बात है कि परिस्थितियाँ सबकी अलग-अलग रही हैं।

यह एक संपूर्ण शरीयत है, जो हर युग तथा हर स्थान के अनुरूप है। इसमें इन्सान की दीन और दुनिया दोनों की भलाई छपी है। इसके अंदर वह सारी इबादतें शामिल हैं, जो बंदे पर सारे संसार के पालनहार के लिए अनिवार्य हैं। जैसे नमाज़ एवं ज़कात आदि। यह वित्तीय, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सैनिक और पर्यावर्णीय वैध तथा अवैध क्रिया-कलापों को स्पष्ट करती है, जिसकी इन्सान को दुनिया एवं आख़िरत के जीवन में जरूरत पड़ने वाली है।

इस्लामी शरीयत इन्सान के धर्म, रक्त, सम्मान, धन, बु्द्धि और नस्ल को सुरक्षा प्रदान करती है। यह अपने अंदर हर अच्छाई रखती है, हर बुराई से सावधान करती है। इन्सान के सम्मान, उदारता, न्याय, निष्ठा, स्वच्छता, प्रेम, लोगों के लिए प्रेम की चाहत, रक्त की सुरक्षा, वतन की रक्षा और लोगों को नाहक़ भयभीत एवं आतंकित करने की अवैधता की ओर बुलाती है। अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने सरकशी एवं फ़साद के सारे रूपों तथा अंधविश्वास, रहबानियत, (दुनिया से किनाराकशी, सन्यास) के विरुद्ध जंग छेड़ रखी थी।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया कि अल्लाह ने इन्सान को, पुरुष हो या महिला, सम्मान प्रदान किया है, और उसके सारे अधिकारों की गारेंटी दी है। साथ ही उसे उसके सारे इख़्तियारों, कर्मों एवं कार्रवाइयों का ज़िम्मेदार बनाया है। उसके हर उस कार्य का ज़िम्मेदार खुद उसी को बनाया है जो ख़ुद उसके या दूसरे लोगों के लिए हानिकारक हो। इस्लाम ने पुरुष अथवा स्त्री को ईमान, ज़िम्मेदारी, प्रतिफल एवं सवाब की दृष्टि से समान घोषित किया है। इस शरीयत के अंदर स्त्री पर, माँ, पत्नी, बेटी तथा बहन के रूप में ख़ास ध्यान दिया गया है।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की इस शरीयत ने अक़्ल को संरक्षण प्रदान किया है, और उन तमाम चीज़ों को हराम घोषित किया है जो उसे नष्ट करने का काम करती हैं, जैसे शराब (मदिरा) पीना हराम है। इस्लाम की नज़र में धर्म एक प्रकाश है जो अक़्ल के लिए मार्ग रौशन करता है, ताकि इन्सान अपने पालनहार की इबादत पूरे ज्ञान एवं सूझ-बूझ के साथ कर सके। इसने अक़्ल को बड़ा महत्व दिया है, उसे शरई ज़िम्मेवारियों के लिए शर्त क़रार दिया है और अंधविश्वास तथा मूर्ती पूजा की रस्मों से मुक्त किया है।

इस्लामी शरीयत सही ज्ञान का बहुत सम्मान करती है। वह ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रेरणा देती है जो आकांक्षा से खाली हो। वह इन्सान के अस्तित्व तथा कायनात पर ग़ौर व फ़िक्र (चिंतन) करने का आह्वान करती है। याद रहे कि विज्ञान के सही परिणाम कभी अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के लाई हुई शरीयत के विपरीत नहीं हो सकते।

इस्लामी शरीयत में रंग तथा नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। इसमें किसी एक क़ौम को दूसरी क़ौम से श्रेष्ठ भी नहीं कहा गया है। इसके आदेशों के सामने सभी लोग बराबर हैं। क्योंकि असलन सारे लोग समान हैं। एक वर्ग दूसरे वर्ग से और एक जाति दूसरी जाति से श्रेष्ठ नहीं है। उसकी नज़र में श्रेष्ठता का आधार केवल धर्मपरायणता है। अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है। कोई भी इन्सान गुनहगार (पापी) होकर अथवा दूसरे के पाप का उत्तराधिकारी होकर जन्म नहीं लेता।

इस्लामी शरियत में अल्लाह ने तौबा के दरवाज़े खुले रखे हैं। तौबा नाम है, इन्सान का अपने पालनहार की ओर लौटने तथा गुनाह छोड़ देने का। इस्लाम का गृहन पहले किए गए सारे गुनाहों को मिटा देता है, उसी तरह तौबा पहले किए गए सारे गुनाहों को मिटा देती है। अतः किसी इन्सान के सामने गुनाह के एतिराफ़ (स्वीकार करने) की ज़रूरत नहीं है। इस्लाम में इन्सान तथा उसके पालनहार के बीच सीधा संबंध होता है। बीच में किसी कड़ी की आवश्यकता नहीं है। इस्लाम इस बात की अनुमति नहीं देता कि हम इन्सान को पूज्य समझे, अथवा उसे पालनहार एवं पूज्य होने के मामले में अल्लाह का साझी बनाएँ।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की लाई हुई शरीयत ने पहले की तमाम शरीयतों को निरस्त कर दिया है। क्योंकि आपकी लाई हुई शरीयत क़यामत तक के इन्सानों को प्राप्त होने वाली अंतिम शरीयत है। यह सारे संसार वालों के लिए है। इसी लिए इसने पहले की शरीयतों को निरस्त कर दिया है। बिल्कुल उसी तरह, जैसे इससे पहले की शरीयतें एक-दूसरे को निरस्त करती रही हैं। इसके बाद अल्लाह इस्लामी शरीयत के अतिरिक्त किसी अन्य शरीयत, और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के लाए हुए इस्लाम धर्म के अतिरिक्त किसी धर्म को मान्यता नहीं देता। जिसने इसके अतिरिक्त कोई दूसरा धर्म अपनाया, उसके उस धर्म को अल्लाह कभी मान्यता नहीं देगा। जो इस शरीयत के विधानों को विस्तारपूर्ण जानना चाहे, वह इस्लाम के परिचय पर आधारित विश्वस्त पुस्तकों का अध्ययन कर सकता है।

अन्य सारे नबियों की शरीयतों की तरह ही इस्लामी शरीयत का उद्देश्य यह है कि सच्चा धर्म इन्सान को उच्च स्थान प्रदान करे। वह केवल एक अल्लाह का बंदा हो, जो कि सारे संसार का पालनहार है। वह अपने ही जैसे इन्सान, भौतिकवाद एवं अंधविश्वास की बंदगी से मुक्त हो जाए।

इस्लामी शरीयत हर युग एवं हर स्थान के अनुरूप है। इसकी कोई भी शिक्षा इन्सान के उचित हितों के साथ टकराती नहीं है। क्योंकि इसे उस अल्लाह ने उतारा है जो इन्सान की सभी प्रकार की ज़रूरतों से अवगत है। खुद इन्सान को एक ऐसे उचित विधान की आवश्यकता है जिसकी शिक्षाओं में विरोधाभास न हो, जो मानव जाति का कल्याण कर सकता हो, वह किसी इन्सान का बनाया हुआ न हो, बल्कि अल्लाह की ओर से मिला हो, लोगों को भलाई का मार्ग बताता हो कि जब लोग उसपर अमल करने लगें, तो उनका जीवन सफल हो जाए और वे परस्पर अत्याचार से सुरक्षित रहें।

7- आपके बारे में आपके विरोधियों का मत और उनकी गवाही

इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि हर नबी के कुछ विरोधी हुआ करते हैं, जो उससे दुश्मनी रखते हैं, उसे उसका काम करने नहीं देते और लोगों को उसे मानने से रोकते हैं। अल्लाह के अंतिम नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के भी बहुत-से विरोधी रहे हैं, उनके जीवन काल में भी और मरने के बाद भी। लेकिन उनपर अल्लाह ने आपको विजय प्रदान किया। उनमें से बहुत-से लोगों ने पहले भी और बाद में भी यह गवाही दी है कि आप अल्लाह के नबी हैं और आप उसी प्रकार का संदेश लेकर आए हैं जिस प्रकार का संदेश आपसे पहले के नबी -अलैहिमुस्सलाम- लेकर आए थे। इस प्रकार के लोग दिल से जान रहे होते हैं कि आप सत्य के मार्ग पर हैं, लेकिन बहुत-सी बाधाएँ, जैसे पद का प्रेम, समाज का भय या धन से महरूमी आदि उनके सामने आ जाती हैं और वे इस्लाम ग्रहण नहीं कर पाते।

सारी प्रशंसा अल्लाह ही की है जो सारे संसार का पालनहार है।

लेखक: प्रोफेसर, डॉक्टर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह अल-सुह़ैम

इसलामी अध्ययन विभाग में अक़ीदा के भूतपूर्व प्रोफेसर

प्रशिक्षण महाविद्यालय, किंग सऊद विश्वविद्यालय

रियाज़, सऊदी अरब

इस्लाम के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

1- आपका नाम, नसब और शहर, जिस में आप पैदा हुए तथा पले-बढ़े

2- शुभ ख़ातून से शुभ विवाह

3- वह्यी का आरंभ

4- आपका संदेश

5- आपकी नबूवत की निशानियाँ तथा उसके प्रमाण

6- अल्लाह के रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की लाई हुई शरीयत

7- आपके बारे में आपके विरोधियों का मत और उनकी गवाही

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